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खंडहर बन गए हैं ये गांव, घर छोड़कर भाग रहे लोग, अब याद आए अंग्रेज

सुनील चड्ढा/ सतीश डढवाल/अमर उजाला, लुनसू (कांगड़ा) Updated Mon, 20 Feb 2017 12:01 PM IST
Story of Kangra Villages in Himachal.

आजाद भारत में ब्रिटिश हुकूमत को कोई अच्छा नहीं कहता है, लेकिन हिमाचल के कांगड़ा जिले के कुछ गांव ऐसे भी हैं, जहां आज भी लोग अंग्रेजों को याद करते हैं। रोज सुबह रेलगाड़ी की छुक-छुक से लोगों के दिन की शुरुआत होती है। यहां धार और दंगड़ गांवों तक पहुंचने के लिए सिर्फ रेलगाड़ी ही एकमात्र जरिया है। आज तक इन गांवों को सड़क तक नसीब नहीं हो सकी है।



सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा की मूलभूत सुविधाओं के अभाव में ये गांव खंडहर बनने लगे हैं। नई पीढ़ी यहां से पलायन कर रही है। गांव में बचे हैं तो सिर्फ बुजुर्ग। बरसात में ल्हासे गिरने के कारण धार-धंगड़ की लाइफ लाइन रेलगाड़ी भी चार महीने बंद हो जाती है। यहां की करीब ढाई हजार आबादी के लिए ये गांव ‘कालापानी’ बन जाते हैं। कांगड़ा के देहरा उपमंडल के धार-धंगड़ गांवों के लोग अपने इलाकों को काला पानी के नाम से पुकारते हैं। इनमें सड़क और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं हैं ही नहीं।


दुकान से दूध तक लेने के लिए लोगों को 6 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। राशन के लिए 10 किलोमीटर चंदुआ गांव जाना पड़ता है। तीन दुकानों वाले इन गांवों के दुकानदारों को सामान 12 किलोमीटर दूर रानीताल और अन्य जगह से ट्रेन में लाना पड़ता है। धार गांव में छोटी सी दुकान करने वाले बुजुर्ग रोशन लाल कहते हैं कि जब कोई बीमार हो जाए तो उसे पालकी या चारपाई में 10 किमी दूर सपड़ू या मसूर पीएचसी लाना पड़ता है। बेहतर इलाज के लिए नगरोटा सूरियां या टीएमसी जाना पड़ता है।

मदन लाल ने बताया कि समय पर स्वास्थ्य सुविधा न मिलने से पिछले एक दशक में डेढ़ दर्जन लोग जान गंवा चुके हैं। उनके भाई कमल सिंह की मौत समय से पहले सिर्फ इसलिए हो गई, क्योंकि समय पर एंबुलेंस नहीं मिली। एंबुलेंस से 40 किमी दूर कांगड़ा अस्पताल से आना था। करीब पांच किमी दूर धंगड़ गांव में पीएचसी है, लेकिन स्टाफ न होने से यह किसी काम का नहीं।

गांव में नहीं दे रहा कोई अपनी बेटी

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70 साल के सीताराम कहते हैं कि उनके धार गांव के युवकों के साथ आसपास के गांव वाले अपनी बेटियों की शादी नहीं कराना चाहते हैं। यदि कोई अपनी बेटी की शादी कर भी देता है तो मायके वाले ताने देते रहते हैं कि पहले पता होता तो अपनी बेटी की शादी नहीं कराते।       

5 किमी पैदल चल वोट देने वालों की कीमत नहीं
पुरुषोत्तम सिंह, मलोक सिंह, मदनलाल, कुशाल सिंह, ओंकार सिंह, किशोरी लाल, सीताराम आदि ने कहा कि वे विधानसभा और संसदीय चुनावों के दौरान करीब 5 किमी दूर धंगड़ गांव में बने मतदान केंद्र तक पहुंचकर वोट डालते हैं, लेकिन इस बार के विस चुनावों का बहिष्कार करेंगे। नेता सिर्फ चुनाव के वक्त वोट मांगने आते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि सांसद अनुराग ठाकुर तो एक बार भी उनके गांव नहीं आए हैं। 

