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Durga Chalisa: आज से नौ दिनों तक रोज करें श्री दुर्गा चालीसा का पाठ, प्रसन्न होंगी मां अंबे

धर्म डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: आशिकी पटेल Updated Wed, 22 Mar 2023 03:26 PM IST
सार

Chaitra Navratri 2023 Durga Chalisa: 22 मार्च को प्रतिपदा तिथि से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। प्रतिपदा तिथि से रामनवमी तक चैत्र नवरात्रि मनाई जाएगी। रामनवमी इस साल 30 मार्च को है। 

Chaitra Navratri 2023 read shri durga chalisa to get maa durga blessings
Durga - फोटो : iStock

विस्तार

Chaitra Navratri 2023 Durga Chalisa: 22 मार्च को प्रतिपदा तिथि से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। प्रतिपदा तिथि से रामनवमी तक चैत्र नवरात्रि मनाई जाएगी। रामनवमी इस साल 30 मार्च को है। नवरात्रि के नौ दिनों में माता के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नौ देवियों की कृपा से अलग-अलग तरह के मनोरथ सिद्ध होते हैं। नौ दिन तक चलने वाली चैत्र नवरात्रि में मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा कर भक्त माता को प्रसन्न करते हैं। साथ ही नवरात्रि में भक्त दिनभर व्रत रखते हैं और शाम को माता रानी की आरती करके उन्हें भोग लगाते हैं। चैत्र नवरात्रि में आरती के साथ दुर्गा चालीसा का भी पाठ किया जाता है। मान्यता है कि चालीसा के बिना मां दुर्गा की चालीसा अधूरी मानी जाती है। चैत्र नवरात्रि में दुर्गा चालीसा का पाठ करने से शत्रुओं से मुक्ति, इच्छा पूर्ति सहित अनेक मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आइए यहां पढ़ते हैं दुर्गा चालीसा-

दुर्गा चालीसा
नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अंबे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुँलोक में डंका बाजत॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥
शंकर अचरज तप कीनो। काम क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें। रिपु मुरख मोही डरपावे॥
करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।
जब लगि जियऊं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥

॥ इति श्रीदुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥

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