बांदा। स्वच्छ शौचालय योजना में जमकर हुई धांधली और अंधेरगर्दी की परतें गांव-गांव हो रही जांचों में खुलकर सामने आ रही हैं। ग्राम प्रधान और सचिव की सांसें अटकी हुई हैं। अपनी गर्दन बचाने को जांच प्रभावित करने के तमाम हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।
वर्ष 2003-04 से अब तक स्वच्छ शौचालयों के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं। इस योजना में बीपीएल परिवार भी शामिल किए गए हैं। योजना पर अमल कराने का जिम्मा प्रधान और सचिव को संयुक्त रूप से मिला हुआ है। लेकिन इसकी जमीनी हकीकत अब सामने आने लगी है। जिलाधिकारी के आदेश पर गठित की र्गईं जांच टीमें योजना की पोल खोल रही हैं। इसमें लगाए गए अध्यापक घर-घर जाकर सत्यापन कर रहे हैं। अध्यापकों का कहना है कि जांच बिंदुओं और मापदंडों की सही जानकारी न होने से सही जांच नहीं हो पा रही। दूसरी तरफ गांवों के सचिव जांच करने वाले सेक्टर अधिकारियों से मिलना तो दूर अपना फोन नंबर भी नहीं दे रहे। अपने पक्ष में जांच रिपोर्ट के लिए अध्यापकों पर दबाव बनाने का सिलसिला चल रहा है। पंचायती राज विभाग के ब्लाक स्तरीय अधिकारी और कर्मचारी भी इसमें लीपापोती कर रहे हैं।
जांच में लगाए गए सेक्टर प्रभारियों को लाभार्थियों की सूची नहीं दी गई। सचिव द्वारा दी जा रही सूची पर ही जांच हो रही है। लाभार्थी के बीपीएल क्रमांक वाला कालम जांच प्रारूप से गायब है। सिर्फ लाभार्थी की पहचान करने वाला कालम रखा गया है। बीपीएल सूची जानबूझकर जांच कर रहे अध्यापकों को नही उपलब्ध कराई जा रही।
बड़ोखर ब्लाक के गंछा गांव के एडीओ का मानना है कि सचिव और ग्राम प्रधान जांच में अड़ंगेबाजी कर रहे हैं। ताकि घपले की पोल न खुल पाए। इस गांव में 130 शौचालयों में मात्र 25 पूर्ण हैं। 17 अधूरे हैं। 85 शौचालय बने ही नहीं। रामसुरेश साहू और अब्दुल वहीद सहायक अध्यापक ने यहां सत्यापन किया है।