लुधियाना। पंजाब के शाही इमाम मौलाना हबीब-उर-रहमान सानी लुधियानवी ने मुसलमानों से दिलों से नफरत निकाल कर आपसी भाईचारे को मजबूत करने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि सच्चा मुसलमान वही है, जो हजरत मोहम्मद के बताए रास्ते पर चले। शाही इमाम शुक्रवार को जामा मस्जिद में 12 वफात के ऐतिहासिक दिन के मौके पर आयोजित जलसा-ए-सीरतुन नबी को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि इस्लाम धर्म आपसी भाईचारे और शांति का संदेश देता है। सांप्रदायिक ताकतों की ओर से इस्लाम धर्म को आतंकवाद से जोड़ना गलत और निंदनीय है। उन्हाेंने कहा कि रबी-उल-अव्वल के महीने में जहां पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद इस दुनिया में तशरीफ लाए, वहीं 12 रबी-उल-अव्वल के दिन ही अल्लाह तआला के पास वापस चले गए। इसलिए आज के दिन को 12 वफात कहा जाता है। यही वजह है कि आज के दिन मुसलमान न खुशी मनाते हैं न गम, बल्कि आज के दिन अपने प्यारे नबी हजरत मोहम्मद को याद करते हुए उनकी दी हुई शिक्षाओं के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करने का संकल्प दोहरातेे हैं। शाही इमाम ने कहा कि 1400 वर्ष बीत जाने के बाद भी आपकी शिक्षाएं किसी परिवर्तन के बिना मूल्य रूप में मौजूद हैं और मानव जाति का मार्गदर्शन कर रही हैं। उन्होंने कहा कि अल्लाह तआला ने कुरान शरीफ में यह बात स्पष्ट कर दी कि हजरत मोहम्मद साहिब आखरी नबी हैं। अब कोई और व्यक्ति कयामत तक नबी बनकर नहीं आ सकता। उन्होंने कहा कि हजरत मुहम्मद के दुनिया में आने से पहले लोग बेटियों को जिंदा जमीन में दफन कर दिया करते थे। उन्होंने दुनिया में आकर इस जुल्म को रोका और बेटी को अल्लाह की रहमत बताया। इस दीनी मजलिस में धार्मिक विद्वानों ने हजरत मुहम्मद (स.) की जीवनी पर रोशनी डाली। इस मौके पर नायब शाही इमाम मौलाना उसमान रहमानी, मुफ्ती जमालुद्दीन, मौलाना इब्राहिम, मौलाना कासिम, मौलाना अतीक-उर-रहमान, कारी मोहतरम, मौलाना महबूब आलम गोरखपुरी, कारी अलताफ उर रहमान, अंजूम असगर, तनवीर खान, शाहनबाज अहमद, मौलाना रासे कासमी, मुहम्मद सरफराज, गुलाम हसन कैसर, शाही इमाम के सचिव मुस्तकीम विशेष रूप से उपस्थित थे।
लुधियाना। पंजाब के शाही इमाम मौलाना हबीब-उर-रहमान सानी लुधियानवी ने मुसलमानों से दिलों से नफरत निकाल कर आपसी भाईचारे को मजबूत करने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि सच्चा मुसलमान वही है, जो हजरत मोहम्मद के बताए रास्ते पर चले। शाही इमाम शुक्रवार को जामा मस्जिद में 12 वफात के ऐतिहासिक दिन के मौके पर आयोजित जलसा-ए-सीरतुन नबी को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि इस्लाम धर्म आपसी भाईचारे और शांति का संदेश देता है। सांप्रदायिक ताकतों की ओर से इस्लाम धर्म को आतंकवाद से जोड़ना गलत और निंदनीय है।
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उन्हाेंने कहा कि रबी-उल-अव्वल के महीने में जहां पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद इस दुनिया में तशरीफ लाए, वहीं 12 रबी-उल-अव्वल के दिन ही अल्लाह तआला के पास वापस चले गए। इसलिए आज के दिन को 12 वफात कहा जाता है। यही वजह है कि आज के दिन मुसलमान न खुशी मनाते हैं न गम, बल्कि आज के दिन अपने प्यारे नबी हजरत मोहम्मद को याद करते हुए उनकी दी हुई शिक्षाओं के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करने का संकल्प दोहरातेे हैं।
शाही इमाम ने कहा कि 1400 वर्ष बीत जाने के बाद भी आपकी शिक्षाएं किसी परिवर्तन के बिना मूल्य रूप में मौजूद हैं और मानव जाति का मार्गदर्शन कर रही हैं। उन्होंने कहा कि अल्लाह तआला ने कुरान शरीफ में यह बात स्पष्ट कर दी कि हजरत मोहम्मद साहिब आखरी नबी हैं। अब कोई और व्यक्ति कयामत तक नबी बनकर नहीं आ सकता। उन्होंने कहा कि हजरत मुहम्मद के दुनिया में आने से पहले लोग बेटियों को जिंदा जमीन में दफन कर दिया करते थे। उन्होंने दुनिया में आकर इस जुल्म को रोका और बेटी को अल्लाह की रहमत बताया।
इस दीनी मजलिस में धार्मिक विद्वानों ने हजरत मुहम्मद (स.) की जीवनी पर रोशनी डाली। इस मौके पर नायब शाही इमाम मौलाना उसमान रहमानी, मुफ्ती जमालुद्दीन, मौलाना इब्राहिम, मौलाना कासिम, मौलाना अतीक-उर-रहमान, कारी मोहतरम, मौलाना महबूब आलम गोरखपुरी, कारी अलताफ उर रहमान, अंजूम असगर, तनवीर खान, शाहनबाज अहमद, मौलाना रासे कासमी, मुहम्मद सरफराज, गुलाम हसन कैसर, शाही इमाम के सचिव मुस्तकीम विशेष रूप से उपस्थित थे।
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