सरदार सिंह की चैंपियंस ट्रॉफी से भारतीय हॉकी टीम में कामयाब वापसी और एक बार फिर खुद को टीम के सबसे अहम में स्थापित करना उनके खुद पर भरोसे से ही मुमकिन हो पाया। ऐसे बहुतेरे थे जो सरदार से यह सवाल करने लगे थे कि वे हॉकी से कब संन्यास ले रहे हैं।
सरदार ने अपने जीवट से सभी को गलत साबित कर भारतीय हॉकी टीमश् में वापसी की। सरदार को एशियाई खेलों के लिए बेंगलुरू के साई केंद्र में ट्रेनिंग में पसीना बहाते देख कर टीम के नौजवान खिलाड़ी तक को रश्क हो सकता है। सरदार ने 'अमर उजाला' से बेंगलुरू में पिछले छह-सात महीनों में झेले उतार-चढ़ावों और एशियाई खेलों की तैयारी पर खुल कर बात की।
सरदार कहते हैं, 'चैंपियंस ट्रॉफी से भारतीय टीम में वापसी करने से पहले और इससे पूर्व राष्ट्रमंडल खेलों के लिए टीम में जगह न पाने पर पिछले करीब छह -सात महीने में मैंने जो अनुभव किया और सीखा भारत के लिए 12 बरस के अंतरॉष्ट्रीय हॉकी करियर में कभी नहीं सीख पाया। यह मेरी जिंदगी का नया अनुभव था। वाकई चैंपियंस ट्रॉफी से भारतीय टीम में वापसी हॉकी में मेरा पुनर्जन्म है।'
उन्होंने आगे कहा, 'हरेन्द्र सिंह के भारतीय पुरुष हॉकी टीम के चीफ कोच संभालने और चैंपियंस ट्रॉफी के लिए टीम में वापसी से मुझे खुद को साबित करने का नया मौका मिला। चैंपियंस ट्रॉफी में हमारी टीम ने एकजुट होकर दबाव में बड़े मैचों में बेहतर प्रदर्शन किया। हरेन्द्र सर के मार्गदर्शन में हमारी टीम के नए और अनुभवी लड़के भी दबाव में बेहतर करना सीख गए।'
'हमारी मौजूदा टीम की ताकत एक इकाई के रूप में उसका जुझारू प्रदर्शन है। एशियाई खेलों में हमारी टीम का लक्ष्य और सोच इसमें सिर्फ और सिर्फ स्वर्ण पदक बरकरार रख कर सीधे टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वॉलिफाई करना है। यह मुश्किल जरूर है लेकिन इसके लिए हमें एशिया की नंबर एक टीम के रूप में मैदान पर खेलना जरूरी है और हमारी टीम इसमें सक्षम है।'