बांदा। बुंदेलखंड में किसानों पर कर्ज लाइलाज मर्ज सा बन गया है। लगातार निराश किसान मौत की राह चुन रहे हैं। इसके बावजूद उनके परिवारों को ढांढस बंधाने तक कुछ बड़ा अफसर या नेता नहीं पहुंचता। कुछ इसी प्रकार के हालात बिसंडा के शिव गांव में भी देखने को मिल रहे हैं। आत्महत्या कर बैठे किसान के आश्रितों का अब कोई पुरसाहाल नहीं है। जिस गम में पिता चल बसा अब उसी बेटी की चिंता में मां डूबी हुई है। केवल कानूनगो और लेखपाल आए और मदद का आश्वासन देकर चले गए।
बिसंडा क्षेत्र के शिव गांव में 45 वर्षीय किसान संतोष सिंह ने 10 मई की रात घर में खपरैल पर रस्सी बांधकर फांसी लगा ली थी। उसके पास बंटवारे में मिली आठ बीघा जमीन थी। पुत्री रेनू की दो वर्ष पूर्व शादी के लिए पांच बीघा जमीन एक लाख में गिरवीं रख दी थी। फिर दूसरी पुत्री अमृता की शादी के लिए किसान क्रेडिट कार्ड से इलाहाबाद क्षेत्रीय बैंक की मिलाथू शाखा से 80 हजार रुपए कर्ज लिया था। 10 हजार रुपए का कर्ज साहूकारों का था। भाई राजा सिंह के मुताबिक तीसरी पुत्री भी शादी के काबिल हो गई है। संतोष उसके लिए परेशान था। संतोष सिंह भले ही तमाम झंझटों से मुक्त हो गया हो लेकिन अब उससे भी ज्यादा मुसीबतें उसके परिवार पर हैं। विधवा को यह समझ में नहीं आ रहा कि बेटी की शादी और दो अन्य बच्चों का पालन-पोषण व कैसे करेगी। हमदर्दी जताने वाले नेता सिर्फ कोरे बयानों तक सीमित रहे। कोई भी बड़ा नेता इस शोकग्रस्त परिवार के दरवाजे पर झांकने नहीं गया। अफसरों की संवेदनहीनता का आलम यह है कि वह भी किसान के दरवाजे नहीं फटके। अलबत्ता अखबारों में छपने के बाद राजस्व विभाग के कानूनगो और लेखपाल संतोष सिंह के बच्चों को सहायता दिलाने का आश्वासन देकर चले आए।