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बदल रहा है गोरखपुर: अरे भाई, कूड़ाघाट नहीं अब कुनराघाट बोलिए, बदल गया है नाम

राजन राय, गोरखपुर। Published by: vivek shukla Updated Fri, 24 Mar 2023 03:02 PM IST
British made a garbage hub on banks of Ramgarhtal name Kudaghat
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कूड़ाघाट इलाके का नाम सुनते ही जेहन में एक बात कौंधने लगती है कि यहां कूड़े का ढेर होगा। गंदगी और बदबू होगी। लेकिन, जब यहां आएंगे तो ऐसा कुछ नहीं दिखेगा। विकास के पथ पर यह इलाका तेजी से आगे बढ़ा तो नजारा भी बदल गया। अब यहां अच्छे बाजार, पॉश कॉलोनियां और एम्स जैसी इलाज की सुविधाएं हैं। जो जमीनें कौड़ी के भाव थीं, वही अब सोने के भाव बिक रहीं हैं। लेकिन, इलाके का नाम कूड़ाघाट लोगों को अब खटकता है। बहुत सारे लोगों ने तो अपनी दुकान और मकान के आगे कूड़ाघाट की जगह कुनराघाट लिखना शुरू कर दिया है। वे कहते हैं भी, अरे भाई अब कूड़ाघाट नहीं कुनराघाट बोलिए। हमें अच्छा लगेगा।

मोहद्दीपुर से आगे बढ़ते ही जैसे रामगढ़ताल को पार करते हैं, कूड़ाघाट (कुनराघाट) क्षेत्र शुरू हो जाता है। रेलवे से सेवानिवृत्त 74 वर्षीय रामानंद कहते हैं, कूड़ाघाट का इलाका बहुत बड़ा था। गुरुंग चौराहे से देवरिया की ओर जाने पर लोगों ने नाम गिरधरगंज, कूड़ाघाट रख लिया। जहां हम रहते हैं वहां गुमटी टोला नाम हो गया। मेन बाजार में अब लोग नाम कुनराघाट लिख रहे हैं।

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वे कहते हैं, एक वक्त था जब यहां शहर का कूड़ा लाकर फेंका जाता था। जंगल था और कुछ लोगों के पास थोड़ा बहुत खेत था। आठ से दस दुकानें थीं, कुछ झोपडियां थीं। पूरे इलाके में रईस पुरुषोत्तम दास का ही फार्म हाउस था। करीब 30-35 वर्ष पहले तक इस क्षेत्र में जमीन लेने को कोई तैयार नहीं था। 300 सौ रुपये डिस्मिल जमीन बिकती थी। अब तो मेन रोड पर जमीन ही नहीं है। अंदर कॉलोनियों में पांच से आठ हजार रुपये वर्ग फुट के हिसाब से जमीनें बिक रहीं हैं।
 
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1949 में मेरे दुकान का नक्शा पास हुआ
कूड़ाघाट में कोने पर बुजुर्ग मदन लाल चौधरी की पुश्तैनी दुकान है। उन्हें आज भी याद है कि जब वे छोटे थे तो यहां गिनती में दुकानें और मकान थे। सबसे पुराने बाशिंदों में से एक उनका भी परिवार है। बताते हैं- 1949 में मेरी दुकान का नक्शा नगर पालिका से पास हुआ। तब यह दुकान झोपड़ी में थी। पिता जी पूर्व प्रधानमंत्री से बहुत प्रेरित थे। उस समय दुकान का नाम उन्होंने रखा था जय जवान-जय किसान। जो आज भी नहीं बदला। वे कहते हैं, यह बात हमेशा सालती है कि इस क्षेत्र का नाम कूड़ाघाट है जबकि कहीं भी कूड़ा नहीं मिलेगा।

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दस्तावेजों में महादेव झारखंडी टुकड़ा नंबर एक है नाम
नागरिक जीके द्विवेदी ने कहा कि इस क्षेत्र का बहुत ऐतिहासिक महत्व है। मेरे बाबा बताते थे कि पहले यहां का नाम महादेव झारखंडी टुकड़ा था। लेकिन, जब अंग्रेज आए तो उन्होंने यहां कूड़ा डंप करवाना शुरू किया क्योंकि यह मुख्य शहर से दूर था। यहां बहुतायत निषाद समाज के लोग रहते थे, जो ताल में मछली मारते थे। थोड़ी बहुत खेती भी उनके पास थी। इसके अलावा सब जंगल था। धीरे-धीरे यहां लोग आकर रहने लगे। सरकारी दस्तावेजों में आज भी इस क्षेत्र का नाम महादेव झारखंडी टुकड़ा नंबर एक है। कूड़ाघाट कहना और सुनना बहुत खराब लगता है। हम लोग चाहते हैं इसका नाम महादेव झारखंडी रख दिया जाए।
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मायके वाले मजाक उड़ाते थे
नागरिक लक्ष्मी देवी ने कहा कि जब मैं ससुराल आई थी तो यहां कुछ था ही नहीं। गिनती के कुछ घर थे और करीब दस दुकानें थीं। रामगढ़ताल के किनारे तो नरकट के बहुत सारे पेड़ थे, उधर कोई जाता ही नहीं था। मायके के लोग जब यहां का नाम लेते थे तो मजाक भी उड़ाते थे। लेकिन, अब तो बहुत बदलाव हो गया। हम लोग तो कुनराघाट ही लिखते हैं।

