बलिया। सियासत के खेल में गंगा फेल हुईं तो इसकी जिम्मेदार देश की सवा अरब जनता होगी। वाराणसी के बेनियाबाग में आयोजित गंगा मुक्ति महासंग्राम में उत्तराखंड की टिहरी परियोजना से गंगा की मुक्ति और इलाहाबाद कोर्ट के आदेशानुसार नरौरा बांध से गंगा में 50 प्रतिशत पानी छोड़ते रहने का जिक्र तक नहीं होना कुछ संतों, महंतों और केंद्र सरकार के बीच नूराकुश्ती ही प्रतीत हो रहा है। सम्मेलन में गंगा सुरक्षा के लिए पारित सात प्रस्ताव गंगा की आजादी का कहीं कोई संकेत नहीं दे रहे हैं। सम्मेलन में जिन बिंदुओं पर मांग की गई है उसे सरकार ने पहले से मान लिया है। उक्त बातें गंगामुक्ति और प्रदूषण विरोधी अभियान के राष्ट्रीय प्रभारी रमाशंकर तिवारी ने कहीं।
श्री तिवारी वाराणसी में सम्मेलन के निष्कर्षों पर पत्रकारों से वार्ता कर रहे थे। कहा कि गंगा की आजादी का आंदोलन किसी सरकार का अथवा सत्ता के खिलाफ नहीं, बल्कि उस विश्वव्यापी व्यवस्था के विरोध में भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का सहारा है। कहा विश्व की आर्थिक शक्तियां गंगा को गुलाम बना चुकी हैं, जिसकी आजादी की रक्षा नहीं हुई तो प्रकृति की क्रूरता को सह पाना मानव के लिए आसान नहीं होगा। उन्होंने जानकारी दी कि गंगा की आजादी की प्रथम किरण कानपुर के सर शैय्या घाट पर 31 मई को फूटेगी, जिसमें गंगा संदर्भित कानूनी पंचों की भी पड़ताल होगी।
उन्होंने ने कहा कि गंगा की आजादी के लिए जो संघर्ष चल रहा है। उसमें बिहार और बंगाल की अभी कोई भागीदारी नहीं हुई है, जिसके चलते आंदोलन राष्ट्रीय धार नहीं पकड़ पा रहा है। इसके लिए गांव एवं गंगा कार्यक्रम के तहत जनजागरण को 23 मई को बक्सर के रामरेखा घाट पर रणनीति तय की जाएगी। गंगाभक्त 24 मई को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी गंगा के सच से अवगत कराएंगे। उन्होंने कहा कि देश में बहने वाली कुल 378 नदियों में बढ़ते प्रदूषण के लिए औद्योगिक तथा आर्थिक क्रांति मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं।
बलिया। सियासत के खेल में गंगा फेल हुईं तो इसकी जिम्मेदार देश की सवा अरब जनता होगी। वाराणसी के बेनियाबाग में आयोजित गंगा मुक्ति महासंग्राम में उत्तराखंड की टिहरी परियोजना से गंगा की मुक्ति और इलाहाबाद कोर्ट के आदेशानुसार नरौरा बांध से गंगा में 50 प्रतिशत पानी छोड़ते रहने का जिक्र तक नहीं होना कुछ संतों, महंतों और केंद्र सरकार के बीच नूराकुश्ती ही प्रतीत हो रहा है। सम्मेलन में गंगा सुरक्षा के लिए पारित सात प्रस्ताव गंगा की आजादी का कहीं कोई संकेत नहीं दे रहे हैं। सम्मेलन में जिन बिंदुओं पर मांग की गई है उसे सरकार ने पहले से मान लिया है। उक्त बातें गंगामुक्ति और प्रदूषण विरोधी अभियान के राष्ट्रीय प्रभारी रमाशंकर तिवारी ने कहीं।
श्री तिवारी वाराणसी में सम्मेलन के निष्कर्षों पर पत्रकारों से वार्ता कर रहे थे। कहा कि गंगा की आजादी का आंदोलन किसी सरकार का अथवा सत्ता के खिलाफ नहीं, बल्कि उस विश्वव्यापी व्यवस्था के विरोध में भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का सहारा है। कहा विश्व की आर्थिक शक्तियां गंगा को गुलाम बना चुकी हैं, जिसकी आजादी की रक्षा नहीं हुई तो प्रकृति की क्रूरता को सह पाना मानव के लिए आसान नहीं होगा। उन्होंने जानकारी दी कि गंगा की आजादी की प्रथम किरण कानपुर के सर शैय्या घाट पर 31 मई को फूटेगी, जिसमें गंगा संदर्भित कानूनी पंचों की भी पड़ताल होगी।
उन्होंने ने कहा कि गंगा की आजादी के लिए जो संघर्ष चल रहा है। उसमें बिहार और बंगाल की अभी कोई भागीदारी नहीं हुई है, जिसके चलते आंदोलन राष्ट्रीय धार नहीं पकड़ पा रहा है। इसके लिए गांव एवं गंगा कार्यक्रम के तहत जनजागरण को 23 मई को बक्सर के रामरेखा घाट पर रणनीति तय की जाएगी। गंगाभक्त 24 मई को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी गंगा के सच से अवगत कराएंगे। उन्होंने कहा कि देश में बहने वाली कुल 378 नदियों में बढ़ते प्रदूषण के लिए औद्योगिक तथा आर्थिक क्रांति मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं।