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Hearing of petitions challenging Himachal Pradesh Water Cess Act fixed on June 28
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HP High Court: हिमाचल प्रदेश वाटर सेस अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई 28 जून को निर्धारित
अमर उजाला ब्यूरो, शिमला
Published by: Krishan Singh
Updated Tue, 30 May 2023 08:17 PM IST
प्रदेश वाटर सेस अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई 28 जून को निर्धारित की गई है। हाईकोर्ट के समक्ष भारत सरकार के उपक्रमों और निजी विद्युत कंपनियों ने याचिकाएं दायर की हैं।
हिमाचल प्रदेश वाटर सेस अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई 28 जून को निर्धारित की गई है। हाईकोर्ट के समक्ष भारत सरकार के उपक्रमों और निजी विद्युत कंपनियों ने याचिकाएं दायर की हैं। मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और न्यायाधीश अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने सभी मामलों की सुनवाई एक साथ निर्धारित की है। एनटीपीसी, बीबीएमबी, एनएचपीसी और एसजेवीएनएल ने दलील दी है कि केंद्र और राज्य सरकार के साथ अनुबंध के आधार पर कंपनियां राज्य को 12 से 15 फीसदी बिजली मुफ्त देती हैं। इस स्थिति में हिमाचल प्रदेश वाटर सेस अधिनियम के तहत कंपनियों से सेस वसूलने का प्रावधान संविधान के अनुरूप नहीं है। अदालत को बताया गया कि 25 अप्रैल 2023 को भारत सरकार ने पाया कि कुछ राज्य भारत सरकार के उपक्रमों पर सेस वसूल रहे हैं। भारत सरकार ने राज्य के सभी मुख्य सचिवों को हिदायत दी थी कि भारत सरकार के उपक्रमों से वाटर सेस न वसूला जाए।
आरोप लगाया गया है कि इसके बावजूद राज्य सरकार केंद्र सरकार के निर्देशों की अनुपालना नहीं कर रही है। इससे पहले प्रदेश में निजी जल विद्युत कंपनियों ने भी हिमाचल प्रदेश वाटर सेस अधिनियम को चुनौती दी है। निजी जल विद्युत कंपनियों ने आरोप लगाया गया है कि पनबिजली परियोजना पर वाटर सेस लगाया जाना संविधान के प्रावधानों के विपरीत है। नए अधिनियम के अनुसार, 10 पैसे प्रति घन मीटर का सेस उन पनबिजली परियोजनाओं पर लगाया जाएगा, जिनकी ऊंचाई 30 मीटर तक हेड (जहां पानी जलविद्युत प्रणाली में प्रवेश करता है और जहां से पानी निकलता है) के बीच होता है। 30-60 मीटर के लिए 25 पैसे प्रति घन मीटर, 60-90 मीटर के लिए 35 पैसे प्रति घन मीटर और 90 मीटर से ऊपर के लिए 50 पैसे प्रति घन मीटर रखा गया है। हिमाचल में 172 पनबिजली परियोजनाएं हैं, और वाटर सेस लगाने से राज्य को लगभग 4,000 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होने की उम्मीद है। हिमाचल से पहले, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में जलविद्युत संयंत्रों पर समान शुल्क लगाया जाता था।
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