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1998 में दुकान में घुस गया था बाढ़ का पानी
नागरिक राजेश्वर चौधरी ने कहा कि पुश्तैनी दुकान को संभाल रहा हूं। 1998 में जब यहां बाढ़ आई थी तो सड़कों पर तीन फीट तक पानी आ गया। दुकान में भी पानी घुस गया था। हम लोग नाव से आते-जाते थे। पतली सी सड़क थी। अब तो बहुत कुछ बदल गया है। सड़कें चौड़ी हैं, एक से एक दुकानें व मार्ट खुल गए हैं। एम्स और आर्मी स्कूल है। कूड़ाघाट नाम अच्छा नहीं लगता है तो अब हम लोगों ने कुनराघाट बोलना शुरू कर दिया है।
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बोलने में खटकता था डोमवा ढाला, बदलकर कर दिया विष्णु ढाला
गोरखपुर वार्ड नंबर 37 में सेंदुली-बेंदुली के पास बांध पर एक ढाला है, जिसका नाम डोमवा ढाला है। पहले यहां खेत हुआ करता था, एक भी मकान नहीं था। सिर्फ एक विष्णु भगवान का मंदिर और रंगीलाल डोम की कुटिया थी। धीरे-धीरे मकान बनते गए और कालोनी बस गई। यहां रहने वाले लोगों को जब अपना पता डोमवा ढाला बताना पड़ता था, तो अटपटा सा लगने लगा।

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दो महीने पहले कालॉनी के लोगों ने ही नाम बदलकर विष्णु ढाला कर दिया। ढाला पर ही एक बोर्ड भी लगा दिया। डोमवा ढाला नाम पड़ने के पीछे भी कहानी दिलचस्प है। यहां रहने पाले 70 वर्षीय अक्षयवर बताते हैं, रुस्तमपुर से लेकर मिर्जापुर तक सिर्फ एक ही डोम थे रंगीलाल। उनकी कुटिया नदी के किनारे ढाले के पास थी। जब भी अंतिम संस्कार होता था लोग उन्हें खोजते थे। तक कालोनियां नहीं थी, सात-आठ गांव थे। अक्षयवर डोम बंधे के पास ढाले पर ही रहते थे। बोलचाल में धीरे-धीरे जगह का नाम ही डोमवा ढाला पड़ गया। उनका एक बेटा था जिसका नाम बंगाली था। उनका भी निधन हो चुका है।
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डोमवा ढ़ाला नाम ही खटकता था
सेंदुली-बेंदुली निवासी सुशील गुप्ता ने कहा कि डोमवा ढाला नाम से ही लगता है कि आसपास डोम समुदाय के लोग ही ज्यादा रहते थे। जबकि, अब इस समुदाय का कोई व्यक्ति नहीं है। जब भी किसी को घर का पता बताते थे डोमवा ढाला का नाम बताने में ही अच्छा नहीं लगता था। बच्चे भी कहते थे कहां घर बनवा लिए। लेकिन, अब नाम बदलकर विष्णु ढाला रखा गया है। धीरे-धीरे लोग अब इस नए पते से ही जानेंगे।

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निवर्तमान प्रधान सेंदुली-बेंदुली देवेंद्र धर दुबे ने कहा कि दो माह पहले विष्णु ढाला नाम कर दिया गया डोमवा ढाला पहले सेंदुली-बेंदुली गांव में आता था, अब यह नगर निगम के दायरे में आ गया है। ढाले का नाम हमेशा मुझे खटकता रहता था। आसपास के लोगों ने भी मुझसे कहा कि इसका नाम बदला जाना चाहिए। ढाले के पास ही एक मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की भी मूर्ति है। हम लोगों ने तय किया कि भगवान के नाम पर ही ढाले का नाम रख दिया जाए। बोलने और सुनने में अच्छा लगेगा। दो महीने पहले विष्णु ढाला नामकरण कर दिया गया।
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