वाराणसी के वाग्योग चेतनापीठ शिवाला में फ्रांस निवासी रोमैन ने पद्मश्री आचार्य वागीश शास्त्री से शिव मंत्र की तांत्रिक दीक्षा ग्रहण की। मंत्र दीक्षा के बाद उनका नाम रामानंद नाथ हो गया और उनका गोत्र भी परिवर्तित हो गया।
गुरु वागीश शास्त्री ने बताया कि तंत्र और मंत्र दोनों का संयोग करके मंत्र दीक्षा प्रदान की जाती है। वर्षों से पाश्चात्य देशों के लोग ज्ञान, आध्यात्म और शांति की खोज में मेरे पास आते हैं और मैं ईश्वर की कृपा से उनको उस मार्ग पर जाने का रास्ता निर्देशित करता हूं। ये मार्ग भाव भक्ति और साधना का है और बिना समर्पण के कोई इस मार्ग पर नहीं जा सकता है।
रोमैन ने बताया कि उनकी बहुत गहरी आस्था भारतीय धर्म और संस्कृति में काफी पहले से ही रही है और छह माह पूर्व गुरुदेव से कुण्डलिनी जागृत करने का प्रशिक्षण प्राप्त किया और उसके अभ्यास के बाद काफी शांति और ऊर्जा महसूस हुई।
पुनः आने पर मैंने मंत्र दीक्षा ग्रहण करने का अनुरोध किया और गुरूजी ने आशीर्वाद दिया। मैं अपने को बहुत ऊर्जावान और शक्ति से भरा महसूस कर रहा हूं। दीक्षा का प्रारंभ गणेश-अंबिका, सप्त घृत मातृका और नवग्रह पूजन से प्रारंभ हुआ। गुरुपूजन, मंत्र दीक्षा और हवन की पूर्णाहुति के साथ संपन्न हुई और पौरोहित्य कार्य पं शम्भुनाथ पांडेय ने करवाया।
संस्था के सचिव आशापति शास्त्री ने बताया कि गुरूजी से मंत्र दीक्षा और कुण्डलिनी जागरण हेतु लोग लालायित रहते हैं परंतु गुरुदेव योग्य और भाव से समर्पित व्यक्तियों को ही दीक्षा देते हैं। अब तक देश-विदेश मैं तकरीबन सैकड़ों से अधिक शिष्य इस विधि से साधना कर रहे हैं।