बलिया। जिले के विभिन्न विकास खंडों में स्थापित सरकारी गेहूं क्रय केंद्रों की पुरसाहाल नहीं है। दुर्व्यवस्था का आलम यह है कि अभी तक 50 फीसदी से अधिक क्रय केंद्रों के ताले तक नहीं खुले हैं और न ही खरीद की गई है। सहकारी क्रय केंद्रों पर बिचौलिएं हावी हैं। किसान अपनी फसल को औने-पौने दाम बेचने के लिए विवश हैं। इस दौरान किसानों को आर्थिक एवं पारिश्रमिक चपत का भुगतान कहां से कौन करेगा? यक्ष प्रशभन बना हुआ है।
गौर करें तो जनपद में कुल 66 क्रय केंद्रों की स्थापना की गई। इनमें नैफेड, कर्मचारी कल्याण निगम, एग्रो, साधन सहकारी समिति, पीसीएफ, विपणन विभाग आदि के कंधों खरीददारी की जिम्मेदारी सौंपी गई। इनमें विपणन विभाग की ओर से खरीददारी तो की जा रही है लेकिन अन्य सारी एजेंसियां बोरे के अभाव में खरीददारी से मुंह फेरे हुए हैं। इनमें से कुछेक पर किसानों की गेहूं खरीद होती भी है तो वह मानक के अनुरूप नहीं होती। वहीं, विपणन विभाग भी गिने-चुनी मात्रा में गेहूं की खरीद कर रहा है। बानगी के तौर पर बेरूआरबारी ब्लाक में देखा जाए तो एक विपणन विभाग एवं दूसरा राजपुर में कर्मचारी कल्याण निगम की एजेंसी की स्थापना किसानों की फसल खरीद को की गई। लेकिन एजेंसी का मुख्य दरवाजा कभी खुलता ही नहीं। एकाध लोगों की खरीद होने पर अक्सर यह नजर आता है कि किसानों से एक कुंतल की जगह सात से आठ किलोग्राम गेहूं अधिक लिया जाता है। अधिकांश किसानों का कहना है कि सरकारी एजेंसियों पर खरीद के नाम पर तरह-तरह के कागजात एवं प्रमाण पत्र मांगकर उत्पीड़ित किया जा रहा है। किसानों को दुश्वारियों का सामना करना पड़ रहा है।