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औद्योगिक क्रांति ने कई नई विचारधाराओं को जन्म दिया। अगर औद्योगिक क्रांति की शुरुआत नहीं हुई होती, तो शायद ही आधुनिक विश्व पटल पर कम्युनिज्म और पूंजीवाद जैसी विचारधाराएं जन्म ले पातीं। इस क्रांति ने एक ऐसी पृष्ठभूमि का निर्माण किया, जिसके चलते कई नई खोजों को अंजाम दिया गया। आज के इस आधुनिक युग की रूपरेखा तैयार करने में औद्योगिक क्रांति ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। अब हम चौथी औद्योगिक क्रांति में प्रवेश कर रहे हैं।
वे देश और संस्थाएं, जिन्होंने औद्योगिक क्रांति को विस्तार देने में बड़ी भूमिका निभाई थी। उन्होंने ही दुनिया के बाकी देशों में अपने औपनिवेशिक साम्राज्य बनाएं। अब चौथी औद्योगिक क्रांति में हम Artificial Intelligence Revolution के साक्षी बन रहे हैं। भविष्य में ग्लोबल आर्म रेस और साइबर अटैक में एआई एक मील का पत्थर साबित होने वाला है। एआई द्वारा संचालित ऑटोनॉमस हथियार किसी भी युद्ध की दिशा को बदलने की काबिलियत रखेंगे। गन पाउडर और न्यूक्लियर बम से होते हुए युद्ध का स्वरूप डाटा, अल्गोरिदम और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आ गया है। ऐसे में अमेरिका, चीन, रूस सभी इस क्षेत्र में अपने आप को आगे रखने की होड़ में लग गए हैं।
साल 2014 में बेनेडिक्ट कंबरबैच की 'The Imitation Game' नामक एक शानदार फिल्म रिलीज हुई। फिल्म में दूसरे विश्व युद्ध की कहानी को दिखाया गया है, जहां नाजी सेना ने एक खास तरह के Enigma कोड को बनाया था। इस कोड के जरिए जर्मन सैनिक एक दूसरे को बताते थे कि कब, कहां और कैसे हमला करना है? इसके चलते ब्रिटेन को कई अहम मोर्चों पर युद्ध में हार का सामना करना पड़ रहा था। ब्रिटेन के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती थी कि Enigma को डिकोड कैसे किया जाए? इस कोड को क्रैक करने के लिए कई लोगों की टीम बनाई गई। हालांकि, नतीजा कुछ खास नहीं निकला। इसी बीच एलन टूरिंग का नाम सामने आता है।
आज के समय कंप्यूटेशनल पावर को बढ़ाने में सेमीकंडक्टर चिप मील का पत्थर बन गई है। औद्योगिक क्रांति को गति देने में जिस तरह जीवाश्म ईंधनों ने एक बड़ी भूमिका निभाई थी। उसी तरह आने वाले चौथे इंडस्ट्रियल रिवॉल्यूशन में सेमीकंडक्टर चिप का बहुत बड़ा योगदान होने वाला है।
सेमीकंडक्टर चिप को मशीन का दिमाग कहा जाए तो गलत नहीं होगा। बीते 50 सालों में सेमीकंडक्टर चिप के क्षेत्र में एक्सपोनेंशियल ग्रोथ हुई है। एक समय था जब छोटी से दिखने वाली सेमीकंडक्टर चिप में केवल 4 ट्रांजिस्टर लगा करते थे। इसी वजह से उस जमाने में कंप्यूटर का आकार बड़े-बड़े कमरों के बराबर हुआ करता था। हालांकि, टेक्नोलॉजिकल एडवांसमेंट के कारण आज के समय एक नाखून जितनी बड़ी चिप पर करीब 50 बिलियन ट्रांजिस्टर को लगाया जा सकता है।
