इलाहाबाद। ‘न तुम जीते, न हम हारे’ की तर्ज पर भले ही शैव और वैष्णव दोनों ही अखाड़ों के प्रतिनिधियों ने आपसी विवाद खत्म करने का ऐलान कर दिया लेकिन परिषद के अध्यक्ष को लेकर उनके बीच मतभेद बरकरार है। मंगलवार को यह विवाद और तेज हो गया जब वैष्णवों की ओर से न सिर्फ अध्यक्ष बने रहने का दावा दोहराया गया बल्कि यह भी कहा गया कि उनका कार्यकाल कम से कम अठारह वर्षों का होना चाहिए। इस अवधि से पहले किसी को भी किसी तरह की टोकाटाकी का कोई अधिकार नहीं है। ‘अमर उजाला’ से बातचीत के दौरान तीनों अनी अखाड़ों के प्रधानमंत्री महंत माधवदास ने सन्यासी अखाड़ों को चेतावनी भी दे डाली। कहा कि यदि संन्यासी अखाड़े वैष्णवों को उनका हक नहीं देंगे तो वे अपने अठारह अखाड़ों को लेकर वैष्णवों की अलग परिषद बनाने को बाध्य होंगे। उन्हीं में से क्रमानुसार अध्यक्ष और महामंत्री चुना जाएगा। उन्होंने दो टूक कहा कि महंत ज्ञानदास से पहले अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष ने अठारह वर्षों तक यह जिम्मेदारी निभाई। निरंजनी अखाड़े के श्रीमहंत शंकर भारती बतौर अध्यक्ष और बड़ा उदासीन के महंत गोविंद दास बतौर महामंत्री अठारह वर्षों तक अपने-अपने पद पर रहे। उनके मुताबिक महंत ज्ञानदास ने वर्ष 2004 के उज्जैन कुंभ में यह पद संभाला था। उनका कम से कम अठारह वर्षों तक इस पद पर बने रहने का हक बनता है। यदि शैव, वैष्णवों को भाई मानते हैं तो उन्हें भाई का पद, कद, हक भी देना चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि मेला दिशाहीन हो गया है। इसका जो स्वरूप बनना चाहिए, वह नहीं बन सका, ऐसे में बतौर अध्यक्ष ज्ञानदास की वापसी जरूरी है। 0 वैष्णवों के 18 अखाड़े जिनसे बनीं तीन अनियां वैष्णवों के अठारह अखाड़ों से ही तीनों अनी अखाड़े बने हैं। इसमें से निर्मोही अनी में नौ, निर्वाणी अनी में सात और दिगंबर अनी में दो अखाड़े शामिल हैं। इनमें श्री पंच रामानंदीय निर्वाणी अखाड़ा, खाकी, निरालंबी, हरिव्यासी खाकी, हरिव्यासी निर्वाणी, हरिव्यासी निर्मोही, हरिव्यासी महासंतोषी, बलभद्री, टाटंबरी, दिगंबर, श्यामानंदीय दिगंबर, रामानंदीय निर्मोही, संतोषी, महानिर्वाणी, पंच झंडिया निर्मोही, पंचमालाधारी निर्मोही, राधाबल्लभी, विष्णुस्वामी अखाड़ा शामिल हैं।
इलाहाबाद। ‘न तुम जीते, न हम हारे’ की तर्ज पर भले ही शैव और वैष्णव दोनों ही अखाड़ों के प्रतिनिधियों ने आपसी विवाद खत्म करने का ऐलान कर दिया लेकिन परिषद के अध्यक्ष को लेकर उनके बीच मतभेद बरकरार है। मंगलवार को यह विवाद और तेज हो गया जब वैष्णवों की ओर से न सिर्फ अध्यक्ष बने रहने का दावा दोहराया गया बल्कि यह भी कहा गया कि उनका कार्यकाल कम से कम अठारह वर्षों का होना चाहिए। इस अवधि से पहले किसी को भी किसी तरह की टोकाटाकी का कोई अधिकार नहीं है।
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‘अमर उजाला’ से बातचीत के दौरान तीनों अनी अखाड़ों के प्रधानमंत्री महंत माधवदास ने सन्यासी अखाड़ों को चेतावनी भी दे डाली। कहा कि यदि संन्यासी अखाड़े वैष्णवों को उनका हक नहीं देंगे तो वे अपने अठारह अखाड़ों को लेकर वैष्णवों की अलग परिषद बनाने को बाध्य होंगे। उन्हीं में से क्रमानुसार अध्यक्ष और महामंत्री चुना जाएगा। उन्होंने दो टूक कहा कि महंत ज्ञानदास से पहले अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष ने अठारह वर्षों तक यह जिम्मेदारी निभाई। निरंजनी अखाड़े के श्रीमहंत शंकर भारती बतौर अध्यक्ष और बड़ा उदासीन के महंत गोविंद दास बतौर महामंत्री अठारह वर्षों तक अपने-अपने पद पर रहे।
उनके मुताबिक महंत ज्ञानदास ने वर्ष 2004 के उज्जैन कुंभ में यह पद संभाला था। उनका कम से कम अठारह वर्षों तक इस पद पर बने रहने का हक बनता है। यदि शैव, वैष्णवों को भाई मानते हैं तो उन्हें भाई का पद, कद, हक भी देना चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि मेला दिशाहीन हो गया है। इसका जो स्वरूप बनना चाहिए, वह नहीं बन सका, ऐसे में बतौर अध्यक्ष ज्ञानदास की वापसी जरूरी है।
0 वैष्णवों के 18 अखाड़े जिनसे बनीं तीन अनियां
वैष्णवों के अठारह अखाड़ों से ही तीनों अनी अखाड़े बने हैं। इसमें से निर्मोही अनी में नौ, निर्वाणी अनी में सात और दिगंबर अनी में दो अखाड़े शामिल हैं। इनमें श्री पंच रामानंदीय निर्वाणी अखाड़ा, खाकी, निरालंबी, हरिव्यासी खाकी, हरिव्यासी निर्वाणी, हरिव्यासी निर्मोही, हरिव्यासी महासंतोषी, बलभद्री, टाटंबरी, दिगंबर, श्यामानंदीय दिगंबर, रामानंदीय निर्मोही, संतोषी, महानिर्वाणी, पंच झंडिया निर्मोही, पंचमालाधारी निर्मोही, राधाबल्लभी, विष्णुस्वामी अखाड़ा शामिल हैं।
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