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Exclusive: सारस समेत कोई भी वन्य जीव पालना अपराध, दूध देने और कृषि प्रयोग वाले जीव ही पाल सकते हैं, बाकी नहीं
अभिषेक शर्मा, अमर उजाला, अलीगढ़
Published by: चमन शर्मा
Updated Wed, 29 Mar 2023 05:40 AM IST
सार
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निजी शौक के लिए कोई भी वन्य जीव पाला नहीं जा सकता है। चाहे उसे कितनी ही सुख सुविधा के बीच क्यों न रखा जाए। भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम कहता है कि सिर्फ दूध देने और कृषि प्रयोग वाले पशुओं को ही पाला जा सकता है। इसके अलावा किसी अन्य जीव को पाला नहीं जा सकता।
बीते कुछ दिनों से अमेठी के आरिफ और उनके पालतू सारस की चर्चा है। इस मामले में आरिफ के खिलाफ कार्रवाई भी हुई है। सारस उत्तर प्रदेश का राजकीय पक्षी है, जिसे पालना नियम विरुद्ध है। यही नहीं निजी शौक के लिए कोई भी वन्य जीव पाला नहीं जा सकता है। चाहे उसे कितनी ही सुख सुविधा के बीच क्यों न रखा जाए।
भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम कहता है कि सिर्फ दूध देने और कृषि प्रयोग वाले पशुओं को ही पाला जा सकता है। इसके अलावा किसी अन्य जीव को पाला नहीं जा सकता। अगर कोई पाल रहा है और उसकी शिकायत होती है तो वन विभाग कार्रवाई कर सकता है।
पुराने समय में शौक के लिए हाथी, घोड़ा, ऊंट, बिल्ली, उल्लू, कुत्ता, मछली, तोता, कई प्रकार की सुंदर चिड़िया आदि पाले जाते थे। कुछ जीव व्यापार के लिए पाले जाने लगे, जिनमें हाथी, घोड़ा, ऊंट, भालू, शेर-चीता, तोता, मोर, उल्लू, कुत्ता आदि शामिल हैं। मगर 1972 में बने भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत इनके पालने के कुछ प्रावधान और लाइसेंस जारी करने का कानून बना। इस नियम में 2002 में संशोधन हुआ और उसके प्रावधान जटिल किए गए।
वन्य जीव विषय के जानकार रंजन राना बताते हैं कि दूध देने वाले या कृषि प्रयोग वाले जानवरों के अलावा कोई भी वन्य जीव पाला नहीं जा सकता। अमेठी के सारस प्रकरण की बात करें तो उसे पालना नियम विरुद्ध है। सारस को बिना जोड़े के नहीं रखा जाना चाहिए। वह हमेशा जोड़े में ही रहना पसंद करता है। अगर जोड़े से अलग किया गया तो यह और बड़ा अपराध है।
कोई भी वन्य जीव पाला नहीं जा सकता। सिर्फ दूध देने वाले और कृषि प्रयोग वाले ही जीव पाले जा सकते हैं। कुछ जीवों को पालने पर लाइसेंस लिए जाते हैं। मगर अलीगढ़ में ऐसा कोई लाइसेंस नहीं है। हाथी का भी लाइसेंस नहीं है। -दिवाकर वाशिष्ठ, जिला वन अधिकारी
जानवरों की रक्षा के लिए कानून
प्रिवेंशन ऑन क्रूशियल एनिमल एक्ट 1960 की धारा 11 (1) के अनुसार भारत में किसी भी पालतू जानवर की मौत उसे छोड़ने, प्रताड़ित करने, भूखा प्यासा रखने के होती है तो पालने वाले खिलाफ केस दर्ज हो सकता है। ऐसी परिस्थिति में पालतू जानवर के मालिक पर जुर्माना हो सकता है और अगर तीन महीने के अंदर दूसरी बार ऐसा ही होता है तो जानवर के मालिक पर जुर्माने के साथ 3 महीने तक की जेल भी हो सकती है।
आईपीसी की धारा 428 और 429 के किसी भी जानवर को जहर देकर या किसी और तरीके से जान से मारा गया या उसे कष्ट दिया तो दोषी को दो साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।
किसी भी जानवर, चाहे वह पालतू ही क्यों न हो उसे लंबे समय तक लोहे की सांकर या किसी भारी रस्सी से बांधकर रखना अपराध की श्रेणी में आता है। इसके अलावा अगर आप अपने पालतू जानवर को घर के बाहर नहीं निकालते तो यह भी कैद माना जाता है। ऐसी परिस्थिति में 3 माह की जेल और जुर्माना हो सकता है।
वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 16 (सी) के अनुसार जंगली पक्षियों या सरीसृपों को नुकसान पहुंचाना या उनके घोंसलों को नष्ट करना अपराध की श्रेणी में आता है। ऐसा करने पर व्यक्ति को 3 से 7 साल की जेल और 25,000 रुपये का जुर्माना हो सकता है।
पशु-पक्षियों की अलग-अलग प्रजातियों को संरक्षण
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में 66 धाराएं और 6 अनुसूचियां हैं। इन अनुसूचियों में पशु-पक्षियों की सभी प्रजातियों को संरक्षण प्रदान किया गया है।
अनुसूची-1 और 2 के तहत जंगली जानवरों और पक्षियों को सुरक्षा प्रदान की जाती है और इस नियम का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को सजा का प्रावधान दिया जाता है।
वहीं अनुसूची 3 और 4 भी जंगली जानवरों और पक्षियों को संरक्षण देते हैं लेकिन जिन जानवरों को रखा गया है उनके साथ किए गए अपराध पर सजा का प्रावधान काफी कम हैं।
अनुसूची 5 में उन जानवरों को रखा गया है जिसका शिकार किया जा सकता है. जबकि अनुसूची 6 में शामिल पौधों की खेती और रोपण पर रोक लगाई गई है।
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