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Chaitra Navratri 2023: चैत्र मास की नवरात्रि क्यों है महत्वपूर्ण? जानें पूजन विधि और नियम

पं. मनोज कुमार द्विवेदी, ज्योतिषाचार्य Published by: श्वेता सिंह Updated Sun, 26 Mar 2023 05:18 PM IST
Chaitra Navratri 2023 Know the importance of Chaitra Navratri puja vidhi and Niyam
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Chaitra Navratri 2023: अध्यात्म पथ पर प्रगतिशील साधकों के लिए नवरात्रि के त्यौहार की अनुपम महिमा है। संपूर्ण वर्ष में आती ‘शिवरात्रि’ साधक के लिए साधना में प्रवेश करने का काल है तो ‘नवरात्रि’ उत्सवपूर्ण नवीनीकरण के अवसर की नौ रात्रियां हैं। प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पं.मनोज कुमार द्विवेदी बता रहे हैं कि नवरात्रि महत्वपूर्ण क्यों है और हम इसका लाभ कैसे उठा सकते हैं। नवरात्रि व्रत का मूल उद्देश्य है इंद्रियों का संयम और आध्यात्मिक शक्ति का संचय। वस्तुत: नवरात्र अंत:शुद्धि का महापर्व है। आज वातावरण में चारों तरफ विचारों का प्रदूषण है। ऐसी स्थिति में नवरात्र का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। अपने भीतर की ऊर्जा जगाना ही देवी उपासना का मुख्य प्रयोजन है। दुर्गा पूजा और नवरात्र मानसिक-शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक हैं। चैत्र की नवरात्रि के साथ रामजन्म एवं रामराज्य की स्थापना का इतिहास है। इस कारण इस नवरात्र का महत्त्व सर्वाधिक है।
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नवरात्रि का ज्योतिष महत्व  
ज्योतिषशास्त्र में चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व है क्योंकि चैत्र नवरात्र के बाद सूर्य का राशि परिवर्तन होता है। सूर्य 12 राशियों में भ्रमण पूरा करते हैं और फिर से अगला चक्र पूरा करने के लिए पहली राशि मेष में प्रवेश करते हैं। सूर्य और मंगल की राशि मेष दोनों ही अग्नि तत्व वाले हैं इसलिए इनके संयोग से गर्मी की शुरुआत होती है।चैत्र नवरात्र से नववर्ष के पंचांग की गणना शुरू होती है। चैत्र नवरात्र का धार्मिक दृष्टि से खास महत्व है क्योंकि चैत्र नवरात्र के पहले दिन आदिशक्ति प्रकट हुई थी और देवी के कहने पर ब्रह्मा जी को सृष्टि निर्माण का कार्य शुरु किया था। इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू नववर्ष शुरु होता है। 
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नवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व 
सर्दी और गर्मी की ऋतुओं का मिलन काल आश्विन और चैत्र मास में जिन दिनों आता है, वे नवरात्रि कहलाते हैं। उन दिनों शरीर, मन और प्रकृति के विभिन्न घटकों में विशेष रूप से उल्लास भरा रहता है। वातावरण में विशिष्टता व्याप्त रहती है। शरीर दबे हुए रोगों को निकालने का प्रयास करता है।इसीलिए इन दिनों रोग बढ़ जाते हैं। आयुर्वेद इस अवसर को शरीर शोधन के लिए विशेष उपयोगी मानता है। चैत्र नवरात्र में वसंत होता है। प्रकृति की शोभा देखते ही बनती है। वनस्पतियां नवीन पल्लव धारण करती हैं। प्रकृति का उल्लास अपना प्रभाव समूचे वातावरण पर डालता है। जीवधारियों के मन विशेष प्रकार की मादकता से भर जाते हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से मनीषियों ने इन दिनों आत्मा के ऋतुमति होने का आलंकारिक संकेत किया है। उनके अनुसार, इन दिनों वह अपने प्रियतम परमात्मा से मिलने के लिए विशेष रूप से आतुर होती है। नौ दिन का व्रत-उपवास प्राकृतिक उपचार के समतुल्य माना जा सकता है। इसमें प्रायश्चित के निष्कासन और पवित्रता की अवधारणा दोनों भाव हैं।
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नवरात्रि में व्रत का उद्देश्य 
नवरात्रि के समय प्रकृति में एक विशिष्ट ऊर्जा होती है, जिसको आत्मसात कर लेने पर व्यक्ति का कायाकल्प हो जाता है। व्रत में हम कई चीजों से परहेज करते हैं और कई वस्तुओं को अपनाते हैं। आयुर्वेद की धारणा है कि पाचन क्रिया की खराबी से ही शारीरिक रोग होते हैं। क्योंकि हमारे खाने के साथ जहरीले तत्व भी हमारे शरीर में जाते हैं। आयुर्वेद में माना गया है कि व्रत से पाचन प्रणाली ठीक होती है। व्रत उपवास का प्रयोजन भी यह है कि हम अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण कर अपने मन-मस्तिष्क को केंद्रित कर सकें। मनोविज्ञान यह भी कहता है कि कोई भी व्यक्ति व्रत-उपवास एक शुद्ध भावना के साथ रखता है। उस समय हमारी सोच सकारात्मक रहती है, जिसका प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है, जिससे हम अपने भीतर नई ऊर्जा महसूस करते हैं। इस समय प्रकृति अपना स्वरूप बदलती है। वातावरण में एक अलग-सी आभा देखने को मिलती है। पतझड़ के बाद नवीन जीवन की शुरुआत, नई पत्तियों और हरियाली की शुरुआत होती है। संपूर्ण सृष्टि में एक नई ऊर्जा होती है। इस ऊर्जा का सकारात्मक उपयोग करने के लिए हमें व्रतों का संयम-नियम बहुत लाभ पहुंचाता है। नवरात्रि में कृषि-संस्कृति को भी सम्मान दिया गया है। मान्यता है कि सृष्टि की शुरुआत में पहली फसल जौ ही थी। इसलिए इसे हम प्रकृति (मां शक्ति) को समर्पित करते हैं।
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नवरात्र पूजन कैसे करें 
  • नवरात्र के पहले दिन घर के मुख्य द्वार के दोनों तरफ स्वास्तिक बनाएं और दरवाजे पर आम के पत्ते का तोरण लगाएं। क्योंकि माता इस दिन भक्तों के घर में आती हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं और आपके घर में निवास करती हैं।
  • नवरात्र में माता की मूर्ति को लकड़ी की चौकी या आसन पर स्थापित करना चाहिए। 
  • जहां मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें वहां पहले स्वास्तिक का चिह्न बनाएं। 
  • उसके बाद रोली और अक्षत से टीकें और फिर वहां माता की मूर्ति को स्थापित करें। उसके बाद विधिविधान से माता की पूजा करें।
  • वास्तुशास्त्र के अनुसार, उत्तर और उत्तर-पूर्व दिशा यानी ईशान कोण को पूजा के लिए सर्वोत्तम स्थान माना गया है। 
  • आप भी अगर हर साल कलश स्थापना करते हैं तो आपकी इसी दिशा में कलश रखना चाहिए और माता की चौकी सजानी चाहिए।
  • नवरात्रि के दिनों में कण-कण में मां दुर्गा का वास माना जाता है और पूरा वातावरण भक्तिमय रहता है। 
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