अलीगढ़। मोबाइल क्रांति के समय में यदि आपको पता चले कि कोई शख्स लोकल कॉल के लिए बीस रुपये का भुगतान कर रहा है तो सुनने में कुछ अजीब लगेगा। लेकिन यह सच है और यह सब चल रहा है अपने जिले के कारागार में जहां, सलाखों की रक्षा करने वाले ही इस मोबाइल तंत्र को संचालित कर रहे हैं। वह इसके लिए यहां निरुद्ध कैदियों से प्रति संदेश बीस-बीस रुपये वसूलते हैं।
पैसा खर्च करो तो मौजा ही मौजाः
पत्र में भोजन व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। कहा है कि 8 रोटी दी जाती हैं जिनमें से 4 कच्ची होती हैं। बाकी 4 एक तरफ से ही सिकी हुई होती हैं। दाल के नाम पर सिर्फ पानी ही पानी होता है। पत्र में यह भी इशारा किया है कि अगर आप पैसा खर्च करते हैं तो ऐसी कोई ‘सुविधा’ नहीं जो जेल में उपलब्ध नहीं हो सकती है।
कैसे चलता है नेटवर्कः
अगर कैदी बिना मोबाइल के नेटवर्क को चलाना चाहता है तो उसे मात्र बीस रुपये का खर्चा उठाना होगा। इतने पैसे में सिपाही कैदी की प्लानिंग को अंजाम तक पहुंचा देते हैं। इसके लिए वह जेल से बाहर जाकर किसी भी पीसीओ से कैदी के बताए मोबाइल या लैंडलाइन नंबर पर फोन करके पूरी सूचनाएं दे देते हैं।
तो होगा धंधा चौपटः
कारागार मंत्री को भेजे गए पत्र में कहा है कि जेल में चीफ (बैरक का हेड सिपाही) मैसेंजर की भूमिका निभा रहे हैं। कैदी से 20 रुपये लेते हैं और बाहर से फोन करके कैदी का संदेश उसके दिए नंबर पर पहुंचाते हैं। बदले में वहां से मिले संदेश को कैदी तक पहुंचाते हैं। ऐसे ही कुछ चीफ जेल में पीसीओ को लगाने की योजना को भी पलीता लगाने की प्लानिंग कर रहे हैं। अगर जेल में पीसीओ लग गया तो उनके धंधा बंद हो जाएगा।