आज मिसाइल, प्लेन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, कैमरा, स्मार्टफोन, कार, डिजिटल क्लॉक से लेकर सभी टेक्निकल डिवाइस में सेमीकंडक्टर चिप का उपयोग हो रहा है। सेमीकंडक्टर चिप जितनी एडवांस होगी, तकनीक भी उतनी ही उन्नत होगी। आर्म्ड रेस से लेकर विभिन्न मोर्चों पर आगे बने रहने के लिए सेमीकंडक्टर चिप की दौड़ में आगे होना समय की मांग बन चुका है। सिलिकॉन से बनने वाली सेमीकंडक्टर चिप सैन्य क्षमता को नए शिखर पर पहुंचा सकती है।
अगर चिप में एडवांसमेंट करके किसी भी ऑपरेशन को एक सेकेंड भी तेज बना दिया जाए, तो दुश्मनों से काफी आगे निकला जा सकता है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि सेमीकंडक्टर चिप जियोपॉलिटिकल पावर का प्रतीक है। इसी वजह से सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में आगे बने रहने के लिए अमेरिका और चीन के बीच एक चिप वॉर शुरू हो गई है।
इन दोनों देशों के बीच अगर ताइवान को जोड़ दें, तो एक लव एंड हेट ट्रायंगल बन जाता है। आखिर चीन, अमेरिका और ताइवान के बीच यह स्थिति कैसे बनी? इसे समझने से पहले हमें सेमीकंडक्टर चिप के इतिहास से होकर गुजरना पड़ेगा।
ये 60 का दशक था। इस दौरान कंप्यूटर काफी बड़े हुआ करते थे। इनमें हजारों तार लगे होते थे, जो एक दूसरे को इलेक्ट्रिक सिग्नल भेजकर किसी भी जटिल समस्या का हल निकालते थे। कंप्यूटिंग की यह व्यवस्था काफी खर्चीली और पेचीदा थी। गौरतलब बात है कि इस दौरान ट्रांजिस्टर का आविष्कार हो चुका था।
ट्रांजिस्टर ने इलेक्ट्रिक सिग्नल को बढ़ाने और नियंत्रित करने की दिशा में कई नए आयामों को खोला था। इससे विद्युत के प्रवाह को काफी अच्छे ढंग से नियंत्रित किया जा सकता था। इसी बीच दो अमेरिकी वैज्ञानिक Jack Kilby और Robert Noyce ने 1959 में एक क्रांतिकारी विचार सामने रखा। उन्होंने बताया कि क्यों न कई ट्रांजिस्टर, रिसिसटर और कैपेसिटर को ग्रुप करके एक सेमीकंडक्टर बोर्ड पर लगाया जाए।
नतीजा यह निकला की कंप्यूटर की पारंपरिक व्यवस्था पूरी तरह बदल गई। ट्रांजिस्टर पर कोऑर्डिनेटड सिस्टम के जरिए इलेक्ट्रिक सिग्नल को फायर करके किसी भी जटिल गणितीय समस्या का समाधान निकाला जा सकता था। इस आइडिया ने पूरी दुनिया को क्रांतिकारी ढंग से बदल दिया। इसके बाद क्या था अमेरिका में Silicon Rush/Race Of Semiconductor chip की शुरुआत हो गई। दुनिया अब बदलने लगी थी।
कंप्यूटर एडवांस हो गए थे, वीडियो गेम पहले से बेहतर होने लगे थे। विश्वभर में तकनीक का विकास काफी तेज हो गया था। यही नहीं हथियार बनाने से लेकर चांद पर एस्ट्रोनॉट को भेजने तक सभी तकनीकों में सेमीकंडक्टर चिप को उपयोग में लाया जा रहा था।
इस दौरान अमेरिकी कंपनियां हर साल सेमीकंडक्टर चिप को एडवांस करती जा रही थीं। ये सब अमेरिका के सेंट्रल कैलिफोर्निया की एक खास जगह पर हो रहा था। जल्द ही इस जगह का नाम भी इसी खास मैटेरियल के आधार पर सिलिकॉन वैली रख दिया गया। 1980 तक आते-आते करीब 3 लाख ट्रांजिस्टर स्विच को एक सिलिकॉन बेस्ड सेमीकंडक्टर चिप पर लगाया जा सकता था। होम कंप्यूटिंग, कलर टेलीविजन, एडवांस सैटेलाइट के क्षेत्र में एक क्रांति आ गई थी।
