लोकप्रिय और ट्रेंडिंग टॉपिक्स

विज्ञापन
Hindi News ›   Spirituality ›   Religion ›   yamuna chhath 2023 date time yamuna puja importance and significance

Yamuna Chhath 2023 : इन मंत्रों से प्रसन्न होती हैं मां यमुना

पं.जयगोविंद शास्त्री, ज्योतिषाचार्य Published by: विनोद शुक्ला Updated Sat, 25 Mar 2023 11:11 AM IST
सार

यमुना का पृथ्वी पर आगमन का चैत्र शुक्लपक्ष षष्टी को हुआ जिसे 'यमुना छठपर्व' के रूप में भी मनाया जाता है।

yamuna chhath 2023 date time yamuna puja importance and significance
- फोटो : अमर उजाला

विस्तार

परब्रह्म श्रीकृष्ण की पटरानी यमुना का पृथ्वी पर आगमन का चैत्र शुक्लपक्ष षष्टी को हुआ जिसे 'यमुना छठपर्व' के रूप में भी मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार देवी यमुना सूर्यदेव की पुत्री हैं। यमदेव और शनि इनके सबसे प्रिय भाईयों में से एक हैं और भद्रा इनकी बहन हैं।


यमुना की महिमा 
गोलोक में जब श्रीहरि ने यमुना जी को पृथ्वी पर जाने की आज्ञा दी और नदियों में श्रेष्ठ यमुना जब परमेश्वर श्रीकृष्ण परिक्रमा करके पृथ्वी पर जाने को उद्यत हुईं, उसी समय विरजा तथा ब्रह्मद्रव से उत्पन्न साक्षात गंगा ये दोनों महाशक्तिया नदी स्वरूप में आकर यमुना में लीन हो गईं। इसीलिए परिपूर्णतमा कृष्णा यमुना को परिपूर्णतम श्रीकृष्ण की पटरानी के रूप में लोग जानते हैं । तदन्तर सरिताओं में श्रेष्ठ कालिंदी अपने महान वेग से विरजा के वेग का भेदन करके निकुंज द्वार से निकलीं और असंख्य ब्रहमाण्ड समूहों का स्पर्श करती हुई ब्रह्मद्रव में गयीं । फिर उसकी दीर्घ जलराशि का अपने महान वेग से भेदन करती हुई वे महानदी श्रीभगवान वामन के बाएं चरण के अंगूठे के नख से विदीर्ण हुए ब्रह्मांड के शिरोंभाग में विद्यमान ब्रह्मद्रवयुक्त विवर में श्रीगंगा के साथ ही प्रविष्ट हुई और वहां से ये ध्रुवमंडल में स्थित भगवान अजित विष्णु के धाम बैकुंठलोक में होती हुई ब्रह्मलोक को लांघकर जब ब्रह्म कमंडल से नीचे गिरीं, तब देवताओं के सैकड़ों लोकों में एक-से-दूसरे के क्रम में बिचरती हुई आगे बढीं।


यमुना का 'कालिंदी' नाम कैसे ?
जब यमुना जी सुमेरगिरी के शिखर पर बड़े वेग से गिरीं और अनेक शैल-श्रृंगों को लांघकर बड़ी-बड़ी चट्टानों के तटों का भेदन करतीं हुई मेरुपर्वत से दक्षिण दिशा की ओर जाने को उद्यत हुईं, तब यमुना जी गंगा से अलग हो गयीं । महानदी गंगा तो हिमवान पर्वत पर चली गईं किंतु कृष्णा (श्याम सलिला) यमुना 'कलिंद शिखर' पर जा पहुंची। वहां जाकर उस कलिंद पर्वत से प्रकट होने के कारण उनका नाम 'कालिंदी' हो गया । कलिंदगिरी के शिखरों से टूटकर जो बड़ी-बड़ी चट्टानें पड़ी थीं, उनके सुदृढ़ तटों को तोड़ती-फोड़ती हुई वेगवती कृष्णा कालिंदी अनेक प्रदेशों को पवित्र करती हुई खांडववन (इंद्रप्रस्थ) जा पहुंची।

