पिछले कुछ दिनों से ह्रदय रोग और हार्ट अटैक से जान गंवाने वाले कम उम्र लोगों की फेहरिस्त में लगातार इजाफा हुआ है। इनमें से अधिकांश लोग न केवल फिटनेस को लेकर सतर्क थे बल्कि नियमित व्यायाम आदि से भी जुड़े थे। तथ्य यह है कि ह्रदय या किसी भी अन्य रोग के मामले में कोई भी एक कारण न तो सुधार की वजह बनता है न ही स्थिति के बिगड़ने की। ह्रदय के मामले में भी कई सारे कारण सेहत बिगड़ने के पीछे हो सकते हैं। कोलेस्ट्रॉल इनमें प्रमुख रूप से शामिल है।
जब भी दिल की सेहत की बात होती है कोलेस्ट्रॉल का नाम हमेशा आता है। कभी इसे लेकर खान पान को सुधारने की बात कही जाती है तो कुछ लोगों को इसके स्तर को संतुलित बनाये रखने के लिए बकायदा नियमित दवाइयां भी दी जाती हैं। आखिर क्यों कोलेस्ट्रॉल का स्तर इतना महत्वपूर्ण है? क्या कोलेस्ट्रॉल का होना केवल बुरा ही होता है? आखिर दिल की सेहत को कोलेस्ट्रॉल कैसे नुकसान पहुंचाता है? और क्या इसे नियंत्रित करना बहुत मुश्किल है? जानिए करीब से क्या है कोलेस्ट्रॉल का संतुलित स्तर और कैसे इसे बनाये रखा जा सकता है।
गंदगी का जमा हो जाना है कोलेस्ट्रॉल
इसे इस तरह समझिये। आपके किचन के सिंक में जूठन इकट्ठी होकर पानी के निकलने का मार्ग बंद कर देती है या उसमें बाधा पैदा करने लगती है। इसी वजह से पानी का जमाव एक जगह होने लगता है और सड़न पैदा होने लगती है। लगभग इसी तरह की बाधा कोलेस्ट्रॉल की वजह से खून ले जाने वाली धमनियों में पैदा होती है। इसकी वजह से खून और ऑक्सीजन ठीक तरह से शरीर में पहुंच नहीं पाता और ह्रदय पर भी दबाव बनने लगता है। यह स्थिति ह्रदय को अंदरूनी तौर पर नुकसान पहुंचाने और हार्ट अटैक आदि का कारण बन सकती है।
अच्छा भी, बुरा भी
कोलेस्ट्रॉल का होना शरीर के लिए अच्छा भी होता है और जरूरी भी। इसलिए कोलेस्ट्रॉल को दो प्रकारों- अच्छा कोलेस्ट्रॉल यानी एचडीएल और बुरा कोलेस्ट्रॉल यानी एलडीएल में बांटा जाता है। इनमें से अच्छे कोलेस्ट्रोल का स्तर 60 या इससे ऊपर व बुरे कोलेस्ट्रॉल का स्तर 100 से नीचे होने चाहिए। शरीर में कुल कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 200 के भीतर होनी चाहिए। यह स्तर शारीरिक संरचना, स्थिति और महिला-पुरुष होने आदि पर भी निर्भर कर सकता है। लेकिन औसतन 200 के अंदर का स्तर जिसमें कि अच्छे कोलेस्ट्रॉल की मात्रा सही हो, अच्छा माना जाता है।
वसा का एक प्रकार
कोलेस्ट्रॉल असल में एक प्रकार का लिपिड या वसा (फैट) है। याद कीजिये डॉक्टरों द्वारा लिपिड टेस्ट करवाने के लिए दी जाने वाली सलाह। यही टेस्ट कोलेस्ट्रॉल के स्तर को जांचने के काम आता है। कोलेस्ट्रॉल का संतुलित मात्रा में शरीर में होना भी जरूरी है। शरीर इसकी मदद कई कामों में लेता है। इसलिए खून के साथ इसका होना सामान्य बात है। जब इसकी मात्रा खून में बढ़ने लगती है तब मुश्किल खड़ी होती है। तब यह धमनियों की दीवारों पर इकट्ठा होने लगता है या कहिये जमने लगता है, क्षति पहुंचाने लगता है और एथरोस्क्लेरोटिक प्लाक (वसा का कड़क रूप) में बदलने लग जाता है। प्लाक के बनने की यह स्थिति एथरोस्केलेरोसिस कहलाती है।
हो सकती हैं ये परेशानियां
प्लाक के जमने की यह स्थिति कई गंभीर समस्याओं को जन्म देती है। इसमें शामिल हैं-
- कोरोनरी आर्टरी डिसीज
- पेरिफेरल आर्टरी डिसीज
- कैरोटिड आर्टरी डिसीज
खून के साथ कोलेस्ट्रॉल के बहने और प्लाक के बनने की स्थिति इतनी धीमी होती है कि इसका पता बिना जांच के नहीं चल सकता। अधिकांशतः लम्बे समय तक कोई गंभीर लक्षण भी नहीं उभरते और फिर सीधे हार्ट अटैक या स्ट्रोक के रूप में मुसीबत सामने आ जाती है। यही कारण है कि डॉक्टर कोलेस्ट्रॉल के स्तर को लेकर खासतौर पर सजग रहने को कहते हैं।