सिकंदरपुर (संवाददाता)। स्थानीय क्षेत्र सहित ग्रामीण इलाकों में मौजूदा समय में सूदखोरों की सक्रियता से गरीब धन शोषण के पात्र बनकर रह गए हैं। सूदखोरों का मकड़जाल इस कदर हावी है कि गरीबों को मजबूरी में ऐसे धन के कुबेरों से ब्याज पर ऋण लेने के बदले असीमित संपत्ति चुकानी पड़ती है।
स्थानीय कस्बा सहित ग्रामीण इलाकों में दिनों दिन सूदखोरों का दबदबा बढ़ता ही जा रहा है। क्षेत्र में बिना किसी रोकटोक स्थानीय प्रशासन से सांठगांठ कर दर्जनों सूदखोरों का गिरोह सक्रिय है। जो आम नागरिकों के रूप में सरकार को लाखों रुपये का चूना लगाते हुए धड़ल्ले से सूदखोरी का धंधा कर रहे हैं। सूदखोर पांच से 10 रुपये सैकड़ा के हिसाब से गरीब, मजलूम एवं जरूरतमंद लोगों को बिना किसी लाइसेंस के पैसा आदान-प्रदान कर मनमाने तरीके से धन वसूली कर रहे हैं। मूलधन अलग, ब्याज चुकाने के लिए घर की महिलाओं का जेवरात एवं अपनी जमीन-जायदाद आदि बेचने के बाद भी सूदखोरों के मकड़जाल से उन्हें निजात नहीं मिल पाती। जानकार बताते हैं कि सूदखोरों के मकड़जाल में फंसने का कारण बैंक अधिकारी एवं कर्मचारियों की ओर से लोन लेने वाले बच्चों की कागजी कार्रवाई लंबी प्रक्रिया में डाल देना व कमीशन के चक्कर में महीनों तक बैंक का चक्कर लगाना है। पिछले पांच वर्ष के अंतराल में ऐसे कई मामले प्रकाश में आए जिसमें सूदखोरों के चक्कर में फंसे लोग इसकी शिकायत स्थानीय पुलिस से किए। पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए कई सूदखोरों को अपनी गिरफ्त में ले तो लिया लेकिन लेनदेन कर फिर उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया। इन गोरखधंधों से सरकार के लाखों-लाखों रुपये का टैक्स सूदखोरों द्वारा घटा दिया जा रहा है। लेकिन स्थानीय प्रशासन मूक दर्शक की भूमिका निभा रही है। देखना यह है कि प्रदेश सरकार गोरखधंधा करने वाले एवं बढ़ावा देने वाले प्रशासन पर अंकुश लगा पाने में कहां तक सक्षम है।