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लोकतंत्र के प्रहरी: देश और समाज के नाम किया जीवन, पढ़िए इनकी खास कहानी

रोहित सिंह, अरुण चंद, राजन राय, शिवम सिंह, गोरखपुर। Published by: vivek shukla Updated Thu, 26 Jan 2023 02:22 PM IST
लोकतंत्र के प्रहरी
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आज पूरा देश गणतंत्र दिवस के उत्सव में शरीक है। इस उत्सव का उत्साह बरकरार रखने में कुछ लोगों ने अपना जीवन देश-समाज के लिए समर्पित कर दिया है। किसी ने लैंगिक असमानता व महिलाओं को उनका हक दिलाने की मुहिम छेड़ रखी है तो कोई मानवता की जिंदा मिसाल हैं। किसी ने पूरे जिले को तीसरी आंख की जद में लाने की मुहिम चला रखी है तो कोई आपातकाल के दौरान अपने कर्तव्य पथ पर डटा रहा। शौर्य चक्र विजेता कैप्टन राजेश मिश्रा घायल कंधों से 72 घंटे आतंकियों से लोहा लेते रहे और तीन आतंकियों को मौत के घाट उतारा। वास्तव में ये लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी हैं। पेश है रिपोर्ट...

 
शौर्य पदक विजेता कैप्टन राजेश मिश्रा।
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घायल कंधे से 72 घंटे लिया आतंकियों से लोहा
गोला के रहने वाले शौर्य पदक विजेता कैप्टन राजेश मिश्रा कंधे घायल होने के बावजूद कश्मीर में 72 घंटे तक आतंकियों से लोहा लेते रहे। इस दौरान उन्होंने तीन आतंकियों को मार गिराया। बताते हैं कि रात के वक्त भी गोलियां चलती थीं। सामने से होने वाली फायरिंग जब शांत हो जाती, तो लगता था कि आतंकी मारे जा चुके हैं। इसके बाद टीम धीरे-धीरे आगे बढ़ती थी।

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर बातचीत में कैप्टन राजेश मिश्रा ने यादों को साझा किया। बताया कि स्नातक की पढ़ाई के दौरान उनका चयन देश की पहली स्पेशल फोर्स, नाइन पैरा फोर्सेज में हुआ था। 1988 से 1990 तक श्रीलंका में होने वाले युद्ध में पैरा फोर्स को भेजा गया था। इस टीम में मैं भी शामिल था। वापस लौटने के बाद जम्मू और कश्मीर में तैनाती हुई।

 जुलाई 1998 में उनकी टीम ने कश्मीर में 72 घंटे तक आतंकियों के खिलाफ मोर्चा सम्हाला और पांच आतंकियों को मार गिराया। इस दौरान आतंकियों के ठिकाने को भी नष्ट कर दिया। उनकी बंदूक से तीन आतंकी मारे गए। बेस कैंप में वापस आने पर उनके साथी ने बताया कि कंधे से खून टपक रहा है। डॉक्टरों ने परीक्षण किया तब कंधे में गोली लगने के बारे में पता चला। 32 दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहा।

इसी बीच 12 जुलाई 1998 को शौर्य पदक दिए जाने की घोषणा हुई। 6 अप्रैल 2000 के देश के तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने राष्ट्रपति भवन में शौर्य चक्र से सम्मानित किया। कैप्टन राजेश मिश्रा ने आपरेशन विजय (कारगिल युद्ध) के दौरान भी दुश्मनों के खिलाफ मोर्चा सम्हाला था। उन्होंने कहा कि हम सभी भारत के नागरिक हैं। हमें अपने अधिकार तो पता हैं, लेकिन कर्तव्य का समुचित ज्ञान भी होना चाहिए।

 
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श्री कृष्ण पांडेय आजाद।
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जिनके पास आने से घबराते हैं लोग, उन्हें गले लगाते हैं आजाद
कैंपियरगंज के मूसाबर निवासी श्री कृष्ण पांडेय आजाद ऐसे लोगों को गले लगाते हैं, जिनके करीब आने से लोग कतराते हैं। हम बात कर रहे हैं, शहर की सड़कों और स्टेशन के इर्दगिर्द घूमने वाले मानसिक रूप से बीमार लोगों की। जिन्हें न तो घर याद है और न ही किसी से बात कराने की इच्छा है। आजाद ऐसे ही लोगों के हमदर्द हैं।

