नरहीं। मोक्षदायिनी गंगा को बचाने की जो मुहिम साधु-संतों ने चलाया है, वह वास्तव में स्वागत योग्य है,यह कटु सत्य है कि गंगा का जल अमृत के समान नहीं रहा। सरकार ने डाल्फिन मछली को राष्ट्रीय जलीय जीव भले ही घोषित कर दिया हो,लेकिन उसकी सुरक्षा के प्रति गंभीर नहीं दिख रही है। आलम यह है कि कई प्रजातियां तो दो दशकों से गंगा में दिखाई ही नहीं दे रही हैं। मछुआरों की मानें तो यदि मत्स्य विभाग ने इस पर ध्यान नहीं दिया तो गंगा नदी से कई प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी। गंगा को राष्ट्रीय नदी व डाल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित करने के बाद एक बार लगा कि गंगा में गंगा में पानी बढ़ने के साथ ही मछलियों की लुप्त हो रही विभिन्न प्रजातियां फिर से दिखने लगेंगी। लेंकिन गंगा में पाई जाने हिल्सा मांगुर, सिंहिल, गोडर (बड़ा झिंगा) प्रजाति की मछलियां करीब दो दशक से गायब हैं। इन मछलियों की बात तो दिगर है राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित डाल्फिन की संख्या भी तेजी से घटती जा रही है। ऐसा होना गंगा नदी के भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है। खमीरपुर डीह निवासी रूदल प्रसाद, भागीरथी बिंद, दयानंद मछुआ कई दशकों से गंगा घाटों से मछली खरीदकर शहरों में बेचने का काम करते हैं। मछली के कारोबारियों ने बताया कि दो दशक पूर्व गंगा नदी में हिल्सा, मांगुर सिंहिल, गोडर, प्रजाति की मछलियां मिलती थी। अब यह मछलियां गंगा नदी में नहीं मिलती हैं। इनका दावा है कि 20 वर्षों से यह मछलियां किसी के जाल में नहीं फंसी न ही मछली बाजार में दिख रही हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि यह मछलियां विलुप्त हो गई। यह मत्स्य विभाग और सरकार के लिए गंभीर चिंता का विषय है। गंगा नदी में तेजी से मछलियों की उक्त प्रजातियों में कमी आ रही है। देशी प्रजाति की मछलियां कम मिल रही है। यही वजह है कि आंध्र प्रदेश से आने वाली केमिकल युक्त मछलियां शहरों व बाजारों में देशी मछलियाें की कमी को पूरा कर रही हैं। मछुआरों ने मत्स्य विभाग का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराते हुए गंगा में लुप्त हो रही मछलियों की सुरक्षा की मांग की है। उधर इस संबंध में मुख्य कार्यकारी अधिकारी अशोक कुमार शर्मा ने बताया कि गंगा नदी में घटते जल स्तर से मछलियों को बच्चा जनने की क्षमता कम हो रही है। साथ ही गंगा में पाई जा रही विदेशी मछलियां हिल्सा, मांगुर सिंहिल, गोडर आदि मछलियों की प्रजाति के अंड़ों व बच्चों को खा जाती है। जिससे इन प्रजाति के मछलियां विलुप्त हो रही हैं। यदि गंगा नदी का जलस्तर बढ़ जाए और विदेशी मछलियों को गंगा नदी से बाहर कर दिया जाए तो देशी मछलियों में अच्छी वृद्धि हो सकती है।
नरहीं। मोक्षदायिनी गंगा को बचाने की जो मुहिम साधु-संतों ने चलाया है, वह वास्तव में स्वागत योग्य है,यह कटु सत्य है कि गंगा का जल अमृत के समान नहीं रहा। सरकार ने डाल्फिन मछली को राष्ट्रीय जलीय जीव भले ही घोषित कर दिया हो,लेकिन उसकी सुरक्षा के प्रति गंभीर नहीं दिख रही है। आलम यह है कि कई प्रजातियां तो दो दशकों से गंगा में दिखाई ही नहीं दे रही हैं। मछुआरों की मानें तो यदि मत्स्य विभाग ने इस पर ध्यान नहीं दिया तो गंगा नदी से कई प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी।
गंगा को राष्ट्रीय नदी व डाल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित करने के बाद एक बार लगा कि गंगा में गंगा में पानी बढ़ने के साथ ही मछलियों की लुप्त हो रही विभिन्न प्रजातियां फिर से दिखने लगेंगी। लेंकिन गंगा में पाई जाने हिल्सा मांगुर, सिंहिल, गोडर (बड़ा झिंगा) प्रजाति की मछलियां करीब दो दशक से गायब हैं। इन मछलियों की बात तो दिगर है राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित डाल्फिन की संख्या भी तेजी से घटती जा रही है। ऐसा होना गंगा नदी के भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है। खमीरपुर डीह निवासी रूदल प्रसाद, भागीरथी बिंद, दयानंद मछुआ कई दशकों से गंगा घाटों से मछली खरीदकर शहरों में बेचने का काम करते हैं। मछली के कारोबारियों ने बताया कि दो दशक पूर्व गंगा नदी में हिल्सा, मांगुर सिंहिल, गोडर, प्रजाति की मछलियां मिलती थी। अब यह मछलियां गंगा नदी में नहीं मिलती हैं। इनका दावा है कि 20 वर्षों से यह मछलियां किसी के जाल में नहीं फंसी न ही मछली बाजार में दिख रही हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि यह मछलियां विलुप्त हो गई। यह मत्स्य विभाग और सरकार के लिए गंभीर चिंता का विषय है। गंगा नदी में तेजी से मछलियों की उक्त प्रजातियों में कमी आ रही है। देशी प्रजाति की मछलियां कम मिल रही है। यही वजह है कि आंध्र प्रदेश से आने वाली केमिकल युक्त मछलियां शहरों व बाजारों में देशी मछलियाें की कमी को पूरा कर रही हैं। मछुआरों ने मत्स्य विभाग का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराते हुए गंगा में लुप्त हो रही मछलियों की सुरक्षा की मांग की है। उधर इस संबंध में मुख्य कार्यकारी अधिकारी अशोक कुमार शर्मा ने बताया कि गंगा नदी में घटते जल स्तर से मछलियों को बच्चा जनने की क्षमता कम हो रही है। साथ ही गंगा में पाई जा रही विदेशी मछलियां हिल्सा, मांगुर सिंहिल, गोडर आदि मछलियों की प्रजाति के अंड़ों व बच्चों को खा जाती है। जिससे इन प्रजाति के मछलियां विलुप्त हो रही हैं। यदि गंगा नदी का जलस्तर बढ़ जाए और विदेशी मछलियों को गंगा नदी से बाहर कर दिया जाए तो देशी मछलियों में अच्छी वृद्धि हो सकती है।
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