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इस तरह से नया संसार बसाया जाए....
Agra
Updated Mon, 13 Aug 2012 03:09 AM IST
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कहीं भी, कभी भी।
आगरा। कोई नीचा न रहे, न कोई ऊंचा हो, इस तरह से नया संसार बसाया जाए... विकल फर्रुखाबादी की इन पंक्तियों पर श्रोताओं की तालियां गूंज उठीं। मौका था क्रांतिकारी स्व. अध्यापक राम रत्न की पुण्यतिथि पर अध्यापक रामरत्न साहित्य संस्थान द्वारा आयोजित काव्य संध्या का। रत्नाश्रम भवन में हुए इस कार्यक्रम में सृजन की फुहारें बरसीं। साथ ही शहर के वरिष्ठ समाज सेवी, स्वतंत्रता सेनानी आदि का अभिनंदन किया गया।
कवि कैलाश मायावी ने मरते तो सभी है मगर मरता नहीं है वो, मरता है जो देश के लिए... कविता प्रस्तुत की। डॉ. ब्रज बिहारी बिरजू ने पर्दानशीं का एक हसीं सलाम जिंदगी, होठों में बंद तीस्ता अंजाम जिंदगी. पंक्तियां पढ़ीं।
सगीर अकबराबादी ने जब भी चाहो देश का इतिहास पढ़ कर देख लो, हम वो नहीं, भागे कभी जंग के मैदान से... प्रो. सोम ठाकुर बा परतंत्रता के नभ में जनतंत्र कौ मंत्र उचारन हारी... कविता प्रस्तुत की। जितेंद्र जिद्दी ने क्रांति अधूरी रह गई, शिथिल हो गए अंग, समाज सेवी पर चढ़ा राजनीति का रंग.. पर सभी की सराहना पाई।
इस अवसर पर अधिवक्ता श्याम सुंदर शर्मा, बीएल राजपूत और स्वतंत्रता सेनानी रानी सरोज गौरिहार, लोेक गीत संग्राहक चौधरी बदन सिंह, डॉ. नीरज सरोप का अभिनंदन किया गया।
अन्य कवियों में शलभ भारती, राजकुमार आदि थे। संचालन संस्थान के अध्यक्ष चैतन्य लवानिया ने किया। संस्था के सुरेंद्र सिंह एडवोकेट्र रुकमणी लवानिया, राकेश मोहन, राजकुमार, रिचा, राजकुमार, विकल फर्रुखाबादी, संतोष शर्मा आदि मौजूद थे।
आगरा। कोई नीचा न रहे, न कोई ऊंचा हो, इस तरह से नया संसार बसाया जाए... विकल फर्रुखाबादी की इन पंक्तियों पर श्रोताओं की तालियां गूंज उठीं। मौका था क्रांतिकारी स्व. अध्यापक राम रत्न की पुण्यतिथि पर अध्यापक रामरत्न साहित्य संस्थान द्वारा आयोजित काव्य संध्या का। रत्नाश्रम भवन में हुए इस कार्यक्रम में सृजन की फुहारें बरसीं। साथ ही शहर के वरिष्ठ समाज सेवी, स्वतंत्रता सेनानी आदि का अभिनंदन किया गया।
कवि कैलाश मायावी ने मरते तो सभी है मगर मरता नहीं है वो, मरता है जो देश के लिए... कविता प्रस्तुत की। डॉ. ब्रज बिहारी बिरजू ने पर्दानशीं का एक हसीं सलाम जिंदगी, होठों में बंद तीस्ता अंजाम जिंदगी. पंक्तियां पढ़ीं।
सगीर अकबराबादी ने जब भी चाहो देश का इतिहास पढ़ कर देख लो, हम वो नहीं, भागे कभी जंग के मैदान से... प्रो. सोम ठाकुर बा परतंत्रता के नभ में जनतंत्र कौ मंत्र उचारन हारी... कविता प्रस्तुत की। जितेंद्र जिद्दी ने क्रांति अधूरी रह गई, शिथिल हो गए अंग, समाज सेवी पर चढ़ा राजनीति का रंग.. पर सभी की सराहना पाई।
इस अवसर पर अधिवक्ता श्याम सुंदर शर्मा, बीएल राजपूत और स्वतंत्रता सेनानी रानी सरोज गौरिहार, लोेक गीत संग्राहक चौधरी बदन सिंह, डॉ. नीरज सरोप का अभिनंदन किया गया।
अन्य कवियों में शलभ भारती, राजकुमार आदि थे। संचालन संस्थान के अध्यक्ष चैतन्य लवानिया ने किया। संस्था के सुरेंद्र सिंह एडवोकेट्र रुकमणी लवानिया, राकेश मोहन, राजकुमार, रिचा, राजकुमार, विकल फर्रुखाबादी, संतोष शर्मा आदि मौजूद थे।