बांदा। बिसंडा ब्लाक का शिव गांव कर्ज में बुरी तरह जकड़कर रह गया है। पूरे गांव में बैंक और साहूकारों का लगभग पांच करोड़ रुपए का कर्ज बताया गया है। कर्ज से मुक्ति पाने के लिए निराश लोग मौत को चुन रहे हैं। पिछली तीन सालों में किसान परिवारों के सात सदस्यों ने आत्महत्या कर ली हैं। इनमें तीन महिलाएं भी हैं। हालांकि कड़वा सच यही है कि आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवार अभी भी आर्थिक तंगी से उभर नहीं पाए हैं।
लगभग आठ हजार की आबादी वाले शिव गांव में ज्यादातर अनुसूचित जाति और पिछड़ी जाति के लोग आबाद हैं। जीविका का मुख्य साधन खेतीबाड़ी है। सिंचाई के संसाधन नहीं हैं। सूखा जैसे मौसम की मार ने यहां खेती को भी चौपट कर दिया है। लगभग हरेक किसान कर्जदार हो चुका है। कर्ज अदायगी का कोई रास्ता नजर न आने पर यहां पिछले तीन सालों में आधा दर्जन से ज्यादा किसान परिवारों के सदस्यों ने खुदकुशी कर ली है। वर्ष 2009 में किरन पत्नी धनंजय ने फांसी लगा ली। पति पर 25 हजार का साहूकारों का कर्ज था। 2010 में राजरानी पत्नी हंसा ने आत्मदाह करके जान दे दी। इस परिवार की आर्थिक हालत भी काफी दयनीय थी। लगभग 40 हजार रुपए का कर्ज था। 2011 में टिरूआ पुत्र बोगा मौर्य ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। उस पर भी कर्ज था। वर्ष 2011 में ही रमेश पुत्र बदलुवा ने फांसी लगा ली। वह 80 हजार रूपए का बैंक कर्जदार बताया गया है। इसी तरह फूल कुमारी पत्नी प्रेमा, सुशीला पत्नी लल्लू, कल्लू सिंह पुत्र रामनरेश ने भी तंगहाली और कर्ज के चलते आत्महत्याएं कर लीं। विद्याधाम समिति के मंत्री राजाभइया बताते हैं कि पूरा गांव लगभग पांच करोड़ रुपए का कर्जदार है। बड़ी संख्या में ग्रामीण पलायन भी कर गए हैं। पलायन करने वालों की संख्या लगभग दो हजार के आसपास है।