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जानना जरूरी: टाइप-1 और टाइप-2 के अलावा दो और प्रकार की होती है डायबिटीज, क्या आपको है इसकी जानकारी?
हेल्थ डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: अभिलाष श्रीवास्तव Updated Fri, 02 Jun 2023 07:30 PM IST
डायबिटीज, वैश्विक स्तर पर बढ़ती जा रही गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है। किसी भी उम्र वालों को इसका खतरा हो सकता है। अगर आपको लगता है कि डायबिटीज सिर्फ उम्र बढ़ने के साथ होती है तो सावधान हो जाइए, बच्चे भी इसके शिकार हो सकते हैं। बच्चों में टाइप-1 डायबिटीज होना काफी अधिक देखा जा रहा है। यही कारण है कि इस गंभीर रोग से बचाव के लिए सभी लोगों को निरंतर प्रयास करते रहने की आवश्यकता है।
आमतौर पर हम सभी मधुमेह के दो प्रकार- टाइप-1 और टाइप-2 के बारे में अक्सर सुनते रहते हैं। पर क्या आप जानते हैं कि डायबिटीज के दो और भी प्रकार हैं, जो इसी तरह से समस्याकारक हो सकते हैं। बेहतर स्वास्थ्य देखभाल के लिए इसकी जानकारी होना बहुत आवश्यक है।
आइए इसके बारे में जानते हैं।
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टाइप-1 डायबिटीज में इंसुलिन की जरूरत
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टाइप-1 डायबिटीज
टाइप-1 डायबिटीज को ऑटोइम्यून बीमारी के रूप में जाना जाता है, यह आपके अग्न्याशय को इंसुलिन बनाने से रोकती है। शरीर को रोग प्रतिरोधक क्षमता, अग्नाशय की स्वस्थ कोशिकाओं को ही क्षति पहुंचाने लगती है जिससे यह डायबिटीज हो सकता है। बच्चों और वयस्कों दोनों में टाइप 1 मधुमेह का निदान किया जा सकता है। इसमें आजीवन इंसुलिन इंजेक्शन लेते रहने की आवश्यकता हो सकती है, क्योंकि शरीर में इंसुलिन हार्मोन का उत्पादन ही नहीं हो रहा होता है।
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टाइप-2 डायबिटीज ज्यादा कॉमन है
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टाइप-2 डायबिटीज
टाइप-1 की तुलना में टाइप-2 डायबिटीज ज्यादा कॉमन है। शरीर में इंसुलिन के उत्पादन की कमी या इस हार्मोन के सही तरीके से इस्तेमाल न हो पाने के कारण यह डायबिटीज हो सकती है। टाइप-1 से अलग इस डायबिटीज के लिए लाइफस्टाइल से संबंधित जोखिमों को प्रमुख कारक माना जाता है।
टाइप 2 का मतलब है कि आपका शरीर इंसुलिन का सही इस्तेमाल नहीं कर रहा है। इस डायबिटीज के कारण कई अंगों पर गंभीर दुष्प्रभाव हो सकता है। दवाओं और लाइफस्टाइल को ठीक रखकर इसे कंट्रोल किया जा सकता है, कुछ गंभीर स्थितियों में रोगियों को इंसुलिन इंजेक्शन की आवश्यकता हो सकती है।
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प्रेगनेंसी में डायबिटीज
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गर्भकालीन मधुमेह
जिस तरह नाम से ही स्पष्ट है कि यह मधुमेह, गर्भवती महिलाओं में होने वाली समस्या है। इसका निदान प्रेग्नेंसी के दौरान होता है जब आपका शरीर गर्भावस्था के दौरान पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता है। अगर इस प्रकार के डायबिटीज पर ध्यान न दिया जाए तो इसके कारण बच्चे का ब्लड शुगर अधिक हो जाता है। यह स्थिति बच्चे में कई प्रकार की जटिलताओं का कारण बन सकती है।
ज्यादातर महिलाओं में गर्भावस्था के बाद यह ठीक भी हो जाता है, जबकि कुछ को लंबे समय तक इसकी दिक्कतें हो सकती हैं।
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टाइप 1.5 डायबिटीज के बारे में जानिए
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टाइप 1.5 डायबिटीज
टाइप 1.5 डायबिटीज के बारे में सबसे कम चर्चा होती है, यही कारण है कि अक्सर लोगों में इसका सही निदान भी नहीं हो पाता है। इस डायबिटीज को 'लाडा' के नाम से भी जाना जाता है।
यह टाइप 1 डायबिटीज का एक सबटाइप है। शोधकर्ताओं का मानना है कि आमतौर पर 30 वर्ष से अधिक आयु वालों में इस समस्या का निदान होता है। गौर करने वाली बात यह भी है कि इसके अधिकतर लक्षण टाइप-2 की तरह ही हो सकते हैं। ऐसे लोगों को भी इंसुलिन इंजेक्शन की आवश्यकता होती रह सकती है।
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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।
अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
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