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To save existence Akali Dal focus on Panthak voters, created Panthak advisory board
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Punjab: अस्तित्व बचाने के लिए पंथक वोटरों की शरण में अकाली दली, पंथक सलाहकार बोर्ड बनाया
सुरिंदर पाल, संवाद न्यूज एजेंसी, जालंधर
Published by: भूपेंद्र सिंह
Updated Mon, 30 Jan 2023 02:46 PM IST
सार
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शिरोमणि अकाली दल को अस्तित्व बचाने के लिए दोबारा पंथक वोटों से ही आशा की किरण नजर आ रही है। सुखबीर का सारा फोकस पंथक वोटों पर है, उन्होंने पंथक सलाहकार बोर्ड बनाया है।
प्रकाश सिंह बादल की सरपरस्ती और सुखबीर सिंह बादल की अगुवाई वाले शिरोमणि अकाली दल को अस्तित्व बचाने के लिए दोबारा पंथक वोटों से ही आशा की किरण नजर आ रही है। यही वजह है कि सुखबीर बादल सारा फोकस पंथक वोटों पर कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने पंथक सलाहकार बोर्ड का गठन किया है और जिसने रणनीति बनानी शुरू कर दी है कि पंजाब में पंथक वोट को कैसे अकाली दल की झोली में डलवाना है।
शिअद की इतनी बुरी दशा कभी नहीं रही, जितनी वर्तमान है। छह साल पहले तक सरकार में रहे अकाली दल के वर्तमान में सिर्फ तीन विधायक हैं। उनमें भी बगावत की सुगबुगाहट है। अकाली दल की साझीदार बसपा भी आंखें दिखाने लगी है।
लिहाजा, अकाली दल को अब दोबारा पंथक वोट की याद आने लगी है और पार्टी ‘पंथक एजेंडों’ पर चल पड़ी है। अकाली दल के लिए दिक्कत यह है कि उसके पंथक नेता भी धीरे धीरे पार्टी को अलविदा कहने लगे हैं और पंथक एजेंडों को लेकर ही वह इन दिनों अकाली दल का भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से मुकाबला है। भाजपा भी पंजाब में पंथक एजेंडा लेकर चल रही है यही वजह है कि केंद्रीय जल मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत तक ने बंदी सिंहों की रिहाई के पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए।
कमजोर होने पर कट्टरपंथ का सहारा
राज्य में शिरोमणि अकाली दल जब कमजोर हुआ है, तब उसने कभी खुलकर तो कभी परोक्ष रूप से कट्टरपंथ का सहारा लिया। अकाली सुप्रीमो सांसद सुखबीर सिंह बादल अब यही राह अख्तियार कर रहे हैं। सुखबीर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारों में से एक सतवंत सिंह की बरसी पर रखे गए भोग में उसके घर गए थे, जहां राज्य के लगभग सभी कट्टरपंथी जुटे थे।
सुखबीर सिंह बादल का वहां जाना सबको हैरान कर गया। उसके बाद हरमंदिर साहिब में सतवंत की बरसी पर रखे गए पाठ में भी सुखबीर पहुंचे। इससे पहले उन्होंने ऐसे किसी भोग में शिरकत नहीं की थी। कट्टरपंथियों ने बंदी सिखों की रिहाई के लिए मोहाली में पक्का मोर्चा लगाया है और सुखबीर और उनके समर्थक अक्सर वहां जाते हैं।
इन पंथक नेताओं ने शिअद को कहा अलविदा...
बीबी जागीर कौरः कभी बादलों की खास रहीं। विधायक और मंत्री बनीं। तीन बार एसजीपीसी की प्रधान रहीं। हरजिंदर सिंह धामी को एसजीपीसी प्रधान बनाने के बाद पार्टी से इस्तीफा दे दिया। बीबी जागीर कौर एक डेरे की गद्दीनशीन है और पंथक पकड़ भी मजबूत है।
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मनजिंदर सिंह सिरसाः दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व प्रधान सिरसा सुखबीर बादल के ओएसडी रहे और अब वह भाजपा के साथ हैं।
एसजीपीसी सदस्य परमजीत सिंह रायपुर समेत कई सदस्यों ने अकाली दल को अलविदा कहा।
बेअदबी की घटनाओं के बाद पंथक वोटर नाराज..
शिअद (बादल) के कार्यकाल में बेअदबी की घटनाओं, गुरमीत राम रहीम को श्री अकाल तख्त साहब से माफी, बरगाड़ी में सिख संगत पर गोलियां चलाने की घटनाओं ने पंथक वोटरों में अकाली दल (बादल) के प्रति गहरी नाराजगी पैदा कर दी। उसका नतीजा रहा कि पंथक वोट अकाली दल से खिसकता जा रहा है। 2019 में अकाली दल लोकसभा चुनाव में दो सीटों पर सिमट गया। 2022 के विस चुनावों में अकाली दल को सिर्फ तीन सीटें हैं, जिसमें एक बसपा के उम्मीदवार की है। यही वजह रही कि 2022 के चुनाव में प्रकाश सिंह बादल, सुखबीर सिंह बादल, बिक्रम सिंह मजीठिया चुनाव हार गए।
बादल परिवार हमेशा सिख कौम का नुकसान करता आया है
बादल परिवार ने हमेशा पंथ का इस्तेमाल कर सत्ता हासिल की है और बाद में पंथ का नुकसान किया है। उनकी पार्टी हाशिए पर है तो वे वोट की राजनीति के लिए इनसे नजदीकियां बढ़ाने में लगे हैं। यह लोगों की भावनाओं से खुला खिलवाड़ है। आज वे बंदी सिखों की रिहाई के आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी कर रहे हैं लेकिन तब क्या किया जब केंद्र की भाजपा सरकार के साथ थे। -राजविंदर कौर थियाड़ा, प्रदेश सचिव, आप
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