महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट बरकरार है। शिवसेना के 40 बागी और 10 निर्दलीय विधायकों के साथ एकनाथ शिंदे अभी भी गुवाहाटी में डेरा डाले हुए हैं। बागी विधायकों के गुट ने साफ कर दिया है कि वह तभी उद्धव के साथ आएंगे जब शिवसेना का एनसीपी और कांग्रेस से गठबंधन टूटेगा और भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने की बात होगी।
वहीं, उद्धव ठाकरे गुट भी कभी नर्म तो कभी गर्म रुख अख्तियार कर रहा है। आज शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने खुद बागी विधायकों के नाम एक भावुक संदेश जारी किया। इसमें उन्होंने कहा, 'आपके परिवार के मुखिया होने के नाते मुझे आप लोगों की फिक्र है। आप लोग वापस आ जाइए। सामने बैठकर मुझसे बात करिए।'
इन सबके बीच बार-बार दोनों की तरफ से भाजपा का जिक्र आ रहा है। जहां उद्धव गुट इस पूरे उठापठक के पीछे भाजपा का हाथ बताने में जुटा है, वहीं शिंदे गुट का कहना है कि अब एनसीपी और कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा के साथ फिर से सरकार बनाएं। भाजपा शिवसेना की पुरानी साथी है।
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर वैचारिक समानता होने और वर्षों तक पुराने संबंध रहने के बावजूद भाजपा के साथ जाने से उद्धव ठाकरे क्यों कतरा रहे हैं। इसके पीछे क्या कारण है? आइए जानते हैं...
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पहले पढ़िए आखिर उद्धव ने क्या कहा?
उद्धव ने बागी विधायकों के नाम एक भावुक संदेश जारी किया। इसमें उन्होंने कहा, 'आपके परिवार के मुखिया होने के नाते मुझे आप लोगों की फिक्र है। आप लोगों को कुछ दिनों से कैद करके गुवाहाटी में रखा गया है। आप लोगों के बारे में रोज नई जानकारी सामने आती है। आपमें से कई मेरे संपर्क में हैं। आप लोग दिल से अभी भी शिवसेना के साथ हैं।'
उद्धव ने आगे कहा, ‘मुखिया के नाते मैं यही कह सकता हूं कि अभी बहुत देर नहीं हुई है। आप लोग मुंबई आकर मेरे सामने बैठें और शंकाओं को दूर करें। हम लोग एकसाथ बैठकर जरूर कोई रास्ता निकाल लेंगे। आपको जो सम्मान और आदर शिवसेना में मिला है, वो कहीं नहीं मिलेगा।’
शिंदे गुट क्या चाहता है?
गुवाहाटी में डेरा डाले एकनाथ शिंदे गुट की तरफ से भी कई बार कहा जा चुका है कि जब तक एनसीपी और कांग्रेस से गठबंधन है तब तक कुछ नहीं हो सकता है। शिंदे गुट वापस शिवसेना और भाजपा के बीच गठबंधन चाहता है। कहा जा रहा है कि जल्द ही शिंदे गुट भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने का दावा कर सकता है। इसके लिए दिल्ली में वह भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात भी करेंगे। कहा जा रहा है कि शिंदे गुट के विधायकों के साथ कई सांसद भी यही चाहते हैं कि वापस शिवसेना और भाजपा मिलकर राज्य में सरकार बनाए।
उद्धव भाजपा के साथ गठबंधन क्यों नहीं चाहते?
शिवसेना के ज्यादातर विधायक, मंत्री और सांसद एनसीपी और कांग्रेस की बजाय भाजपा के साथ गठबंधन चाहते हैं। शिंदे गुट के 40 विधायक तो यह बिल्कुल साफ कर चुके हैं। इसके बावजूद उद्धव ठाकरे ये बात मानने को तैयार नहीं है। आखिर इसके पीछे क्या कारण है? क्यों पुराने रिश्ते और एक सी विचारधारा होते हुए भी उद्धव भाजपा के साथ वापस गठबंधन करने को तैयार नहीं है?
हमने यही सवाल महाराष्ट्र की राजनीति पर अच्छी पकड़ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप रायमुलकर से किया। उन्होंने कहा, 'उद्धव के सामने इस समय दो बड़ी चुनौतियां हैं। पहला यह कि वह शिवसेना को बिखरने से बचाएं और दूसरा राजनैतिक ताकत को विस्तार दें।'
रायमुलकर ने आगे तीन बड़े कारण बताए कि आखिर क्यों उद्धव भाजपा के साथ गठबंधन नहीं करना चाहते हैं।
1. भाजपा तेजी से महाराष्ट्र में मजबूत हो रही: एक समय शिवसेना के सहारे भाजपा ने महाराष्ट्र की राजनीति में एंट्री की थी। तब महाराष्ट्र के चुनावों में शिवसेना ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ती थी और भाजपा कम। धीरे-धीरे दोनों के बीच का अंतर कम होता गया।
सीट बंटवारे को लेकर दोनों पार्टियों में मतभेद बढ़ने लगा। मौजूदा दौर में भाजपा राज्य में शिवसेना से बड़ी पार्टी है। पिछले दो चुनावों से उसके 100 से ज्यादा विधायक रहे हैं। बढ़ती ताकत के साथ भाजपा शिवसेना के मुकाबले ज्यादा सीटों की डिमांड करने लगी है। पिछले दो लोकसभा और विधानसभा चुनाव में ये देखने को मिल चुका है।
जब तक बाला साहेब थे, तब तक वह किसी न किसी तरह सब मैनेज कर लिया करते थे। भाजपा के नेता भी उनका सम्मान करते थे, लेकिन अब उद्धव के साथ मामला अलग हो जाता है। उद्धव को डर है कि भाजपा के साथ रहने पर उन्हें ज्यादा फायदा नहीं हो सकता है। बल्कि भाजपा ही तेजी से आगे बढ़ेगी। ईसी वजह से वह फिर से भाजपा के साथ नहीं जाना चाहते हैं।