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बागपत। जिले में बेटा-बेटी एक समान का नारा पूरी तरह से खोखला साबित हो रहा है। यदि यहां की वास्तविकता जाननी है तो जरा देर किसी अस्पताल के जच्चा-बच्चा वार्ड में ठहरकर देखिए। यह देखकर दुख होता है कि बागपत में बेटी के जन्म पर मातम मनाया जाता है। बेटी पैदा होने का पता चलते ही पूरे परिवार की आंखों से आंसू गिरने लगते हैं। सीएचसी में यह रोज का किस्सा है। इसकी गवाह रहने वाले स्टाफ बताते हैं कि लोग बेटी होने पर किस प्रकार से प्रतिक्रिया देते हैं।
स्वास्थ्यकर्मी सरिता दो किस्से बताती हैं - चार दिन पहले एक महिला ने बेटे को जन्म दिया। रात के दो बजे थे। खुशी से पूरा परिवार झूम उठा। उसका पति आधी रात को ही मिठाई की दुकान खुलवाकर मिठाई ले आया।
उसी दिन एक महिला को बेटी हुई। उसका पूरा परिवार जोर-जोर से रोने लगा। लोगों ने समझा शायद कोई अनहोनी हो गई। डाक्टर ने महिला के पति को समझाया, तो वह बोला कि उसे बेटी नहीं चाहिए। डाक्टर से कहने लगा कि इसे तुम ही रख लो।
स्टाफ नर्स शशि सिंघल ने बताया, कई बार तो ऐसा भी हुआ कि बेटी पैदा होने पर उसका परिवार दहाड़े मारकर रोया। उनसे यह कहना पड़ा कि इसे हमें दे जाना, हमने बेटियों का आश्रम खोला है।
डाक्टर तृप्ति कहती हैं कि ऐसे भी लोग हैं जो बेटी के जन्म पर खुशी मनाते हैं लेकिन ज्यादातर दुखी ही होते हैं। जिनके लगातार दूसरी लड़की हो जाए, उस पर तो मानो कोई पहाड़ टूट पड़ता है।
समाज की यह सोच बेटा-बेटी के अनुपात में साफ झलकती है। जनपद में छह साल तक के बच्चों में 1000 लड़कों पर लड़कियां सिर्फ 837 ही रह गई हैं। देहात में तो आज भी बेटा पैदा होने पर थाली बजाकर खुशी का इजहार किया जाता है जबकि बेटी पैदा होने पर ऐसा नहीं किया जाता।
बेटी होने पर भी है कुआं पूजन का विधान
ठाकुरद्वारा मंदिर के पुजारी पंडित कृष्णानन्द शास्त्री बताते हैं कि किसी शास्त्र में ऐसा नहीं लिखा है कि लड़कियों का कुआं पूजन संस्कार न हो। शास्त्र कहते हैं कि लड़का हो या लड़की, कुआं पूजन संस्कार अवश्य होना चाहिए। लड़कों का कुआं पूजन करना और लड़कियों का न करना, सिर्फ घटिया मानसिकता का परिचायक है।
बागपत। जिले में बेटा-बेटी एक समान का नारा पूरी तरह से खोखला साबित हो रहा है। यदि यहां की वास्तविकता जाननी है तो जरा देर किसी अस्पताल के जच्चा-बच्चा वार्ड में ठहरकर देखिए। यह देखकर दुख होता है कि बागपत में बेटी के जन्म पर मातम मनाया जाता है। बेटी पैदा होने का पता चलते ही पूरे परिवार की आंखों से आंसू गिरने लगते हैं। सीएचसी में यह रोज का किस्सा है। इसकी गवाह रहने वाले स्टाफ बताते हैं कि लोग बेटी होने पर किस प्रकार से प्रतिक्रिया देते हैं।
स्वास्थ्यकर्मी सरिता दो किस्से बताती हैं - चार दिन पहले एक महिला ने बेटे को जन्म दिया। रात के दो बजे थे। खुशी से पूरा परिवार झूम उठा। उसका पति आधी रात को ही मिठाई की दुकान खुलवाकर मिठाई ले आया।
उसी दिन एक महिला को बेटी हुई। उसका पूरा परिवार जोर-जोर से रोने लगा। लोगों ने समझा शायद कोई अनहोनी हो गई। डाक्टर ने महिला के पति को समझाया, तो वह बोला कि उसे बेटी नहीं चाहिए। डाक्टर से कहने लगा कि इसे तुम ही रख लो।
स्टाफ नर्स शशि सिंघल ने बताया, कई बार तो ऐसा भी हुआ कि बेटी पैदा होने पर उसका परिवार दहाड़े मारकर रोया। उनसे यह कहना पड़ा कि इसे हमें दे जाना, हमने बेटियों का आश्रम खोला है।
डाक्टर तृप्ति कहती हैं कि ऐसे भी लोग हैं जो बेटी के जन्म पर खुशी मनाते हैं लेकिन ज्यादातर दुखी ही होते हैं। जिनके लगातार दूसरी लड़की हो जाए, उस पर तो मानो कोई पहाड़ टूट पड़ता है।
समाज की यह सोच बेटा-बेटी के अनुपात में साफ झलकती है। जनपद में छह साल तक के बच्चों में 1000 लड़कों पर लड़कियां सिर्फ 837 ही रह गई हैं। देहात में तो आज भी बेटा पैदा होने पर थाली बजाकर खुशी का इजहार किया जाता है जबकि बेटी पैदा होने पर ऐसा नहीं किया जाता।
बेटी होने पर भी है कुआं पूजन का विधान
ठाकुरद्वारा मंदिर के पुजारी पंडित कृष्णानन्द शास्त्री बताते हैं कि किसी शास्त्र में ऐसा नहीं लिखा है कि लड़कियों का कुआं पूजन संस्कार न हो। शास्त्र कहते हैं कि लड़का हो या लड़की, कुआं पूजन संस्कार अवश्य होना चाहिए। लड़कों का कुआं पूजन करना और लड़कियों का न करना, सिर्फ घटिया मानसिकता का परिचायक है।