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इलाहाबाद। भारत और ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने कल्पवासियों की खुशी और सेहत का राज तलाश लिया है। 11 वैज्ञानिकों और इसमें शामिल शोधार्थियों ने तीन अलग अलग मेले में लोगों पर अध्ययन और पड़ताल के बाद पाया कि कल्पवास से सेहत तो सुधरती ही है, मानसिक रूप से भी काफी स्वस्थ हो जाते हैं। अलग-अलग टूल्स पर अध्ययन के बाद वैज्ञानिकाें ने निष्कर्ष निकाला कि कल्पवासियों की नियमित दिनचर्या, विषम परिस्थियों में भी सकारात्मक सोच समेत कई कारण हैं जो इन्हें हर स्तर पर मजबूत और सेहतमंद बनाते हैं।
शोध में शामिल ब्रिटेन के डूंडी विश्वविद्यालय के डॉ.निक हॉपकिन्स, डॉ.समीह खान, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सीबीसीएस के प्रो. नारायनन श्रीनिवासन, डॉ.शैल शंकर, डॉ.श्रुति तिवारी, एक्जर यूनिवर्सिटी के प्रो. मार्क लिवाइन, क्वींस यूनिवर्सिटी के डॉ.क्लिफोर्ड स्टीवेंशन, सेंट एेंड्रीज यूनिवर्सिटी के डॉ.क्लेर कैसिडी आदि वैज्ञानिक बृहस्पतिवार को यहां इकट्ठा हुए। प्रेसवार्ता में उन्होंने शोध पर विस्तार से प्रकाश डाला। उनका कहना था कि कल्पवास के दौरान दिनचर्या काफी कठिन और नियमित होती है। लोग हमेशा अच्छा ही सोचते हैं, एक दूसरे की मदद करते हैं, और भी बहुत कुछ है जिनका सेहत और मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
उनका कहना था कि भीड़ को आमतौर पर नकारात्मक दृष्टि से देखा जाता है लेकिन दुनिया के इस सबसे बड़े मेले से यह सोच भी बदल जाती है। अलग-अलग क्षेत्र और सोच के लोग होते हैं लेकिन सभी एक-दूसरे की मदद को तत्पर होते हैं। उनका कहना था कि जिस शोर में वे एक महीने तक रहते हैं उसमें आमतौर पर बहरेपन की शिकायत बढ़ जाती है लेकिन वे इसके प्रति भी सकारात्मक होते हैं। इसलिए इसका भी अच्छा प्रभाव पड़ता है। इसी विषय पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सीबीसीएस में शुक्रवार को सिम्पोजियम आयोजित किया गया है। इसमें देश भर के अन्य मनोवैज्ञानिक भी जुट रहे हैं। इसमें रिपोर्ट पेश करने के अलावा आगे होने वाले शोध की संभावनाओं पर भी चर्चा की जाएगी।
इलाहाबाद। भारत और ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने कल्पवासियों की खुशी और सेहत का राज तलाश लिया है। 11 वैज्ञानिकों और इसमें शामिल शोधार्थियों ने तीन अलग अलग मेले में लोगों पर अध्ययन और पड़ताल के बाद पाया कि कल्पवास से सेहत तो सुधरती ही है, मानसिक रूप से भी काफी स्वस्थ हो जाते हैं। अलग-अलग टूल्स पर अध्ययन के बाद वैज्ञानिकाें ने निष्कर्ष निकाला कि कल्पवासियों की नियमित दिनचर्या, विषम परिस्थियों में भी सकारात्मक सोच समेत कई कारण हैं जो इन्हें हर स्तर पर मजबूत और सेहतमंद बनाते हैं।
शोध में शामिल ब्रिटेन के डूंडी विश्वविद्यालय के डॉ.निक हॉपकिन्स, डॉ.समीह खान, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सीबीसीएस के प्रो. नारायनन श्रीनिवासन, डॉ.शैल शंकर, डॉ.श्रुति तिवारी, एक्जर यूनिवर्सिटी के प्रो. मार्क लिवाइन, क्वींस यूनिवर्सिटी के डॉ.क्लिफोर्ड स्टीवेंशन, सेंट एेंड्रीज यूनिवर्सिटी के डॉ.क्लेर कैसिडी आदि वैज्ञानिक बृहस्पतिवार को यहां इकट्ठा हुए। प्रेसवार्ता में उन्होंने शोध पर विस्तार से प्रकाश डाला। उनका कहना था कि कल्पवास के दौरान दिनचर्या काफी कठिन और नियमित होती है। लोग हमेशा अच्छा ही सोचते हैं, एक दूसरे की मदद करते हैं, और भी बहुत कुछ है जिनका सेहत और मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
उनका कहना था कि भीड़ को आमतौर पर नकारात्मक दृष्टि से देखा जाता है लेकिन दुनिया के इस सबसे बड़े मेले से यह सोच भी बदल जाती है। अलग-अलग क्षेत्र और सोच के लोग होते हैं लेकिन सभी एक-दूसरे की मदद को तत्पर होते हैं। उनका कहना था कि जिस शोर में वे एक महीने तक रहते हैं उसमें आमतौर पर बहरेपन की शिकायत बढ़ जाती है लेकिन वे इसके प्रति भी सकारात्मक होते हैं। इसलिए इसका भी अच्छा प्रभाव पड़ता है। इसी विषय पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सीबीसीएस में शुक्रवार को सिम्पोजियम आयोजित किया गया है। इसमें देश भर के अन्य मनोवैज्ञानिक भी जुट रहे हैं। इसमें रिपोर्ट पेश करने के अलावा आगे होने वाले शोध की संभावनाओं पर भी चर्चा की जाएगी।