कभी शाम को तो कभी अगले दिन आता है अखबार
अमर उजाला की टीम जब ज्वालामुखी रोड (रानीताल) से रेलगाड़ी से लुनसू रेलवे स्टेशन पहुंची। जैसे ही टीम पैदल गांवों में पहुंची तो लोगों की भीड़ जमा हो गई। लोग बोले - यहां कभी नेता नहीं आए। पहली बार मीडिया वाले उनकी बात सुनने आए हैं। पंचायत प्रधान किशोरी लाल और उपप्रधान नितिन ठाकुर सहित ग्रामीणों ने गांवों की समस्याओं के बारे में बताया। हैरानी तब हुई, जब पता चला कि सड़क न होने से इन गांवों में अखबार रेलवे से आता है और वह कभी शाम को तो कभी दूसरे दिन।

बच्चों की शिक्षा के लिए बिखर गए परिवार

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ग्रामीण मदनलाल ने कहा कि बच्चों को जमा एक और दो की शिक्षा के लिए 10-12 किमी दूर हरिपुर जाना पड़ता है। रोशन लाल के अनुसार उनकी बेटी नेहा धर्मशाला कॉलेज से एमए कर रही है। बेटा अजय कुमार डीएवी स्कूल मनेई में पढ़ता है। पत्नी बेटी के साथ किराए के मकान में धर्मशाला के खनियारा में रहती है। हफ्ते-दस दिन बेटे के पास मनेई चली जाती हैं। वे घर संभालते हैं। किशोरी लाल और गुरबचन सिंह ने बताया कि यहां के बच्चे या तो अनपढ़ रह रहे हैं या बाहर अपनी माओं को साथ ले जाकर पढ़ रहे हैं।
 
अपनी जन्मभूमि नहीं छोड़ना चाहते बुजुर्ग
ग्रामीण मदनलाल और रोशन लाल ने बताया कि युवा पीढ़ी अपने बेहतर भविष्य के लिए गांव छोड़कर विकसित इलाकों में जा रही है। फिर अच्छी नौकरी मिलने के बाद वहीं सेटल हो रही है। गांव में रह जाते हैं तो बस बुजुर्ग मां-बाप। बच्चे तो उन्हें अपने साथ ले जाना चाहते हैं, लेकिन बुजुर्ग अपनी जन्मभूमि को नहीं छोड़ा चाहते। 

सरकार केंद्र को भेजे प्रस्ताव : अनुराग      
सांसद अनुराग ठाकुर ने कहा कि धार धंगड़ के लोगों का दर्द समझता हूं। बिना सड़क के गांव का विकास संभव नहीं है। फॉरेस्ट रिजर्व लैंड होने से सड़क नहीं बनी है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में गांव के लिए सड़क बनाई जा सकती है। अगर सरकार केंद्र को प्रस्ताव बनाकर भेजे कि जो गांव फॉरेस्ट रिजर्व लैंड में आते हैं, वहां सड़क बनाने को फॉरेस्ट क्लीयरेंस को वन टाइम रिलेक्सेशन दी जाए तो धार धंगड़ ही नहीं हिमाचल के कई ऐसे गांवों में सड़क बन सकती है।

मेरे एमएलए बनने के बाद रुका पलायन : रवि      
देहरा के विधायक रविंद्र सिंह रवि ने कहा कि इस गांव को नेशनल हाइवे दिया है। इससे रानीताल, त्रिपल, मेहवा, लुनसू आदि गांव लाभान्वित होंगे। कहा कि धार धंगड़ गांव के लिए दो करोड़ की पेयजल योजना पर काम हो रहा है। दो अन्य सड़कें विधायक प्राथमिकता में डाली हैं। उनके विधायक बनने के बाद गांव से पलायन रुका है। विप्लव परिवार पर निशाना साधते हुए रवि ने कहा कि पहले पलायन क्यों हुआ, यह उस परिवार पूछना चाहिए जिसने यहां 50 साल तक राज किया। वे ही इसके जिम्मेदार हैं।

सरकार के समक्ष उठाएंगे मसला : राजौर      
पूर्व विधायक निखिल राजौर का कहना है कि फॉरेस्ट रिजर्व लैंड की वजह से लोगों को सुविधा नहीं मिल रही है, लेकिन, धार धंगड़ को सड़क सुविधा से जोड़ने के लिए प्रदेश सरकार के समक्ष मसला उठाया जाएगा। इस गांव को सड़क से जोड़ने का हरसंभव प्रयास किया जाएगा।
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