अलीगढ़। इरादे मजबूत हों तो कोई भी बाधा मनुष्य को उसके लक्ष्य तक पहुंचने से नहीं रोक सकती। गरीबी किसी भी प्रतिभा के उभरने में सबसे बड़ा रोड़ा होता है, लेकिन मेधावी गरीबी के दंश को भी भेदकर अपने मुकाम तक पहुंचते हैं। इगलास से 15 किमी दूर स्थित गांव मई निवासी नवल सिंह नौलखा पहलवानी करते थे। उनसे प्रेरणा लेकर बेटी नीरज नौलखा ने भी पहलवान बनने की ठान ली। नवल सिंह खुद पहलवानी छोड़कर बेटी को आगे तक ले जाने में जुट गए। बात खर्चे की आई तो उन्हाेंने 150 रुपये रोजाना की मजदूरी करना शुरू कर दिया। खुद भूखा रहना मंजूर किया लेकिन बेटी के सपने पूरे किए। पिता के साथ ने नीरज के हौसलों को और बुलंद कर दिया। हाईस्कूल में नीरज ने ब्लाक स्तरीय और 11वीं में जनपदीय कुश्ती प्रतियोगिता में पहला स्थान हासिल किया। अलीगढ़ में सुविधा का अभाव होने पर वह संभल पहुंची। यहां कोच भोले त्यागी नीरज को प्रशिक्षण दे रहे हैं। वर्तमान में नीरज बीए प्रथम वर्ष की परीक्षा देने गांव आई हुई है।