दुनिया में कई फनकार पैदा हुए और मर गए, लेकिन कुछ फनकार ऐसे भी हैं जो अपने काम से अमर हो गए और उन्होंने वह मुकाम हासिल किया है जिसे बरसों बाद भी भुला पाना उनके कद्रदानों के लिए नामुमकिन है। कुछ ऐसे ही थे रिदम किंग और ताल के बादशाह कहे जाने वाले ओपी नैय्यर। नैय्यर साहब ने न जाने कितने गानों में अपने संगीत का जादू बिखेरा है। कभी न भुलाया जा सकने वाला संगीत देने वाले ओ पी नैय्यर साहब आज ही के दिन वह इस दुनिया से रुखसत हो गए थे। तो चलिए जानते हैं उनकी जिंदगी के बारे में कुछ खास बातें-
साल 1926 में लाहौर में जन्मे ओपी नैय्यर ने आसमान फिल्म से अपने करियर की शुरुआत की थी। लेकिन उनको पहचान गुरुदत्त की फिल्मों आरपार, मिस्टर एंड मिसेज 55, सीआई डी और तुम सा नहीं देखा से मिली। ओपी नैय्यर अपने समय के पहले ऐसे संगीतकार थे, जिन्होंने लता मंगेश्कर की आवाज का इस्तेमाल किए बगैर इतना सुरीला संगीत दिया है।
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कहते हैं कि ओपी नैय्यर फिल्मी दुनिया में संगीतकार बनने नहीं बल्कि हीरो बनने आए थे। लेकिन उनको रिजेक्शन मिलता गया। रिजेक्शन के साथ उनको सलाह मिली कि कुछ और करो। कुछ और के नाम पर एक संगीत ही था जो वह थोड़ा बहुत जानते थे। तो हरमोनियम से दोस्ती बढ़ाते हुए उन्होंने संगीत का जादू चलाना शुरू किया। गुरुदत्त की फिल्मों के बाद तो उन्होंने ‘कभी आर कभी पार लागा तीरे नजर’, ‘ऐ लो मैं हारी पिया’ और ‘बाबूजी धीरे चलना… बड़े धोखे हैं इस राह में’ गीतों ने धूम मचाई और ओपी का नाम फिल्म जगत में चल निकला।
इन सबके बाद ओपी नैय्यर की मुलाकात आशा भोंसले से हुई। आशा ताई को आशा भोसले बनाने का श्रेय अगर किसी को दिया जा सकता है तो वो थे ओ पी नैय्यर। उन्होंने आशा की आवाज की रेंज का पूरा फायदा उठाया। कई फिल्मों में एक साथ काम करने के दौरान नैय्यर साहब और आशा भोसले काफी करीब आ गए लेकिन यही प्रेम संबंध नैय्यर साहब की बर्बादी का कारण भी बन गया।
दोनों के प्रेम संबंधों के बारे में संगीत इतिहासकार राजू भारतन ने अपनी किताब 'अ जर्नी डाउन मेमोरी लेन' में लिखा है, ओ पी नैय्यर का आशा भोंसले के साथ प्रेम संबंध 14 साल तक चला। एक जमाने में ओ पी नैय्यर की कैडलक कार में घूमने वाली आशा भोंसले ने 1972 में अपने जीवन के इस संगीतमय अध्याय को खत्म करने का फैसला किया। इसके बाद आशा भोंसले और ओपी नैय्यर ने एक छत के नीचे कभी कदम नहीं रखा। लेकिन दोनों की गहरी मोहब्बत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि एक बार नैय्यर साहब ने एक पत्रकार से कहा था, 'ये तो सुना था कि लंव इज ब्लाइंड, लेकिन मेरे मामले में लव ब्लाइंड के अलावा डेफ यानी बहरा भी था, क्योंकि आशा की आवाज के अलावा मैं और कोई आवाज सुन नहीं पाता था'।