भारतीय सिनेमा का इतिहास कई मायनों में खास रहा है। समाज में जागरूकता बढ़ाने के लिए फिल्मों का अहम योगदान रहा है। लेकिन हिंदी सिनेमा में एक समय था, जब फिल्मों में महिलाओं का काम करना या फिर पर्दे पर दिखना अच्छा नहीं माना जाता था। पहले के समय में पुरुष ही फिल्मों में महिलाओं के किरदार निभाते थे। आज एक्ट्रेस के बिना फिल्म की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। आज के सिनेमा में महिलाओं की भागीदारी काफी बढ़ गई है, लेकिन एक समय था, जब फिल्मों में महिलाओं का काम करना चुनौतीपूर्ण था। आज हम पहली महिला एक्ट्रेस और डायरेक्टर की बात करेंगे, जिन्होंने सिनेमा के बंद दरवाजों को भारतीय महिलाओं के लिए खोल दिया।
फातिमा बेगम
पहले समय में पुरुष दबदबे वाले इस प्रोफाइल में अपनी पहचान बनाना महिलाओं के लिए आसान काम नहीं था। फातिमा फिल्म इंडस्ट्री की बेड़ियों को तोड़ते हुए पहली महिला डायरेक्टर बनी थीं। फातिमा बेगम पहले स्टेज एक्ट्रेस थीं। इसके बाद उन्होंने कई नाटक में एक्टिंग और डायरेक्शन दोनों का काम किया था। साल 1962 में उन्होंने बुलबुल-ए-पाकिस्तान की कहानी लिखी, बाद में इस फिल्म का डायरेक्शन भी किया। इसके साथ वह पहली महिला डायरेक्टर बनीं। फिल्म इंडस्ट्री के स्टीरियोटाइप को तोड़ते हुए उन्होंने अपने प्रॉडक्शन हाउस की शुरुआत की थी।
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जद्दनबाई
जद्दनबाई भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की पहली महिला म्यूजिक डायरेक्टर हैं। उन्होंने 1935 में तलाश-ए-हक और मैडम फैशन 1936 के लिए म्यूजिक कंपोज किया था। बता दें कि वह इंडियन सिनेमा की पॉपुलर एक्ट्रेस नरगिस की मां थीं। उन्होंने 'जीवन स्वप्न','हृदय मंथन', 'मोती का हार' फिल्म का निर्देशन कर दर्शकों की वाहवाही लूटी थी। नरगिस के पिता मोहन बाबू ने जद्दनबाई से शादी कर ली और अपना धर्म बदल लिया। जद्दनबाई ने कड़े संघर्ष के बाद खुद को एक निर्देशक के रूप में स्थापित किया। हालांकि, फिल्म 'बरसात' के निर्माण के दौरान कैंसर के कारण उनका निधन हो गया था।
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बी.आर. विजयलक्ष्मी
बी.आर. विजयलक्ष्मी वह नाम है, जिन्होंने पहली बार बॉलीवुड में महिला सिनेमैटोग्राफर की भूमिका निभाई। न सिर्फ बॉलीवुड, बल्कि वह एशिया की भी पहली सिनेमैटोग्राफर हैं। वह प्रसिद्ध निर्देशक-निर्माता बीआर प्रंथालु की बेटी हैं। विजयलक्ष्मी ने 80 और 90 के दशक में 22 फिल्मों की शूटिंग कर कई हिट फिल्में दीं। फिल्मी करियर के अलावा उन्होंने कई टेलीविजन सीरीज में भी काम किया। साल 1980 में उन्होंने डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी काम किया। उस वक्त फिल्म प्रॉडक्शन का तकनीकी काम केवल पुरुष ही करते थे।
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दुर्गाबाई कामत
दुर्गाबाई कामत भारतीय सिनेमा की पहली एक्ट्रेस थीं। उन्होंने दादा साहेब फाल्के की दूसरी फिल्म मोहिनी भस्मासुर में मुख्य भूमिका निभाई थी। दुर्गाबाई ने दकियानूसी सोच को पीछे छोड़ते हुए इंडियन सिनेमा में अपनी पहचान बनाई है। उस समय फिल्मों में काम करना किसी संघर्ष से कम नहीं था। भले ही आज के समाज में महिलाओं को समान अधिकार और हक की बात की जाती है। लेकिन सदियों पहले महिलाओं पर हर तरह की पाबंदियां थीं। उस समय महिलाओं को चारदीवारी में रहना होता था। दुर्गाबाई ने उन चुनौतियों को तोड़ते हुए चारदीवारी से बाहर निकल पर्दे पर काम करने की हिम्मत दिखाई थी। उन्होंने तमाम मिथकों और समाज की बेड़ियों को तोड़ा था।
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