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इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक अहम फैसले में कहा कि विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी करने वाले जोड़े को 30 दिन के पूर्व नोटिस की जरूरत नहीं है। यह नोटिस वैकल्पिक होना चाहिए। न्यायमूर्ति विवेक चौधरी ने यह फैसला एक युवती की तरफ से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका पर सुनाया।
परिवार की मर्जी के खिलाफ एक लड़की ने धर्मांतरण व नाम बदलकर हिंदू रीति-रिवाज से एक लड़के के साथ शादी की। इस पर परिजनों ने उसे घर में बंद कर दिया। किसी तरह मामला कोर्ट पहुंचा तो अदालत ने लड़की और उसके पिता को पेश होने का आदेश दिया। पिता ने कोर्ट में कहा कि पहले वह शादी के खिलाफ थे, लेकिन अब उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।
सुनवाई के दौरान लड़की ने कहा कि उसने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी इसलिए नहीं की, क्योंकि प्रावधान के मुताबिक शादी के बाद 30 दिन का एक नोटिस जारी किया जाता है। इसके तहत कोई भी व्यक्ति अपनी आपत्ति दर्ज करा सकता है। लड़की ने बताया कि इस प्रावधान के कारण ही लोग अक्सर मंदिर या मस्जिद में शादी कर लेते हैं।
कोर्ट ने इस पर संज्ञान लेकर स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 6 और 7 में संशोधन करते हुए फैसला सुनाया कि अब इस तरह के नियम की आवश्यकता नहीं है। यह नियम व्यक्ति की निजता व आजादी के अधिकार का हनन है। जस्टिस विवेक चौधरी ने कहा कि अगर स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करने वाला जोड़ा इच्छुक नहीं है तो इस तरह के नोटिस की बाध्यता नहीं की जा सकती, बल्कि इसे वैकल्पिक होना चाहिए। कोर्ट ने आदेश की प्रति प्रदेश के मुख्य सचिव को भेजने के निर्देश दिए हैं ताकि वह जल्द इससे संबंधित अफसरों को अवगत कराएं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक अहम फैसले में कहा कि विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी करने वाले जोड़े को 30 दिन के पूर्व नोटिस की जरूरत नहीं है। यह नोटिस वैकल्पिक होना चाहिए। न्यायमूर्ति विवेक चौधरी ने यह फैसला एक युवती की तरफ से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका पर सुनाया।
परिवार की मर्जी के खिलाफ एक लड़की ने धर्मांतरण व नाम बदलकर हिंदू रीति-रिवाज से एक लड़के के साथ शादी की। इस पर परिजनों ने उसे घर में बंद कर दिया। किसी तरह मामला कोर्ट पहुंचा तो अदालत ने लड़की और उसके पिता को पेश होने का आदेश दिया। पिता ने कोर्ट में कहा कि पहले वह शादी के खिलाफ थे, लेकिन अब उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।
सुनवाई के दौरान लड़की ने कहा कि उसने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी इसलिए नहीं की, क्योंकि प्रावधान के मुताबिक शादी के बाद 30 दिन का एक नोटिस जारी किया जाता है। इसके तहत कोई भी व्यक्ति अपनी आपत्ति दर्ज करा सकता है। लड़की ने बताया कि इस प्रावधान के कारण ही लोग अक्सर मंदिर या मस्जिद में शादी कर लेते हैं।
कोर्ट ने इस पर संज्ञान लेकर स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 6 और 7 में संशोधन करते हुए फैसला सुनाया कि अब इस तरह के नियम की आवश्यकता नहीं है। यह नियम व्यक्ति की निजता व आजादी के अधिकार का हनन है। जस्टिस विवेक चौधरी ने कहा कि अगर स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करने वाला जोड़ा इच्छुक नहीं है तो इस तरह के नोटिस की बाध्यता नहीं की जा सकती, बल्कि इसे वैकल्पिक होना चाहिए। कोर्ट ने आदेश की प्रति प्रदेश के मुख्य सचिव को भेजने के निर्देश दिए हैं ताकि वह जल्द इससे संबंधित अफसरों को अवगत कराएं।