इन दिनों नगरों का जन्मोत्सव गौरव दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। इंदौर का गौरव दिवस 31 मई यानि की आज इंदौर का गौरव दिवस मनाया जा रहा है। मालवा की कुशल शासिका देवी अहिल्याबाई होलकर की जयंती होने के चलते 31 मई को इंदौर के गौरव दिवस के रूप में चुना गया है। तरह-तरह के आयोजन हो रहे हैं और इंदौर को सजाया भी गया है। आपको ले चलते हैं अतीत के झरोखों में, कई सौ साल पहले जब इंदौर, इंदौर नहीं था। जी हां, इसके इंदौर बनने की कहानी आपको बताते हैं और बताते हैं यहां के गौरवशाली इतिहास और स्थलों के बारे में। कैसे इंद्रपुरी से इंदूर और इंदूर से इंदौर बना।
दरअसल, इंदौर को मप्र की आर्थिक राजधानी, मिनी मुंबई तक कहा जाता है। हर तरफ इसका नाम है लेकिन इसकी शुरुआत 3 मार्च 1716 को हुई थी जब इंदौर के राजा राव नंदलाल मंडलोई ने मुग़ल बादशाह से फरमान हासिल कर इंदौर को टैक्स फ्री जोन बनाया था। पुरातत्व विभाग में उपलब्ध जानकारियों के मुताबिक इंदौर पर आधिपत्य के लिए बंगाल के पाल, मध्य क्षेत्र के प्रतिहार और दक्षिण के राजपूतों के बीच आठवीं शताब्दी में त्रिकोणीय संघर्ष हुआ। इसमें कभी पालों का, कभी प्रतिहारों का और कभी राजपूत शासन रहा। आठवीं शताब्दी में राजकोट के राजपूत राजा इंद्र तृतीय त्रिकोणीय संघर्ष में जीते तो इस विजय को यादगार बनाने के लिए उन्होंने यहां पर एक शिवालय की स्थापना की और नाम रखा इंद्रेश्वर महादेव। इसी मंदिर के कारण शहर का नाम इंद्रपुरी हो गया।
अठारहवीं शताब्दी में मराठा शासनकाल में इंद्रपुरी का नाम बदलकर इंदूर हुआ और यही जुबां पर चढ़ा। अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बिट्रिशों ने इंदूर का नाम अंग्रेजी में INDOR किया और बाद में बदलकर INDORE कर दिया। इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में 1715 में इंदौर को मराठा प्रमुखों से व्यापार में रुचि रखने वाले जमींदारों द्वारा बसाया जाना बताया गया है। 1741 में कंपेल के इन्हीं जमींदारों ने इंद्रेश्वर मंदिर बनवाया था, जिसके नाम पर बस्ती का नाम इंद्रपुर, फिर इंदूर व इंडोर और अंत में इंदौर पड़ा।
बौद्ध साहित्य में भी इंदौर के नाम को लेकर काफी कुछ उल्लेख हुआ है। माना जाता है कि इंद्रपुरी का नाम पहले चितावद था और इसी के आधार पर बौद्ध साहित्य में चिटिकाओं का उल्लेख है। 1973-74 के बीच आजाद नगर उत्खनन में प्राप्त अवशेषों में इंदौर में हडप्पा संस्कृति की समकालीन सभ्यता कायम और निरंतरता होने के प्रमाण मिले हैं। खनन में हडि्डयों के उपकरण, एक बच्चे के शव के अवशेष, एक शिवलिंग, सूरमा दंडी मिली है। बुद्ध स्तूपों के अवशेष मिले हैं। इन बुद्ध स्तूपों के अवेशषों से यह भी प्रतीत होता है कि छटवीं से आठवीं शताब्दी तक इंदौर का नाम चितावद भी रहा है।
वर्तमान में इंद्रेश्वर मंदिर की पूजा करने वाला परिवार मानता है कि नीलकंठपुरी महाराज ने यहां इंद्रेश्वर महादेव की स्थापना की थी। इसी मंदिर के नाम पर रहवासी इलाके का नाम इंद्रपुर रखा गया। 1741 के आसपास मराठा शासकों ने इसे इंदूर कर दिया। मराठाओं के बाद यहां ब्रिटिश शासन आया तो पहले इंडोर और बाद में इंदौर नाम किया।