किसी तरह मुंबई पहुंच जाने के सपने को पूरा करने के लिए ग्वालियर के कार्तिक आर्यन ने नवी मुंबई के इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लिया। पढ़ते पढ़ते ही हीरो बन गए और अब उनकी गिनती देश के सुपर सितारों में होती है। अपने रिश्तों, अपने इरादों और अपनी कड़ी मेहनत के राज कार्तिक ने खोले हैं अमर उजाला के सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल के साथ इस खास मुलाकात में।
एक गजब बात मुझे दिखी रणबीर कपूर की नई फिल्म ‘तू झूठी मैं मक्कार’ के ट्रेलर में, ये शुरू होता है ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ और ‘प्यार का पंचनामा’ के जिक्र से। ये तो गजब ब्रांडिंग हो रही है कार्तिक आर्यन के नाम पर इसके निर्देशक लव रंजन की रणबीर कपूर की फिल्म में?
ये सारी ब्रांडिग इन फिल्मों के निर्देशक लव रंजन की ही बनाई हुई है। मैं बहुत खुश हूं ये ट्रेलर देखकर और मैं चाहता हूं कि लव रंजन की ये फिल्म भी कामयाब हो। मैंने उनके साथ इतने साल काम किया है। कामयाबी भी देखी है। विफलता भी देखी है। ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ के चार साल बाद ये फिल्म आ रही है। हमारी पिछली फिल्म सुपरहिट थी, मैं आशा करता हूं कि उनकी ये फिल्म भी सफल होगी।
फिल्म ‘शहजादा’ में आप बंटू बने हैं। ये जो घरेलू किस्म के नाम हैं गुड्डू, गोगो, सोनू, ये आपको अपने प्रशंसकों के कितना करीब लाते हैं?
एक कलाकार का अपने प्रशंसकों के साथ रिश्ता बनाने में इस तरह के नाम बहुत मदद करते हैं। मेरा घर का नाम कोकी है। कोई भी मुझे कार्तिक कहकर नहीं बुलाता। ये एक बहुत ही देसी बात है, पारंपरिक बात है जिससे आम दर्शक तुरंत अपना संबंध स्थापित कर लेते हैं। मुझे लगता है कि इस तरह के नाम काम भी बहुत करते हैं। इसी के चलते मैंने फिल्म ‘लुकाछिपी’ में भी अपने किरदार का नाम विजय से बदलकर गुड्डू शुक्ला कर लिया था।
मतलब कि आपको ये पता चल चुका है कि दर्शक आपसे क्या चाहते हैं?
मैं ये इसलिए समझ पाता हूं क्योंकि अपनी फिल्मों का दर्शक मैं मैं खुद भी हूं। अगर किसी फिल्म को देखते हुए मेरा ध्यान बंट रहा है या फिर मैं अपने मोबाइल पर कुछ देखने लगता हूं तो इसका मतलब फिल्म असरदार नहीं है। यही मैं अपनी फिल्मों की कहानियां सुनते हुए करता हूं। जब मैं कहानी सुन रहा होता हूं तो मैं देखता हूं कि ये कहानी मुझे कितना बांध पा रही है। कमर्शियल फिल्मों में जो एक खालीपन सा आ गया है, बस मैं उसे भरना चाहता हूं। बीते साल इसे ‘भूल भुलैया 2’ से मैंने अंजाम दिया, इस साल ‘शहजादा’ है और इसके बाद ‘सत्यप्रेम की कथा’।
बीच में एक फिल्म फ्रेडी भी आई जिसमें आपने एक बड़ा रिस्क लिया..
कई लोगों ने मुझे ये फिल्म न करने की सलाह दी थी। लेकिन, मैं एक थ्रिलर या कहें कि डार्क जोन की फिल्म करना चाहता था। ‘फ्रेडी’ ने मुझे ये मौका दिया। मैंने किसी की नहीं सुनी तो फिल्म कर ली। अब तो इसकी सीक्वल की भी बातें हो रही हैं। मेरा मानना है कि जितना बड़ा जोखिम होगा, उसका उतना ही बड़ा फल भी मिलेगा। सच ये भी कि बात नहीं बनी तो इसका उल्टा भी हो सकता है।