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मोमिन
मंटो के अफसाने

सुनिए मंटो का अफसानाः ब्लाउज़

5 December 2022

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23:40
कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उसको ऐसा महसूस होता था कि उसका वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द जिसको वो बयान भी करना चाहता तो न कर सकता...

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अमृतसर से स्शपेशल ट्रेन दोपहर दो बजे को चली और आठ घंटों के बाद मुग़लपुरा पहुंची। रास्ते में कई आदमी मारे गए। कई ज़ख़्मी हुए और कुछ इधर उधर भटक गए। सुबह दस बजे कैंप की ठंडी ज़मीन पर जब सिराजुद्दीन ने आंखें खोलीं और अपने चारों तरफ़ मर्दों, औरतों और बच्चों का एक बेचैन समंदर देखा तो उसकी सोचने समझने की ताकत और भी कमजोर हो गई। वो देर तक गदले आसमान को टकटकी बांधे देखता रहा। यूं तो कैंप में हर तरफ़ शोर बरपा था। लेकिन बूढ़े सिराजुद्दीन के कान जैसे बंद थे। उसे कुछ सुनाई नहीं देता था। कोई उसे देखता तो ये ख़याल करता कि वो किसी गहरी फ़िक्र में डूबा है मगर ऐसा नहीं था। उसके होश-ओ-हवास सुन्न थे। उसका सारा वजूद ख़ला में मुअल्लक़ था। 

ये कहानी है एक ऐसे युवक की जो अपने पिता का इलाज कराने के लिए अस्पताल आता-जाता रहता है. इसी दरम्यान उसे एक नर्स से मोहब्बत हो जाती है. वो नर्स से अपने प्यार का इजहार करने ही वाला होता है कि...
 

ये कहानी है एक ऐसे शख्स की जो आजाद खयाल है, जो भीड़ से हटकर चलना चाहता है.  वो सीधे रास्ते से हटकर कुछ अनोखा करने की धुन में रहता था. एक दिन अपनी इन्फ़िरादियत पसंदी के हाथों मजबूर हो कर एक रात अपनी निकाही बीवी को ही ससुराल से भगा ले जाता है...
 

बिलक़ीस की मां आती है। एक अधेड़ उम्र की औरत बहुत ग़ुस्सैली। उसके चेहरे के ख़द्द-ओ-ख़ाल से साफ़ अयां है कि वो एक जाबिर मां है। आते ही बिलक़ीस को डांटती है, “ये जो मैं दो घंटे से तुझे बुला रही हूं तू ने कानों में रूई ठूंस रखी है क्या?” 

नन्हा राम, नन्हा तो था, लेकिन शरारतों के लिहाज़ से बहुत बड़ा था। चेहरे से बेहद भोला भाला मालूम होता था। कोई ख़त या नक़्श ऐसा नहीं था जो शोख़ी का पता दे। उसके जिस्म का हर अ’ज़ो भद्दे पन की हद तक मोटा था। जब चलता था तो ऐसा मालूम होता था कि फुटबाल लुढ़क रहा है...

कई बरस गुज़र गए। इस दौरान में कई सियासी इन्क़लाब आए। धोबी बिला नाग़ा इतवार को आता रहा। उसकी सेहत अब बहुत अच्छी थी। इतना अर्सा गुज़रने पर भी वो हमारा सुलूक नहीं भूला था, हमेशा दुआएं देता था। शराब क़तई तौर पर छूट चुकी थी...
 

मान लिया कि मेरा किसी को उल्लू का पट्ठा कहने को जी चाहता है, मगर ये कोई बात तो न हुई. मैं किसी को उल्लू का पट्ठा क्यों कहूं? मैं किसी से नाराज़ भी तो नहीं हूं...
 

सईद के पास इस सवाल का जवाब तैयार नहीं था। उसके दिल-ओ-दिमाग़ पर दरअसल वो आंखें छाई हुई थीं। बड़ी बड़ी उदास आंखें। ग़ैर इरादी तौर पर उसने मेज़ पर से फ़ोटो उठाया और एक नज़र देख कर फिर वहीं रख दिया और कहा, आप ज़्यादा बेहतर जानते हैं...

यह एक बूढ़े इंसान की कहानी है जो सर्दी में अलाव के आसपास बैठकर बच्चों को अपनी ज़िंदगी से जुड़ी किस्से सुनाता है। वो बताता है कि कैसे उसके नॉवेल पढ़ने के शौक ने उसे चोरी करने पर मजबूर कर दिया. इस चोरी ने उसको सारी उम्र के लिए चोर बना दिया...

ये कहानी है एक ऐसी औरत की जिसका शौहर उस पर जुल्म ढाता रहता था. फिर एक दिन वो उसे तलाक दे देता है. वो अपनी नौ साल की बेटी को लेकर एक मोहल्ले में रहने लगती है और धीरे-धीरे उसका गुस्सा मोहल्ले की औरतों पर निकलने लगा. फिर वो पैसे लेकर दूसरी औरतों की लड़ाइयां लड़ने लगती है...
 

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