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पहले दाल पतली, अब आटा गीला
पहले दाल पतली, अब आटा गीला
Updated Sun, 06 Nov 2016 12:59 AM IST
महंगाई ने पहले दाल पतली की, तो अब आटा भी गीला कर दिया है। गरीबों की थाली में महंगी रोटी पहुंच रही है। चने के बाद मुनाफाखोरों ने गेहूं और आटे पर ख्ेाल खेलना शुरू किया है, जिस वजह से दिवाली के बाद से अब तक आटे के भाव में 20 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो चुकी है। चुनाव और सरहद के तनाव में व्यस्त सरकारों की नजर से दूर मल्टीनेशनल कंपनियों ने पैक्ड आटे के भाव में लगातार बढ़ोत्तरी की है।
गेहूं और आटे के भाव में महज दस दिनों के अंदर तेजी आई है। पैक्ड आटा जहां 225 से 280 रुपये प्रति दस किलो तक था, वह अब 240 से 320 रुपये तक जा पहुंचा है। इसी तरह गेहूं की कीमत 2100 रुपये प्रति कुंतल तक पहुंच गई हैै। 250 रुपये प्रति कुंतल की बढ़ोतरी गेहूं में हो चुकी है।
आगरा खाद्य व्यापार समिति के अध्यक्ष जय प्रकाश अग्रवाल के मुताबिक गेहूं के बाजार में सबसे बड़ी खिलाड़ी मल्टीनेशनल कंपनियां हैं। सरकार के पास सबसे ज्यादा गेहूं का स्टॉक है। अगर मल्टीनेशनल कंपनियां गेहूं की कमी बताकर भाव बढ़ा रही हैं, तो भारतीय खाद्य निगम के गोदामों से गेहूं की खुले बाजार में सप्लाई क्यों नहीं बढ़ाई जा रही। यह सब मुनाफाखोरी की कोशिश है। चने के बाद एमसीएक्स सट्टेबाज गेहूं और आटे के भाव बढ़ाकर खेल कर रहे हैं, लेकिन सरकारें अपनी चुप्पी से उन्हें मुनाफा कमाने दे रही हैं।
मैदा, सूजी, बेसन के भाव आसमान पर
गेहूं की कीमतों में इजाफे का असर ये रहा कि मैदा और सूजी के भाव में तीन से पांच रुपये की बढ़ोतरी हो गई है। मैदा और सूजी से 23 से बढ़कर 30 रुपये किलो तक जा पहुंचे हैं। सुबह नाश्ते के लिए ब्रेड के भाव में इजाफा हुआ है। ब्रेड 20 रुपये का पैक बढ़कर 25 और 10 रुपये का पैकेट 14 रुपये का कर दिया गया है। बेसन के भाव तो पहले ही 150 रुपये किलो पर पहुंचे हुए है जो दो महीने पहले तक महज 80 रुपये पर थे।
दालों पर भी छाई है महंगाई
अरहर दाल के बाद चने में मुनाफाखोरों की चांदी रही। अब यही खेल गेहूं में खेला जा रहा है। अरहर दाल 200 रुपये किलो पहुंचने के बाद अब 130 से 140 रुपये किलो के बीच है, तो वहीं चना दाल महज 15 दिनों में 80 से 160 रुपये किलो तक पहुंच गई। चने के भाव को ऐसे पंख लगे कि हर दिन सुबह इसके भाव बढ़ते तो शाम को भी बाजार बंद होने तक भाव बढ़ते ही रहते। मूंग दाल, उड़द दाल, मसूर की दालों ने भी सैकड़ा पार किया। अरहर दालों पर मल्टीनेशनल कंपनियों के खेल के बाद इसमें नई फसल आने से पहले ही कमी आनी शुरू हुई।
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