श्रीकृष्ण को पतिरूप में पाने की चाह
यमुना जी साक्षात परिपूर्णतम भगवान श्रीकृष्ण को अपना पति बनाना चाहती थीं इसीलिए वे परम दिव्यदेह धारण करके खांडव वन में तपस्या करने लगीं। इनके पिता भगवान सूर्य ने जल के भीतर ही एक दिव्य घर का निर्माण कर दिया जिसमें आज भी वह रहा करती हैं। खांडव वन से वेग पूर्वक चलकर कालिंदी ब्रजमंडल में श्री वृंदावन और मथुरा के निकट आ पहुंची । यहां से श्रीगोकुल आने पर परम सुंदरी यमुना ने विशाखा नाम की सखी के साथ अपने नेतृत्व में गोप किशोरियों का एक यूथ बनाया और श्रीकृष्णचंद्र के रास में सम्मिलित होने के लिए उन्होंने वहीं अपना निवास स्थान निश्चित किया । तदनंतर जब वे ब्रज से आगे जाने लगीं तो ब्रजभूमि के वियोग से विह्वल हो, प्रेमानंद आँसू बहाती हुईं पश्चिम दिशा की ओर प्रवावित हुई । ब्रजमंडल की भूमि को अपने जल के वेग से तीन बार प्रणाम करके यमुना अनेक प्रदेशों को पवित्र करती हुई उत्तम तीर्थ प्रयाग जा पहुंची। वहां गंगा जी के साथ उनका संगम हुआ और वे उन्हें साथ लेकर छीर सागर की चली गयीं। उस समय देवताओं ने उनके ऊपर फूलों की वर्षा की और दिग्विजय सूचक जयघोष किया।

गंगा द्वारा यमुना की प्रशंसा
एक साथ छीरसागर पहुंचकर गंगा जी ने यमुना से कहा हे कृष्णे ! सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को पावन बनाने वाली तो तुम हो, अतः तुम्हीं धन्य हो। श्रीकृष्ण के वामांग से तुम्हारा प्रादुर्भाव हुआ है तुम परमानंदस्वरूपिणी हो। साक्षात् परिपूर्णतमा हो। समस्त लोकों के द्वारा वन्दनीया हो। परिपूर्णतम परमात्मा श्रीकृष्ण की पटरानी हो। अतः हे कृष्णे ! तुम सब प्रकार से उत्कृष्ट हो। तुम कृष्णा को मैं प्रणाम करती हूं। तुम समस्त तीर्थों और देवताओं के लिए भी दुर्लभ हो।

यमदंड और शनि पीड़ा से बचाव
यमुना छठ के दिन अथवा किसी भी शनिवार के दिन प्राणी यदि स्नान आदि करके यमुनातट पर इन मंत्रों । ऊं नमो भगवत्यै कलिन्दनन्दिन्यै सूर्यकन्यकायै यमभगिन्यै श्रीकृष्णप्रियायै यूथीभूतायै स्वाहा । ऊँ हीं श्रीं, क्लीं कालिन्द्यै देव्यै नम: । मंत्र के द्वारा यमुना का पूजन और आरती आदि करे तो उसके जीवन में अकाल मृत्युका भय, यमदंड और त्रास देनेवाली शनि की शाढ़ेसाती, महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यान्तर दशा तथा मारकग्रह दशा का दोष शांत हो जाता है।
विज्ञापन

यह भी पढ़ें-

 
विज्ञापन
विज्ञापन
सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट अमर उजाला पर पढ़ें आस्था समाचार से जुड़ी ब्रेकिंग अपडेट। आस्था जगत की अन्य खबरें जैसे पॉज़िटिव लाइफ़ फैक्ट्स,स्वास्थ्य संबंधी सभी धर्म और त्योहार आदि से संबंधित ब्रेकिंग न्यूज़।
 
रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें अमर उजाला हिंदी न्यूज़ APP अपने मोबाइल पर।
Amar Ujala Android Hindi News APP Amar Ujala iOS Hindi News APP
विज्ञापन
विज्ञापन

एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें

फॉन्ट साइज चुनने की सुविधा केवल
एप पर उपलब्ध है

बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही
एप में पढ़ें

क्षमा करें यह सर्विस उपलब्ध नहीं है कृपया किसी और माध्यम से लॉगिन करने की कोशिश करें

Followed