अंग्रेजी सरकार की रोक के बाद भी गांधी ने की थी आर्य समाज मंदिर में सभा
मैनपुरी। भारत की आजादी के महानायक महात्मा गांधी मैनपुरी में भी जागरूकता के प्रेरणा स्त्रोत बने थे। गांधी जी मैनपुरी आए तो अंग्रेजी सरकार ने उन्हें सभा करने की अनुमति नहीं दी थी। अनुमति न मिलने के बाद गांधी जी शहर के आर्य समाज मंदिर पहुंचे तो स्वागत कार्यक्रम सभा में तब्दील हो गया। ब्रिटिश हुकूमत के कारिंदे हजारों की भीड़ के सामने बेबस हो गए। वंदे मातरम के जयघोषों से मैनपुरी गूंज गया था।
महात्मा गांधी का मैनपुरी आगमन 20 सितंबर 1929 को हुआ था। इकहरे बदन पर धोती और चादर लपेटे वह पदयात्रा करते हुए मैनपुरी की सीमा में दाखिल हुए थे। उनके आगमन की जानकारी मिलने पर गोरी सरकार बेचैन हो गई। अफसरों ने गांधी को जिले में कोई भी सभा न करने का फरमान सुनाया। स्थानीय लोगों को भी इस संबंध में हिदायत दे दी गई थी।
लोगों ने अधिक अनुरोध किया तो मिशन स्कूल (अब क्रिश्चियन इंटर कालेज ) में छोटा सा स्वागत कार्यक्रम करने की अनुमति दे दी गई थी। इसके लिए 15 मिनट का वक्त निर्धारित किया गया था। वहीं गांधी के आगमन के साथ भीड़ उमड़नी शुरू हो गई थी। क्रिश्चियन इंटर कालेज और आर्य समाज मंदिर के बीच केवल एक दीवार का फासला था। कॉलेज से निकलकर गांधी जी आर्य समाज मंदिर पहुंचे। तब तक हजारों की संख्या में लोग जुट चुके थे। बापू को प्रणाम करने और एक झलक देखने के लिए लोग मिशन स्कूल की दीवारों, छतों के अलावा आर्य समाज मंदिर में लगे पेड़ों तक पर चढ़ गए थे। पैर रखने तक की जगह नहीं बची थी। इसके बाद यहीं उन्होंने लोगों को संबोधित किया था। आज भी आर्य समाज मंदिर का भवन गांधी जी की सभा का गवाह है।
ढह गई थी छुआछूत की दीवार
1929 में शहर की नगर पालिका परिसर में सवर्ण और अनुसूचित जाति के लिए अलग-अलग स्कूलों का संचालन होता था। गांधी जी को यह बात पता चली तो उन्होंने कहा कि जब तक आप लोग छुआछूत पर जीत हासिल नहीं करते तब तक मैं आजादी की लड़ाई नहीं जीत सकता।
गांधी जी के आह्वान पर तत्कालीन नगर पालिका के सभासद शंभूदयाल शुक्ला उठ खड़े हुए। उन्होंने इस दाग को मिटाने का प्रण लिया। उनके साथ मौजूद भीड़ भी एक सुर में हो गई। बाद में सवर्णों ने खुद ही अनुसूचित जाति के लिए अलग से बने विद्यालय को ढहा दिया। उनके बच्चों के दाखिले भी सवर्णों के स्कूलों में करा दिए गए थे। शंभूदयाल सालों तक अनुसूचित जाति के बच्चों को बेहतर अंक लाने पर गोल्ड मेडल देते रहे थे।
भीड़ देख अंग्रेजी सरकार के फूल गए थे हाथ-पैर
साहित्यकार श्रीकृष्ण मिश्र बताते हैं कि रोक के बाद भी गांधी जी के समर्थन में भीड़ पहुंची तो अंग्रेजी सरकार के हाथ-पैर फूल गए थे। सरकार के अफसर आजादी के दीवानों का जुनून देख मूकदर्शक बनकर खड़े रहे। गांधीजी के खड़े होते ही उत्साही भीड़ वंदे मातरम का जयघोष करने लगी। जयघोष इतना तीव्र हो गया कि खुद गांधीजी को लोगों को शांत करना पड़ा। कार्यक्रम को चंद मिनटों का समय देने वाली अंग्रेज सरकार के कारिंदे दो घंटे तक चली इस सभा में खामोश खड़े रहे। सभा के बाद महात्मा गांधी ने मंदिर परिसर में ही रात्रि विश्राम किया था और अगले दिन फर्रुखाबाद के लिए रवाना हो गए थे।
मिडिल स्कूल में सभा के दौरान भेंट की गई थी थैली
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वंशज और शहीद मेला बेवर के संयोजक राज त्रिपाठी बताते हैं कि 20 सितंबर 1929 को शिकोहाबाद, भारौल, दन्नाहार, मैनपुरी के बाद भोगांव के मिडिल स्कूल में भी महात्मा गांधी ने सभा की थी। इस सभा में जिले के लोगों ने उन्हें चंदे के रूप में एक थैली भेंट की थी।
42 साल तक बाबूराम जैन ने दिया साथ
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय बाबूराम जैन के पुत्र अरुण कुमार जैन ने बताया कि उनके पिता ने आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी के साथ 42 साल का लंबा सफर तय किया था। वे बताते हैं कि गांधी जी के साथ 200 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की टीम हमेशा रहती थी। इनमें उनके पिता भी शामिल थे। दिल्ली में गांधी जी के आंदोलन के दौरान उनके पिता बिरला मंदिर में रात के समय सोते थे। सुबह का खाना सरदार पटेल और शाम का खाना मौलाना आजाद के घर खाते थे।