कूड़ाघाट इलाके का नाम सुनते ही जेहन में एक बात कौंधने लगती है कि यहां कूड़े का ढेर होगा। गंदगी और बदबू होगी। लेकिन, जब यहां आएंगे तो ऐसा कुछ नहीं दिखेगा। विकास के पथ पर यह इलाका तेजी से आगे बढ़ा तो नजारा भी बदल गया। अब यहां अच्छे बाजार, पॉश कॉलोनियां और एम्स जैसी इलाज की सुविधाएं हैं। जो जमीनें कौड़ी के भाव थीं, वही अब सोने के भाव बिक रहीं हैं। लेकिन, इलाके का नाम कूड़ाघाट लोगों को अब खटकता है। बहुत सारे लोगों ने तो अपनी दुकान और मकान के आगे कूड़ाघाट की जगह कुनराघाट लिखना शुरू कर दिया है। वे कहते हैं भी, अरे भाई अब कूड़ाघाट नहीं कुनराघाट बोलिए। हमें अच्छा लगेगा।
मोहद्दीपुर से आगे बढ़ते ही जैसे रामगढ़ताल को पार करते हैं, कूड़ाघाट (कुनराघाट) क्षेत्र शुरू हो जाता है। रेलवे से सेवानिवृत्त 74 वर्षीय रामानंद कहते हैं, कूड़ाघाट का इलाका बहुत बड़ा था। गुरुंग चौराहे से देवरिया की ओर जाने पर लोगों ने नाम गिरधरगंज, कूड़ाघाट रख लिया। जहां हम रहते हैं वहां गुमटी टोला नाम हो गया। मेन बाजार में अब लोग नाम कुनराघाट लिख रहे हैं।
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वे कहते हैं, एक वक्त था जब यहां शहर का कूड़ा लाकर फेंका जाता था। जंगल था और कुछ लोगों के पास थोड़ा बहुत खेत था। आठ से दस दुकानें थीं, कुछ झोपडियां थीं। पूरे इलाके में रईस पुरुषोत्तम दास का ही फार्म हाउस था। करीब 30-35 वर्ष पहले तक इस क्षेत्र में जमीन लेने को कोई तैयार नहीं था। 300 सौ रुपये डिस्मिल जमीन बिकती थी। अब तो मेन रोड पर जमीन ही नहीं है। अंदर कॉलोनियों में पांच से आठ हजार रुपये वर्ग फुट के हिसाब से जमीनें बिक रहीं हैं।
मोहद्दीपुर से आगे बढ़ते ही जैसे रामगढ़ताल को पार करते हैं, कूड़ाघाट (कुनराघाट) क्षेत्र शुरू हो जाता है। रेलवे से सेवानिवृत्त 74 वर्षीय रामानंद कहते हैं, कूड़ाघाट का इलाका बहुत बड़ा था। गुरुंग चौराहे से देवरिया की ओर जाने पर लोगों ने नाम गिरधरगंज, कूड़ाघाट रख लिया। जहां हम रहते हैं वहां गुमटी टोला नाम हो गया। मेन बाजार में अब लोग नाम कुनराघाट लिख रहे हैं।
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