बाह। बाल साहित्य के शिखर पर झंडा फहराने वाले साहित्यकार श्री प्रसाद के निधन से समूचे भदावर क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई। उनके निधन की खबर के साथ नगला ब्रज गांव में उनके भतीजे रामबाबू के घर की ओर लोग दौड़ पड़े। जबकि उनके गांव पारना के हर शख्स की जुबान पर यही सवाल है कि बच्चों को साहित्य का ककहरा कौन सिखाएगा।
उनके करीबी माने जाने वाले श्रीनिवास ने अमर उजाला को बताया कि साल में एक-दो बार गांव में उनका आना जाना लगा रहता था। उनके घर पर ही रुकते थे साथ ही क्षेत्र के पुराने लोगों के बारे में जानकारी लेते थे। गांव और क्षेत्र के माहौल और बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करते थे। कभी-कभी 15 दिन से लेकर एक माह तक रुक जाया करते थे। बच्चों को अपनी रचनाएं सुनाकर गुदगुदाया करते थे। उन्होंने कहा कि श्री प्रसाद को भदावर क्षेत्र से विशेष लगाव था। शुक्रवार को लोगोें को जैसे ही उनके निधन की सूचना मिली तो उनके भतीजे के घर लोगों की भीड़ जुटना शुरू हो गई। जबकि उनके गांव पारना में भी बुद्धिजीवी वर्ग ने इसे साहित्य के क्षेत्र में बड़ी कमी बताया।
पांच जनवरी 1932 को बाह के पारना गांव में जन्मे श्री प्रसाद ने आठवीं की पढ़ाई चित्राहाट के जूनियर हाईस्कूल से की। इसके बाद आकाशवाणी दूरदर्शन पर अपनी बाल रचनाओं के प्रसारण से लोकप्रिय हुए श्रीप्रसाद बनारस पहुंचे। स्वीडन भाषा में अनुवाद के लिए एकमात्र चुनी गई बाल रचना ‘हल्लमहल्ला’ उन्हीं की थी। बाल साहित्य से पीएचडी करने वाले श्रीप्रसाद ने रूसी, बंगला, अंग्रेजी और उर्दू की कहानियों का हिंदी अनुवाद किया। 10 हजार से अधिक कविताएं लिखने वाले श्री प्रसाद को 1995 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ ने बाल साहित्य भारती सम्मान से पुरस्कृत किया। जबकि 1999 में बाल साहित्य सृजन के लिए हिंदी साहित्य प्रयाग द्वारा महोपाध्याय पुरस्कार से नवाजा गया।
इनसेट बाक्स .....
ये हैं रचनाएं
- बाल काव्य संग्रह, शिशु गीत संग्रह, बाल कहानी संग्रह, बाल नाटक संग्रह, बाल नृत्य संग्रह, बाल उपन्यास शाबाश श्यामू, बाल साहित्य समीक्षा।
बाह। बाल साहित्य के शिखर पर झंडा फहराने वाले साहित्यकार श्री प्रसाद के निधन से समूचे भदावर क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई। उनके निधन की खबर के साथ नगला ब्रज गांव में उनके भतीजे रामबाबू के घर की ओर लोग दौड़ पड़े। जबकि उनके गांव पारना के हर शख्स की जुबान पर यही सवाल है कि बच्चों को साहित्य का ककहरा कौन सिखाएगा।
उनके करीबी माने जाने वाले श्रीनिवास ने अमर उजाला को बताया कि साल में एक-दो बार गांव में उनका आना जाना लगा रहता था। उनके घर पर ही रुकते थे साथ ही क्षेत्र के पुराने लोगों के बारे में जानकारी लेते थे। गांव और क्षेत्र के माहौल और बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करते थे। कभी-कभी 15 दिन से लेकर एक माह तक रुक जाया करते थे। बच्चों को अपनी रचनाएं सुनाकर गुदगुदाया करते थे। उन्होंने कहा कि श्री प्रसाद को भदावर क्षेत्र से विशेष लगाव था। शुक्रवार को लोगोें को जैसे ही उनके निधन की सूचना मिली तो उनके भतीजे के घर लोगों की भीड़ जुटना शुरू हो गई। जबकि उनके गांव पारना में भी बुद्धिजीवी वर्ग ने इसे साहित्य के क्षेत्र में बड़ी कमी बताया।
पांच जनवरी 1932 को बाह के पारना गांव में जन्मे श्री प्रसाद ने आठवीं की पढ़ाई चित्राहाट के जूनियर हाईस्कूल से की। इसके बाद आकाशवाणी दूरदर्शन पर अपनी बाल रचनाओं के प्रसारण से लोकप्रिय हुए श्रीप्रसाद बनारस पहुंचे। स्वीडन भाषा में अनुवाद के लिए एकमात्र चुनी गई बाल रचना ‘हल्लमहल्ला’ उन्हीं की थी। बाल साहित्य से पीएचडी करने वाले श्रीप्रसाद ने रूसी, बंगला, अंग्रेजी और उर्दू की कहानियों का हिंदी अनुवाद किया। 10 हजार से अधिक कविताएं लिखने वाले श्री प्रसाद को 1995 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ ने बाल साहित्य भारती सम्मान से पुरस्कृत किया। जबकि 1999 में बाल साहित्य सृजन के लिए हिंदी साहित्य प्रयाग द्वारा महोपाध्याय पुरस्कार से नवाजा गया।
इनसेट बाक्स .....
ये हैं रचनाएं
- बाल काव्य संग्रह, शिशु गीत संग्रह, बाल कहानी संग्रह, बाल नाटक संग्रह, बाल नृत्य संग्रह, बाल उपन्यास शाबाश श्यामू, बाल साहित्य समीक्षा।