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Mahasweta Ghosh: भारतीय महिला ने जीती दुनिया की सबसे कठिन रेस, जानें मैराथन ऑफ सैंड की विजेता के बारे में

लाइफस्टाइल डेस्क, अमर उजाला Published by: शिवानी अवस्थी Updated Wed, 12 Jul 2023 01:44 PM IST
सार

मैराथन ऑफ सैंड सहारा के रेगिस्तान में आयोजित होने वाली एक प्रतियोगिता है, जिसमें देश दुनिया के लोग हिस्सा लेते हैं।

First Indian Woman Mahasweta Ghosh completed world toughest Race ultra marathon in Sahara desert
mahasweta ghosh - फोटो : facebook

विस्तार
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भारत की एक बेटी ने अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में अपना परचम लहराया है। दुनिया की सबसे कठिन रेस में इस भारतीय महिला ने जीतकर इतिहास रच दिया। इस महिला का नाम महाश्वेता घोष है। बंगाल की रहने वाली महाश्वेता ने सहारा के रेगिस्तान में 256 किलोमीटर की दौड़ लगाकर अपने नाम बड़ी उपलब्धि दर्ज कराई है। दुनिया की इस सबसे कठिन माने जाने वाली रेस का नाम 'मैराथन ऑफ सैंड' है, जिसमें महाश्वेता ने भारत का प्रतिनिधित्व किया। इस रेस में दुनियाभर के कई देशों से प्रतिभागी शामिल हुए। मैराथन में प्रतिभागियों के अकेले रहना होता है। वह अपने परिवार से संपर्क नहीं कर सकते हैं और रेस को सबसे पहले खत्म करने वाला विजेता होता है। आइए जानते हैं इतिहास रचने वाली महाश्वेता घोष के बारे में।



मैराथन ऑफ सैंड क्या है?

मैराथन ऑफ सैंड सहारा के रेगिस्तान में आयोजित होने वाली एक प्रतियोगिता है, जिसमें देश दुनिया के लोग हिस्सा लेते हैं। प्रतियोगिता सात दिन तक चलती है और रेस में कुल 256 किलोमीटर चलना होता है। प्रतियोगियों के लिए बड़ी चुनौती होती है अलग माहौल, मौसम और रेगिस्तानी ट्रैक पर चलना। रोजाना एक टारगेट सेट करके उन्हें इसे पूरा करना होता है। टारगेट पूरा न करने पर प्रतिभागी को डिस्क्वालिफाई कर दिया जाता है।

 

रेत के कारण चलना मुश्किल हो जाता है। कई जगहों पर रेत के पहाड़ होते हैं। तापमान भीषण गर्म होता है, इस कारण धूप और गर्मी में चलना कठिन होता है। पैरों में छाले पड़ सकते हैं। अत्यधिक प्यास महसूस होती है। इन दौरान उन्हें अकेले रहना होता है, उनके पास न तो फोन होता है और न ही परिवार से संपर्क करने को मिलता है। उनके पास एक बैग होता है, जिसमें खाने पीने का सामान, पानी और टेंट होता है।

 

भारतीय महिला ने रचा इतिहास

 

मैराथन में जीत दर्ज कराने वाली श्वेता बंगाल की रहने वाली हैं। श्वेता एक टेक कंपनी में काम करती हैं। नौकरी के साथ ही मैराथन की तैयारी के लिए वह सुबह चार बजे उठती थीं और रात 10 बजे सो जाती हैं। महाश्वेता अपनी फिटनेस का ध्यान रखने के लिए हेल्दी डाइट लेती हैं और दौड़ का अभ्यास करती हैं।

 

कैसे पहुंचीं मैराथन तक
 

महाश्वेता का वजन काफी बढ़ा हुआ था। वह अपने बढ़े वजन से परेशान थीं। कॉलेज में पढ़ाई के दौरान लाइफस्टाइल बिगड़ने से वह ओवरवेट हो गई थीं। बाद में उन्होंने वजन कम करने की ठानी और दौड़ना शुरू किया। लेकिन यही दौड़ उनकी पहचान बन गई, जब उन्होंने मैराथन ऑफ सैंड में भारत का प्रतिनिधित्व किया और तय समय में दौड़ पूरी की। वर्ष 2019 में महाश्वेता का पैर टूटा, बाद में कोरोना काल शुरू हो गया। उन्हें मौका मिला मैराथन की तैयारी करने का। मैराथन तक का रास्ता तय करने में महाश्वेता के पति ने उन्हें प्रेरित किया।

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