बलिया। गंगा मुक्ति आंदोलन के सवाल पर प्रोफेसर जीडी अग्रवाल और प्रधानमंत्री के दूतद्वय शत्रुघभन सिंह, राजीव शर्मा द्वारा वाराणसी के विद्यापीठ में हुई वार्ता को सार्वजनिक नहीं करना गंगा और आंदोलनकारियों के साथ खिलवाड़ है। जिसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। केंद्र सरकार आंदोलन की धार को भोथरा करना चाहती है, जिसमें आंदोलन में सक्रिय कुछ संतों की भूमिका भी संदिग्ध लगने लगी है। उक्त बातें गंगा मुक्ति और प्रदूषण विरोधी अभियान के राष्ट्रीय प्रभारी रमाशंकर तिवारी ने काशी में संतों द्वारा केंद्र को गंगा मुद्दे पर स्पष्ट नीति के लिए 24 घंटे की चेतावनी देने के क्रम में पत्रकारों से वार्ता करते हुए कहीं।
श्री तिवारी ने गत दिनों लोकसभा में गंगा मुद्दे पर हुई चर्चा का जिक्र करते हुए कहा कि पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन द्वारा गंगा पर बनी या बनरही 70 परियोजनाओं को राष्ट्रहित में बताना भारतीय संस्कृति तथा गंगा से बेफिक्र होने का प्रमाण है। कहा कि गंगा को विचलित करने की योजनाओं में शामिल सरकारें कैसे निश्चिंत रह सकती हैं। श्री तिवारी ने बताया कि उत्तराखंड के लोग गंगा का भोग एवं दिल्ली के निवासी गंगा नहर का भरपूर दोहन करें, जबकि देश के शेष नागरिकों को गंगा अर्पण, तर्पण के लिए भी नसीब न हो। यह कैसा न्याय है? उन्होंने गंगा को लेकर चल रही किसी भी वार्ता को सार्वजनिक बनाए रखने की मांग केंद्र सरकार से की। कहा कि देश वासियों को गंगा की स्वतंत्रता से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। आजाद गंगा ही समस्या का निदान है।