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Roop Kumar EXCLUSIVE: सोनाली के कदम पड़ते ही सबके सितारे बुलंद हो गए, जन्मदिन पर रूप कुमार ने सुनाई संघर्ष गाथा
रूप कुमार राठौड़ की ख्याति दुनिया जहान में एक बेहतरीन गायक की रही है। लेकिन, कम लोगों को ही पता होगा कि संगीत क्षेत्र में उनकी पहली पारी दमदार तबला वादक की रही। जाने जाने ध्रुपद गायक पंडित चतुर्भुज राठौड़ के बेटे रूप कुमार 10 जून को अपना जन्मदिन मनाते हैं और, इसकी पूर्व संध्या पर उनसे ये खास बातचीत की वीरेंद्र मिश्र ने।
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रूप कुमार राठौड़
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
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आपके पिता पंडित चतुर्भुज राठौड़ ध्रुपद के मशहूर गायक रहे हैं, विरासत में उनसे आपको क्या क्या मिला?
संगीत में मेरी पहली संगत तबला से हुई। डैडी ने ही इसके लिए मुझे प्रेरित किया। अल्ला रक्खा खां, किशन महाराज, शांता प्रसाद, जाकिर हुसैन आदि उस समय के जितने भी बड़े तबला वादक थे, सबको देख-सुनकर ही मैंने तबला बजाना सीखा है। तबला वादक रूप में मेरी शुरुआत अनूप जलोटा के भजन 'ऐसी लागी लगन' से हुई। उनके तमाम भजनों जैसे, 'जग में सुंदर है दो नाम,' 'रंग दे चुनरिया' में मैंने ही तबला बजाया है। पंकज उधास की गजलों मसलन, 'घुंघरू टूट गए', 'जरा आहिस्ता चल', 'सोने जैसा रंग है तेरा' में जो तबला सुनाई देता है, उसकी थाप भी मेरी ही है।
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रूप कुमार राठौड़
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
फिर, आपने अचानक तबला बजाना छोड़ा क्यों?
उन दिनों मैं खूब कार्यक्रमों में जाता और खूब तबला बजाता। बात 1984 की है, पंकज उधास का हॉन्कॉन्ग टूर रद्द हुआ तो मैं एक दिन पिताजी के साथ बैठ गया। तानपुरा बजाने वाला उनका शागिर्द नहीं आया तो मैं तानपुरा लेकर बैठा था। कोई 45 मिनट के बाद उन्होंने अपने शागिर्दों को साथ में गाने के लिए इशारा किया। मैं सिर झुकाकर बैठा रहा। मुझे इतनी शर्मिंदगी महसूस हुई कि पूछिए मत। हम पांच भाई है। मैं, श्रवण और विनोद संगीत से जुड़े हैं। लेकिन, हममें से कोई भी पिताजी जैसी ध्रुपद गायकी साध नहीं सका। मैंने पहले से तय कार्यक्रम तबला वादक के रूप में पूरे किए और उसके बाद तबला बजाना छोड़ दिया।
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रूप कुमार राठौड़
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
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इससे तो घरवाले काफी नाराज हुए होंगे?
पिताजी को लगा कि किसी ने मेरे ऊपर काला जादू कर दिया है। उनको समझाना मेरे लिए बहुत मुश्किल हुआ। लेकिन वह समझ ही नहीं पाए कि मैं क्या चाह रहा हूं? मैं गायकी में नाम रोशन करके उनका दिल जीतना चाहता था। लेकिन, मेरे इस फैसले से सभी दुखी थे। उस वक्त घर में मैं ही एक अकेला कमाने वाला जो था।
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रूप कुमार राठौड़
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
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फिर आपने पिताजी से गाने की तालीम लेनी शुरू की दी?
नहीं, मुझे लगा कि पिताजी कुछ सिखाएंगे नहीं। 26 जनवरी 1985 को मैं लंदन चला गया। इससे पहले करीब बीस बार लंदन जा चुका था। लेकिन, इस बार की यात्रा अलग थी। मैं ये सोचकर गया था कि दिन भर बच्चों को तबला सिखाऊंगा और रात में गाने का रियाज करूंगा। मुझे सबका रंग पता था कि कौन, कैसे और क्या गाता है? मैंने गुलाम अली, मेहंदी हसन, पंकज उधास, अनूप जलोटा और पिताजी के गायकी सुन सुनकर दो महीने में अपने आपको तैयार किया और लंदन में ही कार्यक्रम करना शुरू कर दिया।
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