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साब! कटान पीड़ितों को बचाइए या बसाइए
Ballia
Updated Mon, 21 May 2012 12:00 PM IST
मझौंवा। गंगा के कटान से बचाने के लिए अब तक 13 स्परों पर एक अरब रुपये खर्च किए जा चुके हैं। बावजूद इसके न तो गांव ही बचा न ही गांवों को बचाने के लिए स्पर ही अपनी सुरक्षा कर सके। परिणामस्वरूप गंगा की बेलगाम लहरों ने कई बार एनएन-31 की अग्नि परीक्षा लेकर प्रशासन की सांसे रोक दीं। अब बाढ़ आने में गिने-चुने दिन शेष रह गए हैं। इसको लेकर गंगा तटवर्ती लोगों की माथे पर चिंता की लकीरें साफ नजर आने लगी हैं। वहीं बाढ़ विभाग की सुस्ती को लेकर तटवर्ती लोगों में खासा आक्रोश है।
हल्दी थाना क्षेत्र के मझौंवा से लेकर पचरूखिया के बीच अब तक 13 स्परों के निर्माण में अब तक करीब एक अरब रुपये से अधिक खर्च हो चुके हैं। इन स्परों की हालात यह है यह अपने अप और डाउन में 200 मीटर की रेंज तक सुरक्षा करने की क्षमता बताई जाती है। लेकिन यदि स्परों को देखा जाए तो उनकी सच्चाई कुछ और ही है। यहां न तो वे अपनी ही सुरक्षा कर पाते हैं न ही तटवर्ती गांवों की और न ही एनएच-31 की मुश्किलों को ही कम करने में सक्षम हैं। कुछ दिन पहले विभाग के मंत्री का शिवपाल यादव ने निर्देश जारी किया था कि 20 जून तक बाढ़ से संबंधित हर आवश्यक कार्य पूरा कर लिया जाए। लेकिन अब भी बाढ़ विभाग के अधिकारी चैन की बंशी बजा रहे हैं। उनका कहना है कि शासन को प्रस्ताव बनाकर भेज दिया गया है धन आते ही बाढ़ से सुरक्षा के लिए कार्य शुरू किया जाएगा। वहीं तटवर्ती बाशिंदे शंभूनाथ मिश्र, रविंद्र मिश्र, पं. सुधाकर मिश्र, तेज नारायण मिश्र का कहना है कि विभाग अब तक कार्य क्यों नहीं शुरू किया? क्या अब बचे कुछ चंद दिनों में धन आने के बाद अपना कार्य समय से पूरा कर लेेंगे या हर साल की तरह हरे पेड़ों की बलि चढ़ाकर भगवान भरे तटवर्ती बाशिंदों को छोड़ देेंगे। गत वर्षों गंगा की कटान से बेघर हुए निर्मल खरवार, देऊ बिंद, अवधेश बिंद, गामा, उपेंद्र पासवान आदि का कहना है कि डीएम साहब हम पीड़ितों को बचाइए नहीं तो कहीं भूमि की व्यवस्था कर हमें बसाइए, ताकि हमारे नौनिहालों को खाना और शिक्षा तो मिले। धन आने के बाबत बाढ़ विभाग के सहायक अभियंता लालचंद पांडेय ने बताया कि जल्द ही स्परों की मरम्मत और पीचिंग का कार्य शुरू कर दिया जाएगा। विभाग इसके लिए तत्पर है।
मझौंवा। गंगा के कटान से बचाने के लिए अब तक 13 स्परों पर एक अरब रुपये खर्च किए जा चुके हैं। बावजूद इसके न तो गांव ही बचा न ही गांवों को बचाने के लिए स्पर ही अपनी सुरक्षा कर सके। परिणामस्वरूप गंगा की बेलगाम लहरों ने कई बार एनएन-31 की अग्नि परीक्षा लेकर प्रशासन की सांसे रोक दीं। अब बाढ़ आने में गिने-चुने दिन शेष रह गए हैं। इसको लेकर गंगा तटवर्ती लोगों की माथे पर चिंता की लकीरें साफ नजर आने लगी हैं। वहीं बाढ़ विभाग की सुस्ती को लेकर तटवर्ती लोगों में खासा आक्रोश है।
हल्दी थाना क्षेत्र के मझौंवा से लेकर पचरूखिया के बीच अब तक 13 स्परों के निर्माण में अब तक करीब एक अरब रुपये से अधिक खर्च हो चुके हैं। इन स्परों की हालात यह है यह अपने अप और डाउन में 200 मीटर की रेंज तक सुरक्षा करने की क्षमता बताई जाती है। लेकिन यदि स्परों को देखा जाए तो उनकी सच्चाई कुछ और ही है। यहां न तो वे अपनी ही सुरक्षा कर पाते हैं न ही तटवर्ती गांवों की और न ही एनएच-31 की मुश्किलों को ही कम करने में सक्षम हैं। कुछ दिन पहले विभाग के मंत्री का शिवपाल यादव ने निर्देश जारी किया था कि 20 जून तक बाढ़ से संबंधित हर आवश्यक कार्य पूरा कर लिया जाए। लेकिन अब भी बाढ़ विभाग के अधिकारी चैन की बंशी बजा रहे हैं। उनका कहना है कि शासन को प्रस्ताव बनाकर भेज दिया गया है धन आते ही बाढ़ से सुरक्षा के लिए कार्य शुरू किया जाएगा। वहीं तटवर्ती बाशिंदे शंभूनाथ मिश्र, रविंद्र मिश्र, पं. सुधाकर मिश्र, तेज नारायण मिश्र का कहना है कि विभाग अब तक कार्य क्यों नहीं शुरू किया? क्या अब बचे कुछ चंद दिनों में धन आने के बाद अपना कार्य समय से पूरा कर लेेंगे या हर साल की तरह हरे पेड़ों की बलि चढ़ाकर भगवान भरे तटवर्ती बाशिंदों को छोड़ देेंगे। गत वर्षों गंगा की कटान से बेघर हुए निर्मल खरवार, देऊ बिंद, अवधेश बिंद, गामा, उपेंद्र पासवान आदि का कहना है कि डीएम साहब हम पीड़ितों को बचाइए नहीं तो कहीं भूमि की व्यवस्था कर हमें बसाइए, ताकि हमारे नौनिहालों को खाना और शिक्षा तो मिले। धन आने के बाबत बाढ़ विभाग के सहायक अभियंता लालचंद पांडेय ने बताया कि जल्द ही स्परों की मरम्मत और पीचिंग का कार्य शुरू कर दिया जाएगा। विभाग इसके लिए तत्पर है।