हिंदी सिनेमा में सहायक भूमिकाएं करने वाले कलाकारों का दौर फिर लौट आया है। आयुष्मान खुराना की फिल्म बधाई हो में लीड कास्ट से ज्यादा तारीफ गजराज राव और नीना गुप्ता की हुई। दंगल और स्त्री जैसी फिल्मों से अपारशक्ति खुराना ने भी सिनेमा में अपनी जगह तलाश ली है।
फिल्म लुका छुपी के ट्रेलर में लोग आपकी तारीफें भी खूब कर रहे हैं? दंगल से शुरू हुए इस सफर के बारे मे क्या कहना चाहेंगे?
आमिर सर से मैंने एक बात जो सीखी, वह है खुद की पहचान बनाए रखना। वह कभी खुद को सुपरस्टार नहीं मानते। उनकी तरह मेरा भी मानना है कि एक अच्छा एक्टर होने से पहले एक अच्छा इंसान होना जरूरी है। लोगों ने समानांतर भूमिकाएं करने वाले अभिनेताओं को पहचानना शुरू कर दिया है, यह समय का बदलाव भी है और समय की जरूरत भी।
राज्यस्तरीय क्रिकेट, दिल्ली में वकालत, फिर रेडियो जॉकी और अब फिल्म अभिनेता? तदबीर बनाई आपने अपनी या फिर इसे तकदीर का खेल मानते हैं?
मेरे पिता उत्तर भारत के मशहूर ज्योतिषी हैं, लेकिन मैं तकदीर के खेल को कम ही मानता हूं। मेरा मानना है कि बिना कोशिश किए आपको कुछ हासिल नहीं होता। मैंने क्रिकेट खेला तो पूरे मन से। वकालत की तो पूरे जतन से लेकिन मैं वहां फेल हो गया। पर मैंने असफलताओं से सबक सीखे हैं। कुछ भी आपके जीवन में बैठे-बैठे नहीं हो सकता। लगातार काम करते रहना जरूरी है।
सात उचक्के में आपके काम को दंगल से पहले भी पहचाना गया। अब आप फिल्म कानपुर कर रहे हैं। अब तो लीड किरदार के भी ऑफर आ रहे होंगे?
मैंने किसी फिल्म में अपने किरदार की लंबाई नापी नहीं। मेरा साफ कहना है कि मैं यहां हीरो बनने नहीं आया हूं। मैं अच्छा कलाकार बनना चाहता हूं। ऐसा कलाकार जिसके किरदार लोगों को याद रह जाएं या जिसे पर्दे पर देखते ही लोगों के चेहरों के भाव बदल जाएं। लीड किरदार के ऑफर तो बहुत आ रहे हैं लेकिन मेरा सोचना का अंदाज थोड़ा अलग है।
कानपुर वाले खुरानाज का पहला सीजन खत्म हो चुका है। चर्चा है कि द कपिल शर्मा शो के आगे यह टिक नहीं पाया। आपका क्या कहना है?
मेरा इस शो के लिए सिर्फ आठ दिन का एग्रीमेंट हुआ और हमने इन आठ दिनों में 16 एपीसोड शूट किए। पहला सीजन इतने ही एपीसोड का था। टीआरपी गेम में इसीलिए इसका जिक्र करना मुनासिब नहीं है।