कालजयी गीतकार शकील बदायूंनी ने जब अपनी कलम से दुलार का दरिया बहाते हुए लिखा, भैया बाबा ने सुख मोहे सारे दिए, मोरे गौने में चाँद और सितारे दिए, साथ ले के मैं सारा गगनवा चली, पी के घर आज प्यारी दुल्हनिया चली.... तो साल 1957 में निर्देशक महबूब खान को भी और फिल्म मदर इंडिया के संगीतकार नौशाद को भी समझ आ गया कि इस गाने को गला खोल के अगर कोई गा सकता है तो वह हैं सुरों की बेगम, शमशाद बेगम.....
लेकिन, ये वो दौर था जब शमशाद बेगम तो कभी न गाने की बात ठाने बैठी थीं। शौहर के इंतकाल के बाद बेगम ने अपना सारा ध्यान अपनी बिटिया की परवरिश में लगाने का फैसला किया। बिटिया ने तमाम मिन्नतें की कि उसे भी गाना गाने की ट्रेनिंग लेने दी जाए पर शमशाद ने संगीत की सियासत का असली चेहरा देख लिया था, वह नहीं चाहती थीं कि उनकी बेटी भी इस सब में जाकर फंसे। उनकी बिटिया उषा ने हिंदुस्तानी फौज के एक बड़े अफसर से शादी की और आखिरी सांस तक अपनी मां की सेवा भी की। तो कैसे मदर इंडिया के निर्देशक महबूब खान ने मनाया महान गायिका शमशाद बेगम को इस शानदार गाने के लिए, जानने से पहले देखिए फिल्म मदर इंडिया का शमशाद बेगम का गाया ये गीत। जी हां, हिंदुस्तान कभी ऐसा भी हुआ करता था, बस 60-65 बरस पहले की तो बात है। ये गाना देखते ही आपका दिल तो भर आएगा ही, साथ ही आंखों में खुशी की एक चमक भी जरूर बिखरेगी।