दिबियापुर (औरैया)। वर्ष 1991 में इटावा लोकसभा सीट पर गठबंधन का प्रयोग सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव एवं बसपा संस्थापक कांशीराम के बीच सफल हुई थी। 28 वर्षों बाद दूसरी पीढ़ी ने एक बार फिर इसे आजमाया पर इस बार यह प्रयोग यहां फेल हो गया। नरेंद्र मोदी की तेज लहर के आगे गठबंधन का किला तो ढहा ही ऊपर से सपा का गढ़ भी ध्वस्त होता नजर आया।
वर्ष 1991 में दो चुनावों में हार का सामना करने के बाद कांशीराम, मुलायम के गृहक्षेत्र इटावा सीट से चुनाव जीत संसद में पहुंचने में सफल रहे थे। इस बार 2019 में दोनों दलों का नेतृत्व अखिलेश यादव और मायावती के हाथों में आ चुका है। इन दोनों पार्टी के मुखियाओं ने पार्टी के संस्थापकों के सामाजिक प्रयोग को फिर से साथ मिलकर आजमाया। वर्ष 1991 में राम मंदिर लहर में एसपी बीएसपी ने इटावा में बीजेपी की लहर को इस सामाजिक प्रयोग के सहारे रोक दिया था। वर्ष 1991 में बीएसपी के संस्थापक कांशीराम ने इटावा लोकसभा से किस्मत आजमाई थी। इससे पहले वह 1988 में इलाहाबाद एवं 1989 में पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से हार का सामना कर चुके थे। कांशीराम 1991 में मुलायम के गृहक्षेत्र और यादवों के गढ़ मानी जाने वाले इटावा सीट से चुनाव मैदान में उतरे और मुलायम के सहयोग से संसद में पहुंचने में सफल भी रहे। उन्होंने बीजेपी प्रत्याशी को 20 हजार वोटों से हराया था।
दिबियापुर (औरैया)। वर्ष 1991 में इटावा लोकसभा सीट पर गठबंधन का प्रयोग सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव एवं बसपा संस्थापक कांशीराम के बीच सफल हुई थी। 28 वर्षों बाद दूसरी पीढ़ी ने एक बार फिर इसे आजमाया पर इस बार यह प्रयोग यहां फेल हो गया। नरेंद्र मोदी की तेज लहर के आगे गठबंधन का किला तो ढहा ही ऊपर से सपा का गढ़ भी ध्वस्त होता नजर आया।
वर्ष 1991 में दो चुनावों में हार का सामना करने के बाद कांशीराम, मुलायम के गृहक्षेत्र इटावा सीट से चुनाव जीत संसद में पहुंचने में सफल रहे थे। इस बार 2019 में दोनों दलों का नेतृत्व अखिलेश यादव और मायावती के हाथों में आ चुका है। इन दोनों पार्टी के मुखियाओं ने पार्टी के संस्थापकों के सामाजिक प्रयोग को फिर से साथ मिलकर आजमाया। वर्ष 1991 में राम मंदिर लहर में एसपी बीएसपी ने इटावा में बीजेपी की लहर को इस सामाजिक प्रयोग के सहारे रोक दिया था। वर्ष 1991 में बीएसपी के संस्थापक कांशीराम ने इटावा लोकसभा से किस्मत आजमाई थी। इससे पहले वह 1988 में इलाहाबाद एवं 1989 में पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से हार का सामना कर चुके थे। कांशीराम 1991 में मुलायम के गृहक्षेत्र और यादवों के गढ़ मानी जाने वाले इटावा सीट से चुनाव मैदान में उतरे और मुलायम के सहयोग से संसद में पहुंचने में सफल भी रहे। उन्होंने बीजेपी प्रत्याशी को 20 हजार वोटों से हराया था।