बाराबंकी। घाघरा नदी का जलस्तर तो धीरे-धीरे घट रहा है मगर बाढ़ पीड़ितों की दुश्वारियां नहीं कम हो रही हैं। लगभग तीन दर्जन गांवाें में अब भी पानी भरा है। ऊपर से ग्रामीणों को परिवार के साथ ही मवेशियों की भूख मिटाने की चिंता सताने लगी है। प्रशासनिक इमदाद की स्थिति प्रभावित क्षेत्रों के लिए ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ साबित हो रही है। यही नहीं रुक-रुककर हो रही बारिश भी तराई के ग्रामीणों के लिए मुसीबत बनी है। नदी रविवार शाम तक खतरे के निशान 106.070 मीटर से सात सेंटीमीटर ऊपर ठहरी थी।
मालूम हो कि पिछले एक पखवारे से घाघरा नदी के कड़े तेवरों ने तराई इलाके में दहशत फैला रखा है। खतरे के निशान 106.070 मीटर से ऊपर 31 जुलाई से नदी का जलस्तर चल रहा है। घाघरा ने सबसे पहले सिरौलीगौसपुर के पांच व रामसनेहीघाट तहसील के एक गांव समेत नदी के उस पार बसे आधा दर्जन गांवों को पूरी तरह से जलमग्न कर दिया। करीब 15 हजार बाढ़ पीड़ित गांव छोड़कर एल्गिन चरसड़ी तटबंध पर डेरा डाले हैं। अभी प्रशासनिक अमला इन ग्रामीणों की मदद के लिए पहुंचा भी नहीं था। तभी रामनगर तहसील के डेढ़ दर्जन और सिरौलीगौसपुर के अलीनगर रानीमऊ तटबंध के किनारे बसे एक दर्जन गांव की ओर घाघरा ने रुख कर दिया। तीन दर्जन गांवाें में तबाही मचाने के बाद भी घाघरा के तेवर बरकरार हैं। प्रभावित गांवों में अब संक्रामक रोगों का खतरा मुंह फैलाए हुए है।
एल्गिन चरसड़ी के निकट बसे परसावल, नैपुरा, पारा, बेहटा, रायपुर मांझा व कमियार के ग्रामीणों का एकमात्र सहारा बांध ही है। ग्रामीण बांध पर ही डेरा डालकर गांव में पानी के सूखने का इंतजार कर रहे हैं। बांध पर प्रशासन ने राहत के नाम पर राशन, पेयजल की व्यवस्था की व्यवस्था तो करा दी है। मगर मेडिकल व पशुओं के टीकाकरण की सुविधा दिलाने के दावे खोखले साबित हो रहे हैं। रामनगर तहसील के बाढ़ से प्रभावित डेढ़ दर्जन गांवों में अब प्रशासनिक हलचल शुरू हो सकी है। डीएम की फटकार के बाद इन गांवों में सरकारी अमला पहुंचा। मगर दवाईयों के नाम पर ओआरएस के पैकेट व क्लोरीन गोलियां बांटकर खानापूर्ति की जा रही है।
बाराबंकी। घाघरा नदी का जलस्तर तो धीरे-धीरे घट रहा है मगर बाढ़ पीड़ितों की दुश्वारियां नहीं कम हो रही हैं। लगभग तीन दर्जन गांवाें में अब भी पानी भरा है। ऊपर से ग्रामीणों को परिवार के साथ ही मवेशियों की भूख मिटाने की चिंता सताने लगी है। प्रशासनिक इमदाद की स्थिति प्रभावित क्षेत्रों के लिए ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ साबित हो रही है। यही नहीं रुक-रुककर हो रही बारिश भी तराई के ग्रामीणों के लिए मुसीबत बनी है। नदी रविवार शाम तक खतरे के निशान 106.070 मीटर से सात सेंटीमीटर ऊपर ठहरी थी।
मालूम हो कि पिछले एक पखवारे से घाघरा नदी के कड़े तेवरों ने तराई इलाके में दहशत फैला रखा है। खतरे के निशान 106.070 मीटर से ऊपर 31 जुलाई से नदी का जलस्तर चल रहा है। घाघरा ने सबसे पहले सिरौलीगौसपुर के पांच व रामसनेहीघाट तहसील के एक गांव समेत नदी के उस पार बसे आधा दर्जन गांवों को पूरी तरह से जलमग्न कर दिया। करीब 15 हजार बाढ़ पीड़ित गांव छोड़कर एल्गिन चरसड़ी तटबंध पर डेरा डाले हैं। अभी प्रशासनिक अमला इन ग्रामीणों की मदद के लिए पहुंचा भी नहीं था। तभी रामनगर तहसील के डेढ़ दर्जन और सिरौलीगौसपुर के अलीनगर रानीमऊ तटबंध के किनारे बसे एक दर्जन गांव की ओर घाघरा ने रुख कर दिया। तीन दर्जन गांवाें में तबाही मचाने के बाद भी घाघरा के तेवर बरकरार हैं। प्रभावित गांवों में अब संक्रामक रोगों का खतरा मुंह फैलाए हुए है।
एल्गिन चरसड़ी के निकट बसे परसावल, नैपुरा, पारा, बेहटा, रायपुर मांझा व कमियार के ग्रामीणों का एकमात्र सहारा बांध ही है। ग्रामीण बांध पर ही डेरा डालकर गांव में पानी के सूखने का इंतजार कर रहे हैं। बांध पर प्रशासन ने राहत के नाम पर राशन, पेयजल की व्यवस्था की व्यवस्था तो करा दी है। मगर मेडिकल व पशुओं के टीकाकरण की सुविधा दिलाने के दावे खोखले साबित हो रहे हैं। रामनगर तहसील के बाढ़ से प्रभावित डेढ़ दर्जन गांवों में अब प्रशासनिक हलचल शुरू हो सकी है। डीएम की फटकार के बाद इन गांवों में सरकारी अमला पहुंचा। मगर दवाईयों के नाम पर ओआरएस के पैकेट व क्लोरीन गोलियां बांटकर खानापूर्ति की जा रही है।