श्री कृष्ण पांडेय आजाद और उनकी संस्था इस्माईल रोटी बैंक ने सबसे पहले मेडिकल कॉलेज में आने वाले रोगियों के तीमारदारों के लिए रोटी बैंक शुरू किया। इसी क्रम में उन्होंने मानसिक रोगियों की मदद की ठानी। आजाद बताते हैं कि मानसिक रोगियों के शरीर की सफाई कर अपने सेवाश्रम पर लाते हैं। उनके रहने और भोजन का इंतजाम करते हैं।

अब तक 2000 से ज्यादा मानसिक रोगियों को घर तक पहुंचाया गया है। श्री कृष्ण पांडेय आजाद को उत्तरप्रदेश सरकार ने स्वामी विवेकानंद युवा पुरस्कार से भी नवाजा है। आजाद की टीम को इन दिनों गोरखपुर और अयोध्या की जेल में बंद कैदियों को मानसिक रूप से मजबूत बनाने की जिम्मेदारी मिली है।

 
शालिनी सिंह।
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हक दिलाकर महिलाओं के जीवन में भरे रंग
घरेलू हिंसा और लैंगिक असमानता से पीड़ित महिलाओं को हक दिलाना शालिनी सिंह के जीवन का मकसद बन चुका है। शालिनी की संस्था मेरा रंग ने अब तक 43 महिलाओं और लड़कियों को न्याय दिलाया है। मूलत: देवरिया के परसिया गांव की रहने वाली शालिनी ने स्नातक की पढ़ाई गोरखपुर विश्वविद्यालय से की है। वह बताती हैं, मैं पढ़ना चाहती थी लेकिन कम उम्र में ही शादी हो गई। पढ़ाई के सपने को मैने ससुराल से पूरा किया। इसी दौरान बेटियों के लिए कुछ करने के प्रति प्रेरित हुई।

अपनी संस्था मेरा रंग की शुरुआत छह साल पहले वीडियो इंटरव्यू के जरिए की थी। धीरे-धीरे महिलाएं निजी और घरेलू हिंसा से जुड़ी समस्याएं साझा करने लगीं। शादी के बाद बरेली के दो स्कूलों में मूक बधिर बच्चों को पढ़ाया। इसी दौरान सोशल एक्टीविस्ट और अधिवक्ताओं का एक पैनल बनाकर पीड़ित लड़कियों-महिलाओं को मदद पहुंचाने लगी। कुछ समय में ही देश के कई राज्यों से मामले आने लगे। अभी तक अपनी टीम के साथ 43 केस सुलझाए हैं। थाने से लेकर महिला आयोग और कोर्ट तक से तक लड़ाई लड़ी।

‘मेरी रात मेरी सड़क’ अभियान 12 अगस्त 2017 में शुरु किया जो गाजियाबाद में आठ सप्ताह तक चला। 2018 में  इसे गोरखपुर में भी तीन हफ्ते लगातार किया। स्टॉप एसिड अटैक्स कैंपेन को भी मेरा रंग ने लगातार सपोर्ट किया है। एसिड पीड़ितों के साथ इंटरव्यू की एक लंबी शृंखला चली। अगले कुछ सालों में गोरखपुर में लिंगानुपात तथा स्त्री अधिकारों के प्रति जागरूकता के लिए काम करने की योजना है।

 
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एडीजी जोन अखिल कुमार
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कुछ अलग करने की जिद और जिला तीसरी आंख में कैद
गोरखपुर जोन के एडीजी अखिल कुमार ने सुरक्षित समाज की सोच को अमलीजामा पहनाने के लिए पूरे जिले को सीसीटीवी कैमरे की जद में लाने का निर्णय लिया।  आम लोगों और जनप्रतिनिधियों के सहयोग से सीसीटीवी कैमरे लगाने की मुहिम ऑपरेशन त्रिनेत्र को आगे बढ़ाया इसका असर है कि जिले के 400 से अधिक चौराहों, गांवों को सीसीटीवी कैमरे की जद में लाया जा चुका है। अब हर घर कैमरे का अभियान चल रहा है, इसमें भी लोग आगे बढ़कर सहयोग कर रहे हैं।

एडीजी अखिल कुमार बताते हैं कि कैमरे से बदमाशों को पकड़ने में आसानी होती है साथ ही उनमें भय भी पैदा होता है। इसका फायदा नजर आने लगा है,  गोरखपुर जोन में 316 से अधिक मामलों में पुलिस को सीसीटीवी कैमरे से मदद मिल चुकी है। उन्होंने बताया कि सीएम योगी आदित्यनाथ से इस संबंध में प्रेरणा मिली थी। अब डीजीपी, प्रमुख सचिव को पत्र भेजा गया है। इस मॉडल को सूबे में भी जल्द लागू किया जा सकता है।

 
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