भारतीय सिनेमा में गुरु दत्त ऐसी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे जिन्होंने फिल्म निर्माण, डायरेक्शन, कोरियोग्राफी और एक्टिंग में अपना लोहा मनवाया। गुरु दत्त का जन्म 9 जुलाई 1925 को बेंगलुरु में हुआ था। उनका असली नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था। गुरु दत्त का जन्म बेहद गरीबी और तकलीफों में बीता था। पढ़ाई में अच्छे होने के बावजूद 10वीं के बाद वो आगे नहीं पढ़ सके क्योंकि उतने पैसे उनके परिवार के पास नहीं थे।
संगीत और कला में रुचि होने के चलते गुरु दत्त ने अपनी प्रतिभा से स्कॉलरशिप हासिल की और उदय शंकर इंडिया कल्चर सेंटर में दाखिला ले लिया, जहां से उन्होंने डांस सीखा। 5 साल तक उदय शंकर से डांस सीखने के बाद गुरु दत्त को पुणे के प्रभात स्टूडियो में बतौर कोरियोग्राफर काम करने का मौका मिला। साल 1946 में गुरुदत्त ने प्रभात स्टूडियो की एक फिल्म 'हम एक हैं' से बतौर कोरियोग्राफर अपना फिल्मी करियर शुरू किया।
कोरियोग्राफर के बाद गुरु दत्त को प्रभात स्टूडियो की फिल्म में एक्टिंग का मौका भी मिला। इसी दौरान ही उन्होंने 'प्यासा' की कहानी लिखी और बाद में इसी पर फिल्म बनाई। साल 1951 में देवानंद की फिल्म 'बाजी' की सक्सेस के बाद गुरु दत्त बतौर निर्देशक अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए। इस फिल्म के दौरान गुरु दत्त और गीता दत्त करीब आए और साल 1953 में उन्होंने शादी कर ली।
दरअसल, दोनों की शादी टूटने की मुख्य वजह गुरु दत्त का वहीदा रहमान की तरफ झुकाव था। ऐसा कहा जाता है कि वहीदा रहमान और गुरु दत्त एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे लेकिन गुरु दत्त शादी शुदा थे। वहीदा रहमान को लेकर गुरुदत्त और गीता दत्त में आए दिन झगड़े होते रहते थे। साल 1957 में गुरु दत्त और गीता दत्त की शादीशुदा जिंदगी में दरार आ गई और दोनों अलग-अलग रहने लगे।
'प्यासा', 'साहब, बीवी और गुलाम', 'चौदहवीं का चांद' जैसी बेमिसाल फिल्में देनेे वाले गुरु दत्त उस वक्त दिवालिया हो गए जब 'कागज के फूल' फ्लॉप हो गई। एक ओर जहां वो वहीदा रहमान को नहीं अपना पाए तो वहीं दूसरी ओर फिल्म में नुकसान की वजह से गुरुदत्त बिल्कुल टूट चुके थे और उन्होंने 2 बार आत्महत्या की कोशिश की थी लेकिन तीसरी बार उनकी जान चली गई। 39 साल की उम्र में गुरु दत्त अपने बेडरूम में मृत पाए गए। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने पहले खूब शराब पी और उसके बाद ढेर सारी नींद की गोलियां खा ली थीं।