Chaitra Navratri 2023: चैत्र नवरात्रि 2023 की शुरुआत 22 मार्च से हो चुकी है। नवरात्रि नौ दिनों का पावन पर्व है, जिसमें मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना होती है। वहीं लोग नौ दिनों का उपवास करते हैं और इन नौ दिन माता का पूजा अर्चना व भजन करते हैं। चैत्र नवरात्रि का समापन राम नवमी को होता है। मां दुर्गा की पूजा के लिए घर के मंदिर के अलावा भारत में कई अद्भुत व प्रसिद्ध मंदिर हैं, जिनकी महिला पूरे देश में विख्यात है। मान्यता है कि देवी सती के अंग धरती पर जहां गिरे वह शक्तिपीठ बन गया और ऐसे ही 52 शक्तिपीठों में भक्त माता के दर्शन के लिए जाते हैं। इसके अलावा हिंदुओं की आस्था से जुड़े कई मंदिर विभिन्न शहरों में भी स्थापित हैं। नवरात्रि के मौके पर आप इन प्रसिद्ध देवी मंदिरों के दर्शन करने जा सकते हैं। अगर आप उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं तो आपको किसी दूसरे राज्य जाने की जरूरत नहीं। यूपी में कई चमत्कारी और प्रसिद्ध दुर्गा मंदिर हैं, जहां इस नवरात्रि दर्शन के लिए जा सकते हैं।
वाराणसी में मां शैलपुत्री मंदिर
उत्तर प्रदेश की पवित्र नगरी काशी में माता शैलपुत्री का मंदिर है। मां शैलपुत्री देवी के नौ स्वरूपों में से एक हैं, जिनकी पूजा नवरात्रि के पहले दिन होती है। वाराणसी के अलईपुर क्षेत्र में स्थित इस मंदिर में हर साल काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मान्यता है कि मां शैलपुत्री के दर्शन मात्र से भक्तों की मनोकामना पूरी हो जाती है।
सीतापुर माता ललिता देवी मंदिर
नैमिष धाम उत्तर प्रदेश के सबसे पवित्र स्थानों में शामिल है। यह स्थान सीतापुर के मिश्रिख में स्थित है। नैमिष धाम में मां ललिता देवी का मंदिर है, जहां दूर दराज से भक्त पहुंचते हैं। ललिता माता मंदिर 52 शक्तिपीठों से एक है। मान्यता है कि यहां माता सती का हृदय गिरा था।
बलरामपुर, देवी पाटन मंदिर
बलरामपुर जिले में देवी के 52 शक्तिपीठों में से एक स्थित है, जिसे देवी पाटन मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह जिले के तुलसीपुर में स्थित है। यहां माता सती का वाम स्कंध के साथ पट गिरा था। इस कारण इस शक्तिपीठ का नाम पाटन पड़ा। वहीं देवी को माता मातेश्वरी के नाम से पूजा जाता है।
गोरखपुर का तरकुलहा मंदिर
गोरखपुर जिले में तरकुलहा मंदिर है, जो कि चमत्कारी माना जाता है। मान्यता है कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जब कोई अंग्रेज इस मंदिर के पास से गुजरता था तो क्रांतिकारी बंधू सिंह अंग्रेज का सिर काटकर देवी को समर्पित करता था। बाद में अंग्रेजों ने बंधू सिंह को पकड़कर फांसी दी, तो उनका फांसी का फंदा ही टूट गया। ऐसा 6 बार हुआ। जिस पर जल्लाद ने बंधू सिंह से गिड़गिड़ाते हुए कहा कि अगर फांसी नहीं दी तो अंग्रेज उसे मार देंगे। बंधू सिंह ने माता से प्रार्थना की तो सातवीं बार में उसे फांसी हो गई। उसके बाद से इस मंदिर की महिमा दूर दूर तक फैल गई।