1990 तक आते-आते सेमीकंडक्टर चिप को इतना ज्यादा आधुनिक कर लिया गया था कि इंसान अब कंप्यूटर को अपने घर में किसी भी जगह पर रख सकता था। सेमीकंडक्टर चिप काफी तेजी से आधुनिक हो रही थी। नतीजा यह निकला कि कुछ सालों में स्मार्टफोन जैसी तकनीक भी अस्तित्व में आ गई, जिसे आज हम अपने पॉकेट में लेकर घूमते हैं।
सेमीकंडक्टर चिप की वजह से ही अमेरिका के पास दुनिया की सबसे आधुनिकतम तकनीक का एक्सेस हमेशा बना रहा। हालांकि, बाद में सेमीकंडक्टर के खेल में जापान भी शामिल हो गया। 90 के दशक में जापान सस्ते दामों पर अमेरिका में सेमीकंडक्टर चिप बेचकर खूब कमाई कर रहा था। इसी बीच अमेरिका ने साल 1987 में जापान द्वारा एक्सपोर्ट किए जा रहे सेमीकंडक्टर चिप पर 100 प्रतिशत का टैक्स लगा दिया, जिसके चलते अमेरिका में जापान से आने वाली सेमीकंडक्टर चिप काफी महंगी हो गई।
इस दौरान चीन की अर्थव्यवस्था काफी तेजी से आगे बढ़ रही थी। इसे देखते हुए ताइवान काफी चिंतित था। आर्थिक रूप से समृद्ध चीन कभी भी ताइवान पर हमला कर सकता था। यह वह दौर था, जब ताइवान के कई लोग अमेरिका की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में काम कर रहे थे। ताइवान ने इन लोगों को पैसे और सरकारी सपोर्ट का लालच देकर वापस अपने देश में बुलाया। इसके बाद ताइवान सरकार ने सेमीकंडक्टर इंजीनियर्स के साथ मिलकर पूरी योजना को तैयार किया कि कैसे वह सेमीकंडक्टर मार्केट में प्रवेश कर सकता है?
इसी बीच एक नया नाम Morris Chang सामने निकलकर आता है। मोरिस को यह पता था कि हर साल सेमीकंडक्टर चिप छोटी होती जा रही है। ऐसे में इन चिप्स को बनाने का काम काफी महंगा हो जा रहा है। अमेरिका को हर साल इसी काम को करने में बहुत पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं। यहीं पर सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में आगे आया जा सकता है।
इसी के बाद TSMC (Taiwan Semiconductor Manufacturing Company) की शुरुआत होती है। यह कंपनी आज के समय दुनिया भर के 52 प्रतिशत सेमीकंडक्टर को बनाती है। अमेरिका के साथ द्विपक्षीय समझौते के बाद अमेरिका से मिलने वाली सेमीकंडक्टर टेक्नोलॉजी की सहायता से ताइवान बड़े पैमाने पर सेमीकंडक्टर चिप बनाने लगा था। धीरे-धीरे वैश्विक सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला में ताइवान की मजबूत पकड़ बन गई। इस दौरान तकनीक के क्षेत्र में अपने आप को आगे रखने के लिए चीन भी बड़े पैमाने पर ताइवान से सेमीकंडक्टर चिप का आयात कर रहा था।
हालांकि, अमेरिका को इस बात की कोई परवाह नहीं थी। उसे पता था कि सेमीकंडक्टर की डिजाइनिंग तो उन्हीं के द्वारा हो रही है। ऐसे में एडवांस्ड सेमीकंडक्टर की डिजाइनिंग का एक्सेस हमेशा उसी के पास रहेगा। लेकिन लेकिन लेकिन यहीं पर एक नया ट्विस्ट आता है। चीन एक बड़ी चालाकी को अंजाम देता है। अमेरिकी कंपनियां, जो एडवांस्ड सेमीकंडक्टर चिप पर रिसर्च एंड डेवलपमेंट कर रही थीं। चीन उन कंपनियों के साथ डील करके एडवांस्ड सेमीकंडक्टर चिप्स का एक्सेस पा जाता है। अमेरिकी कंपनियों द्वारा मिलने वाले इन एडवांस डिजाइन्ड सेमीकंडक्टर चिप का उपयोग वह अपनी सैन्य क्षमता को मजबूत करने में करता है।
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