बांदा। नगरीय विकास अभिकरण (डूडा) में की गईं गड़बड़ियों पर दो माह पूर्व निलंबित किए गए लिपिक के विरुद्ध एफआईआर और गबन राशि की वसूली कार्रवाई अब तक नहीं हो पाई। अंतत: आरोपी लिपिक शुक्रवार को सेवानिवृत्त हो गया। इस बारे में राज्य नगरीय विकास अभिकरण (सूडा) के निदेशक का जिलाधिकारी को लिखा गया पत्र भी फाइलों में कैद होकर रह गया।
कांशीराम आवासीय कालोनी के आवंटन में गड़बड़ी समेत कई अनियमितताओं के आरोपों पर सहायक परियोजना अधिकारी (डूडा) पवन कुमार शर्मा और कनिष्ठ लिपिक प्रेमचंद्र याज्ञिक को 17 मार्च 2012 को निलंबित कर उन्हें लखनऊ मुख्यालय से संबद्ध कर दिया गया था। इसी के बाद निदेशक चिंतामणि ने 26 मार्च को डीएम शीतल वर्मा को अर्द्धशासकीय पत्र भेजकर शासनादेश का हवाला देते हुए कहा था कि डूडा के कार्याें के पर्यवेक्षण की जिम्मेदारी जिलाधिकारी एवं परियोजना निदेशक की है। समस्त स्वीकृतियां परियोजना निदेशक की संस्तुति पर डीएम ही प्रदान करता है। निदेशक ने अपने पत्र में यह भी कहा था कि डूडा अध्यक्ष होने के नाते जिलाधिकारी का दायित्व है कि वह सुनिश्चित करें कि जिन योजनाओं के लिए डूडा को धनराशि दी गई है, उसी में सदुपयोग किया जाए। लेकिन खेदजनक है कि डूडा स्तर पर कहीं न कहीं शिथिलता बरती गई है, जिससे यह गड़बड़ियां हुई हैं। निदेशक ने डीएम से कहा था कि इस प्रकरण को गंभीरता से देखते हुए संबंधित कर्मियों के विरुद्ध सुसंगत धाराओं में तत्काल एफआईआर दर्ज कराएं। साथ यदि धनराशि गबन की गई है तो उसकी तत्काल वसूली कार्रवाई कराएं।
निदेशक के इस पत्र पर डीएम ने तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट को कार्रवाई के आदेश कर दिए। सिटी मजिस्ट्रेट ने सहायक परियोजना अधिकारी (डूडा) को कार्रवाई के आदेश दिए। सहायक परियोजना अधिकारी मोहम्मद अबरार का कहना है कि लिपिक प्रेमचंद्र की सर्विस पत्रावली लखनऊ मुख्यालय में जमा हो गई है।
इन्हीं कागजी कार्रवाइयों के बीच शुक्रवार (18 मई) को आरोपी लिपिक प्रेमचंद्र याज्ञिक सेवानिवृत्त हो गए। उनके विरुद्ध न तो एफआईआर हुई न रिकवरी की कार्रवाई। इस बारे में सहायक परियोजना अधिकारी बहुत स्पष्ट जवाब नहीं दे सके।