किरदार छोटा हो या बड़ा बिजेंद्र काला जिस सहजता से अभिनय करते हैं। उससे आम दर्शक कनेक्ट हो जाते हैं। चाहे वो 'पान सिंह तोमर' का रिपोर्टर हो, 'जब वी मेट' का धीमी गति से गाड़ी चलाने वाला ढीठ ड्राइवर हो या फिर 'आंखो देखी' का पडोसी, ऐसी अनगिनत फिल्में हैं, जिनमे बिजेंद्र काला ने अपने सहज अभिनय से लोगों के जेहन पर गहरी छाप छोड़ी है। हाल ही में वह फिल्म ‘जनहित में जारी’ में कंडोम फैक्ट्री के मालिक के दिलचस्प किरदार में नजर आए थे लेकिन कम लोग ही जानते हैं कि बिजेंद्र काला को अभिनय का पहला मौका सीधे रसमाधुरी के रूप में मशहूर रहीं अभिनेत्री रेखा के साथ मिला था। अब रेखा के साथ शूटिंग हो और वह भी जिंदगी का पहला शॉट हो तो भला नींद किसे आ सकती है। मथुरा से मुंबई पहुंचे बिजेंद्र काला ने अभिनय की एक लंबी रेखा अपनी मेहनत से खींची है। आइए जानते उनकी राम कहानी..
कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा में बीता बचपन
बिजेंद्र काला मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के सोमाढ़ी गांव के रहने वाले है। उनका जन्म उनके ननिहाल नौटियाल गांव में हुआ है। उनके पिता गजेंद्र मणि काला मथुरा के वेटरनरी कॉलेज में सुपरिटेंडेंट थे और उनकी माता कांति काला हाउस वाइफ। बिजेंद्र का बचपन मथुरा में ही बीता और यहीं के सेठ बी एन पोद्दार स्कूल से दसवीं, चंपा इंटर कॉलेज से बारहवीं और के आर डिग्री कॉलेज से बायो केमेस्ट्री से ग्रेजुएशन किया। बिजेंद्र काला बताते हैं, 'उन दिनों वृंदावन और मथुरा आकाशवाणी में बच्चों के कार्यक्रम बाल गोपाल में हिस्सा लेता था। उसके बाद बड़ा हुआ तो युववाणी में हिस्सा लिया। उसके बाद नाटकों में भाग लेता रहा। वहीं मेरी मुलाकात डॉ. अचला नागर जी से हुई। उनको मैं मां बोलता हूं। उन्होंने अपने बच्चे की तरह मेरा ध्यान रखा। उनके बेटे संदीपन नागर और सिद्धार्थ नागर के साथ मेरी थियेटर में शुरुआत हुई। मथुरा में हमारा स्वस्तिक रंग मंडल के नाम से नाटक ग्रुप था। उस रंगमंच को हम सब मिलकर चलाते थे। हमने 18 -19 साल तक पूरी एकाग्रता के साथ थियेटर किया। इस तरह से मथुरा की ये गतिविधियां रही है।'
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पिता जी की इच्छा थी वेटरनरी डॉक्टर बनूं
पिताजी वेटरनरी कॉलेज में थे तो चाहते थे कि बेटा भी वेटरनरी डॉक्टर बने। बिजेंद्र काला कहते है, 'मैंने बायो केमेस्ट्री में ग्रेजुएशन किया था, इसलिए मेरे पिता जी की प्रबल इच्छा थी कि मैं भी वेटरनरी डॉक्टर बन जाऊं, लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। मेरा रुझान कला के प्रति था। बचपन में जब आठवीं के बाद विषय चुनने की बारी आई तो मैंने पिताजी से कहा कि मैं संगीत लूंगा। पिताजी ने बुरी तरह से डांटते हुए कहा, 'ये भी कोई सब्जेक्ट है, अगर लेना है तो कॉमर्स ले लो।' मैंने सोचा कि कॉमर्स क्या लेना है, इस तरह से साइंस लिया और पढ़ना शुरू किया। उस समय साइंस क्यों चुनी आज तक मुझे ये बात समझ में नहीं आई क्योंकि मेरा झुकाव तो कला के प्रति था।'
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फुटबॉल खेलने के बहाने सिनेमा
कला के अलावा बिजेंद्र काला का झुकाव स्पोर्ट में भी रहा है। वह कहते हैं, 'उन दिनों मुझे सभी तरह के खेल खेलने का बहुत शौक था। क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल, बैडमिंटन जैसे सारे खेल खेलता था। खेल में इतनी दिलचस्पी बढ़ गई थी कि जैसे ही स्कूल खत्म होता था हम लोग भागकर क्रिकेट खेलने जाते थे। फुटबॉल भी मैंने खूब खेला और इसी फुटबॉल खेलने के बहाने सिनेमा भी खूब देखा। जब घर वापस आता था तो घर के बाहर जानबूझ कर हाथ पैर धोता था कि ताकि घर वालों को लगे कि फुटबॉल खेलकर आया है तो हाथ पैर गंदे हुए होंगे, इसलिए धो रहा है।'
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ऐसे लगा नाटकों में काम करने का चस्का
जब बिजेंद्र काला 12वीं में पढ़ रहे थे। स्कूल के वार्षिक कार्यक्रम के लिए उनके स्पोर्ट टीचर ने उन्हें एक नाटक के लिए चुना। बिजेंद्र काला कहते है, 'इससे पहले मैं स्कूल के कार्यक्रम में गाता रहता था। स्पोर्ट टीचर 'लाला लाजपत राय' पर एक ऐतिहासिक नाटक कर रहे थे, उस नाटक में उन्होंने मुझे एक कॉमिक किरदार निभाने के लिए चुना। उन दिनों मुझे फिल्में देखने का बहुत शौक था। उसी से प्रेरित होकर मैंने परफॉर्म कर दिया। जिसके लिए प्रिंसिपल साहब ने मुझे बेस्ट एक्टर का पुरस्कार दे दिया। उन दिनों बोर्ड की परीक्षाएं भी शुरू हो रही थीं। दिलचस्प बात यह थी कि परसों पेपर है और आज नाटक कर रहा हूं।
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